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बसंत
आगमन के साथ प्रकृति जब नए सिरे से खुद को संवारती है, तो उसकी छटा निराली
होती है। वह अपनी सारी गांठें खोलकर खुद को विविध रंगों के माध्यम से
अभिव्यक्त करती है। उस समय पेड़−पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के पुष्प
अपनी रंग बिरंगी छटा से मन मोह लेते हैं। तब मनुष्य का मन जैसे तरूण हो
उठता है। होली आते−आते यह तरूणाई मादकता में डूबने इतराने लगती है। इस
दृष्टि से देखें तो होली मन को गांठें खोल देने का त्योहार है।
यह
ऐसा त्योहार है, जिसमें सभी धर्मों और समुदायों के लोग एक दूसरे को गुलाल
लगाकर और गले मिल कर मन के मैल को भी इस मौके पर धो लेते हैं। दुनिया की
किसी संस्कृति में ऐसा पर्व नहीं है, जिसमें मनुष्य एक दूसरे पर रंग डाल कर
बदरंग हो गए रिश्ते में भी नया रंग भर लेते हैं। तन पर पिचकारियों की
फुहार पड़ते ही और गालों पर एक दूसरे को गुलाल मलते हुए भारतीय समाज अपने
सारे गिले−शिकवे दूर कर लेता है। क्यों न हो, जब इस देश की प्रकृति अलग−अलग
मौसम से अपना मिजाज बदल लेती है, तो भला यहां के लोग भी लंबे समय तक एक
रंग में ही क्यों रंगे रहें।
होली पर हर रंग अपना एक
अलग संदेश लेकर आता है। गोरी के गालों पर जब पिया लाल रंग लगाते हैं तो यह
उसके प्रति प्यार की गरमाहट को ही अभिव्यक्त करता है। और लाल रंग में
सराबोर पत्नी जब पलट कर अपने पति, देवर, बहनोई या भाइयों को हरे रंग का
गुलाल लगाती है, तो वह संबंधों में निर्मलता और प्रकृति से नारी के संबंध
को ही प्रकट करती है। इसी प्रकार जब प्रियजनों को पीला रंग लगाया जाता है,
तो हम यह संकेत देना चाहते हैं कि चलो हम फिर से अपने संबंधों को शुद्ध कर
लें। शुभ अवसरों पर पीले रंग का कितना महत्व है, यह हर भारतीय समझता है। हम
चाहें जामुनी रंग लगाएं या काला रंग, सभी का एक ही संदेश है कि मन से
उदासी के रंग को दूर करो।
होली
उत्साह से भरपूर त्योहार है। थोड़ी मस्ती, थोड़ी उछल कूद और थोड़ी
चुहलबाजी ये सब होली पर दिखते हैं। रंग−गुलाल से खिला मन तब और आह्लादित हो
जाता है, जब घर पर ठंडाई और पकवान खाने को मिलते हैं। उत्तर और पूर्वी
भारत में इस मौके पर तो इतने पकवान बनते हैं कि सोचना पड़ता है कि क्या
खाएं और क्या छोड़ें। होली पर मस्ती करने के बाद यों भी भूख बढ़ जाती है।
खोए और चाशनी में बनी गुझिया, गरमा−गरमा जलेबी, गुड़ और चीनी के पुए,
मालपुए, गरमागरम पकौड़े, दही भल्ले और ठंडाई तो खासतौर से बनते हैं। एकल और
संयुक्त परिवारों में महिलाएं सुबह से पकवान बनाने में जुट जाती हैं।
उनमें प्यार और उल्लास देखते बनता है। दिल से बनाए ये पकवान खाने वाले के
मन में भी मिठास घोल देते हैं। मित्रों और संबंधियों के घर सुबह या फिर शाम
ढलने पर लोग जब जाते हैं, तो उनका तरह−तरह के पकवानों से ही स्वागत होता
है। होली पर जिस तरह से रंगों से हम अपना स्नेह प्रकट करते हैं उसी तरह से
पकवानों का भी संदेश है कि साल भर इसी तरह रिश्तों में भी मिठास बनाए रखना।
होली
वस्तुतः मन की गांठें खोल देने का त्योहार है। इस दिन लोग पुराने मन मुटाव
को भूल कर सद्भाव की नई शुरुआत करते हैं। होली पर जो लोग दूसरे को चोट
पहुंचाने, अभद्रता करने और स्त्रियों को रंग लगाने के बहाने उनकी गरिमा को
ठेस पहुंचाने का प्रयास करते हैं, उनमें दूर ही रहना चाहिए। उनकी हरकतों से
यह साबित होता हैं कि वे सभ्य नहीं हैं और उनके मन का एक रंग है यानी
काला। जिस पर किसी रंग का असर नहीं होता।
होली को
कभी बदरंग न होने दें। क्योंकि विविध रंग मिल कर ही सतरंगी बनते हैं। इस
अवसर हर मनुष्य समाज और परिवार में रिश्तों का ऐसा इंद्रधनुष बनाएं जिसमें
मर्यादा तो है ही, एक ऐसी गरिमा भी हो, जिसकी गरमाहट अगली होली तक बनी रहे।
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Wednesday, March 27, 2013
बंदरंग रिश्तों में नया रंग भरती है होली
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