Monday, February 23, 2015

कोयला उद्योग कौन कितना मालामाल?

कोयला सचिव के इस ट्विट का क्या मायने निकाला जाए, जिसमें उन्होंने कहा है कि नई कोयला नीलामी से राज्यों को इतनी रायल्टी मिलेगी कि वे मालामाल हो जाएंगे। खनिजों का अंधाधुंध दोहन हमेशा से विवादों में रहा है। खासकर पर्यावरण के मुद्दे पर इस दोहन का विरोध होता आया है। जिन इलाकों में इस प्रकार का दोहन हुआ है वहां बाद में क्या कुछ बचा रह गया है, इसका एक उदाहरण छत्तीसगढ़ का चिरमिरी है, जिसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। जब कोयला खदानें चल रही थीं, वहां की चमक-दमक देखने लायक होती थी। आज यहां की व्यवस्था कैसे चले, इस पर सोचना पड़ रहा है। किसी भी योजना का गुण-दोष उसके दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखकर देखा जाना चाहिए। चूंकि कोयला सचिव को नीलामी के आर्थिक प्रभावों को ही देखना था इसलिए उन्होंने राज्यों को मालामाल होने वाला ट्विट कर दिया। तात्कालिक आर्थिक लाभ का मुद्दा बिल्कुल अलग है। हम जानते हैं कि निजी कम्पनियां सार्वजनिक हितों पर कितनी गंभीर होती है। राज्य के ही संसाधन पर खड़ी होने वाली कंपनियां स्थानीय लोगों को रोजगार देने से कतराती हैं। राज्य में कोयला उद्योग बदलने जा रहा है। इसका असर यहां के औद्योगिक विकास पर भी पड़ेगा। कोरबा जिले का चोटिया कोयला ब्लाक इस नई नीलामी में बालको को मिल गया है। पहले यह प्रकाश इंडस्ड्रीज के पास था। रायगढ़ के गारे पल्मा कोल ब्लाक भी हिंडाल्को और बाल्को के मिले हैं। सूरजपुर जिले का परसा कोल ब्लाक अदानी समूह के हाथ से निकल गया है और खबर है कि यह भी हिंडाल्को को मिले हैं। नई नीलामी से राज्य को इन खदानों से 20 हजार करोड़ की रायल्टी मिलने का अनुमान है। देखने में यह एक बड़ी रकम है, लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि इस खदानों से कोयले का दोहन शुरू होने के बाद उसके दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे। परसा कोल ब्लाक अदानी को देने का विरोध काफी पहले से चल रहा है। नेशनल ग्रीन टे्रब्यूनल ने इसकी पर्यावरण मंजूरी रद्द कर दी थी और इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्टे के आधार पर वहां काम चल रहा है। बड़ा प्रश्न यह है कि इस विवाद के बीच नीलामी का फैसला कैसे कर लिया गया। कोयला ब्लाकों की नीलामी की इस प्रक्रिया और शर्तों की असलियत तो तब सामने आएगी जब इन ब्लाकों में कोयले का खनन व परिवहन शुरू होगा। अदानी का परसा कोल ब्लाक शुरू होने के बाद मुख्य सड़क पर चलने वाले ट्रकों की चपेट में आकर पिछले डेढ़-दो साल में ही दर्जनों लोग मारे गए। इन लोगों की जान की क्या कीमत लगाई जाएगी। इस इलाके को हाथियों का प्राकृतिक आवास कहकर कोल ब्लाक के आबंटन का विरोध किया गया था। यह इलाका हाथियों का प्राकृतिक आवास माना गया है। यह तबाह होगा तो हाथी कहां जाएंगे। खनिजों के दोहन का यहां विरोध नहीं है बल्कि विरोध इस बात का है कि यह दोहन आखिर किस कीमत पर होने जा रहा है। जो कंपनियां कोयला निकालने जा रही हैं वे सार्वजनिक हित के मुद्दों पर किस उत्तरदायित्व के साथ काम करेंगी, यह सब भी सामने आना चाहिए

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