Saturday, February 28, 2015

मदर टेरेसा पर मोहन भागवत गलत नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत के बयान पर हमारे कुछ सेक्युलरिस्ट बंधु काफी उखड़ गए हैं। मोहन भागवत ने ऐसा क्या कह दिया है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा पर कोई आरोप लगाया है? क्या उनके बारे में कोई ओछी बात कही है? क्या उन्होंने कोई गलतबयानी की है? क्या उन्होंने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा का चरित्र-हनन किया है? उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं किया है। उन्होंने सिर्फ एक तथ्यात्मक बयान दिया है, जिसे मैं 100 टंच की चांदी कह सकता हूं या 24 केरेट का सोना कह सकता हूं। उसमें रत्तीभर भी मिलावट नहीं है। यदि मदर टेरेसा जीवित होती तो वे भी इस बयान से पूर्ण सहमत  होतीं।
भागवत ने यह तो नहीं कहा कि मदर टेरेसा सेवा नहीं करती थीं या उनकी सेवा ढोंग थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनकी सेवा के पीछे मुख्य भाव अभावग्रस्त लोगों को ईसाई बनाना था। इसमें भागवत ने गलत क्या कहा है? क्या वे लोगों को ईसाई बनने के लिए प्रेरित नहीं करती थीं? वे अपनी सेवाएं देने के लिए भारत ही क्यों आई? अमेरिका क्यों नहीं गईं? वे यूरोप में पैदा हुई थीं। यूरोप के ही किसी देश में क्यों नहीं गईं? स्वयं उनका अपना देश अल्बानिया यूरोप के पिछड़े हुए देशों में था। वे वहीं रहकर गरीबों की सेवा क्यों नहीं कर सकती थीं? उनका लक्ष्य गरीबों की सेवा नहीं था। उनका लक्ष्य गरीबों को ईसाई बनाना था। सेवा तो उस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन-भर थी। ये अलग बात है कि वह सेवा वे दिल लगाकर करती थीं।
यदि शुद्ध न्याय की दृष्टि से देखा जाए तो इस तरह की सेवा एक प्रकार की आध्यात्मिक रिश्वत है। आपने किसी की सेवा की याने आपने उसे अपनी सेवा दी और बदले में उसका धर्म ले लिया। इससे बड़ा सौदा क्या हो सकता है? मैं कहता हूं कि इससे बड़ी अनैतिकता क्या हो सकती है? जो धर्म आप पर लाद दिया गया है, उससे बड़ा अधर्म क्या है? पैसे या तलवार के जोर पर जो धर्म-परिवर्तन किया जाता है, उससे बढ़कर पाप-कर्म क्या हो सकता है? स्वयं इस धर्म-परिवर्तन को यदि ईसा मसीह देख लेते तो अपना माथा ठोक लेते। यदि कोई ईसा के व्यक्तित्व पर मुग्ध हो जाए, बाइबिल के पर्वतीय उपदेश से प्रेरित हो जाए, बाइबिल के दृष्टांतों से प्रभावित हो जाए और इसी कारण ईसाई बन जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ऐसे धर्म-परिवर्तन का मैं विरोध नहीं करुंगा। लेकिन विदेशी पादरी भारत क्यों आते हैं? सिर्फ इसलिए आते हैं कि यह उनकी सुरक्षित शिकार-भूमि है। मदर टेरेसा इसकी अपवाद नहीं थीं।
उन्हें आप नोबेल पुरस्कार दे दें या भारत रत्न दे दें या विश्व-रत्न दे दें, उससे क्या फर्क पड़ता है? किसी भी पुरस्कार या पद के कारण कोई झूठ, सच नहीं बन जाता। सच के सामने सभी पुरस्कार फीके पड़ जाते हैं। एक से एक अयोग्य लोगों को नोबेल पुरस्कार और भारत-रत्न पुरस्कार मिले हैं। इन पुरस्कारों को कवच बनाकर आप दिन को रात और रात को दिन नहीं बना सकते।

हर ओर शोर है, स्वाइन फ्लू

 अजीब सी दहशत है हर चेहरे में, फिज़ाओं में घुली हवा एक सिहरन पैदा कर रही है। कौन जाने किस सांस के साथ H1N1 वाइरस हमारे फेफड़े में पैवस्त हो जाये। हर ओर शोर है, स्वाइन फ्लू से भयाक्रांत चेहरे हैं। नकाबों से ढकी करुण आंखे हैं। आखिर ये कौन सा वाइरस है? अपने देश का है या दवाई कंपनियों का बताया हुआ वाइरस है? जिसके लिए हज़ार रुपये का टैमीफ्लू इंजेक्शन और सात हज़ार की जाँचें करवानी हैं। डाक्टरों से लेकर लैबोरेटरी केमिस्टों के खिले चेहरे और मेडिकल रेप्रेजेंटटिवों से लेकर दवा कंपनी मालिकों के चेहरों पर गहरी मुस्कान या फिर मीडिया के स्तंभित पत्रकारों के अतिउत्साहित वार्तालाप किस संवेदनहीनता का परिचय दे रहे हैं। सवा अरब की आबादी वाले भारत को महामारी का डर दिखा कर व्यापार साधने वाले विदेशी तत्व शायद ही समझ पाएँ की भारत के इतिहास में कभी कोई महामारी क्यों नहीं पनप पायीं?? टी॰बी॰, प्लेग, मलेरिया, कालरा, चेचक, एड्स, पोलियो आदि भयावह महामारियों का इतिहास स्पष्ट लिखता है कि इनके कारण कई सभ्यताओं ने अपना अस्तित्व खो दिया लेकिन भारत के पारंपरिक विज्ञान के सामने ऐसी असंख्य महामारियों ने आकर स्वयं दम तोड़ दिया। भारत के पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान ने कभी भी जीवाणुओं तथा विषाणुओं को अपना दुश्मन समझा ही नहीं। प्रकृति से ली गईं जड़ी बूटियों, मसालों, पत्तों, छालों, जड़ों ने हमें इन विषाणुओं के मध्य रहकर हमारी प्रतिरोधक क्षमताओं को एकल दिशा में जागृत करके प्राकृतिक वातावरण में सबसे सौम्य जलवायु के अनुकूल बनाया। ऐसी अनूठी चिकित्सा व्यवस्था विश्व की किसी भी सभ्यता के इतिहास में कहीं नहीं मिली। दादी के बनाए हुये अदरख और शहद के मिश्रण ने दमा पैदा करने वाले कफ को बाहर निकाला, नानी के तुलसी के पत्ते ने वाइरस जनित रोगों से हमारी रक्षा की तो माँ के हाथों की स्पर्श चिकित्सा से हड्डियों को मजबूती मिली जिन्होने सौ साल की उम्र पूरी करने की ताकत पायी……….कितना अनूठा विज्ञान है इस अदम्य और चिरकालिक सभ्यता के पास जिसको ये चंद मूर्ख पाश्चात्य दवा वैज्ञानिक हेय दृष्टि से देखते हैं, उपहास करते हैं…. कल हेपटाइटिस था, फिर बर्ड फ्लू आया, अब स्वाइन फ्लू आ गया है, आने वाले कल में डेंगू और मलेरिया की नयी नयी किस्में इस नए चिकित्सा विज्ञान को चुनौती देने के लिए कमर कस रही हैं। साल दर साल वाइरस, बैक्टेरिया, प्रोटोज़ोआ, फंगस आदि नए नए डी॰एन॰ए॰ संरचना के साथ अपने अस्तित्व को जीवित रखने की भयंकर कोशिश कर रहे हैं…… कभी सोचा है – क्या होगा इसका अंजाम??????   अनाज को खाने वाले चूहों की संख्या जब बढ़ जाती है तो बिल्ली पालते हैं, बिल्लियों की संख्या बढ्ने पर कुत्ता लाते हैं लेकिन कुत्तों की संख्या अधिक होने पर रेबीज के डर से फिर उन्हे मारना पड़ता है। ऐसे ही सृष्टि में एक एक जीवन और मृत्यु को नियंत्रित करने वाली कड़ी सदैव गतिमान रहती है जिसमे अस्तित्व के संघर्ष और जीवन की परिभाषा छिपी होती है। यह नया चिकित्सा विज्ञान नहीं समझ पा रहा। एक साधारण से फोड़े को सेप्ट्रान की गोली के जरिये दबा कर कैंसर बनाने वाला विज्ञान भला कब तक उस सभ्यता को जीवित रख पाएगा, जिसके पूर्वज उस फोड़े की गांठ को आक के पत्तों से निकाला करते थे……….   स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और इंफ्लुएंज़ा के विविध प्रकार भारतीयों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते यदि हम अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का अनुसरण करें तो। हमारे ग्रंथ बताते हैं कि किसी प्रकार के रोग को उत्पन्न करने के लिए तीन कारक – वात, पित्त और कफ होते हैं। जब इनके मध्य ऋतु परिवर्तन के कारण असंतुलन होता है तो शरीर व्याधियों से ग्रस्त हो जाता है। चूंकि एक विशाल जनसंख्या और उसके द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण अपनी विशालतम स्थिति तक पहुँच चुका है तो इनसे ग्रस्त जीवों की संख्या भी अधिक प्रतीत होती है. लेकिन भारत का जैव मण्डल कभी भी इसके वातावरण को जीवन विरोधी नहीं होने देता और जीवन अनुकूलन व्यवस्था को सदैव अक्षुण्ण रखता है। भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक साफ साफ लिख गए हैं कि मौसमी बुखार के आगमन का उल्लास मानना चाहिए क्योंकि यह शरीर को आने वाले मौसम के आघात के प्रति प्रतिरोधक क्षमता दे रहा है. इसी प्रकार जुकाम, पेचीस, उल्टी, फोड़े-फुंसियों के छोटे संसकरणों का चिकित्सा विज्ञान में अति महत्वपूर्ण स्थान था। नयी चिकित्सा प्रणाली, बीमार घोड़ों और बंदरों के शरीर में एंटीबाडीज़ बना कर मानव शरीर में प्रविष्ट कराती है रोग निदान के लिए। लेकिन शरीर किसी भी बाहरी तत्व को अपने भीतर अनिच्छा से ही प्रवेश करने देता है। जबकि इन एंटीबाडीज़ को शरीर खुद ही तैयार कर रहा होता है जो हमारी अस्थियों के संधि स्थल में गांठों के रूप मे प्रकट होते हैं। अब इन भीतरी और बाह्य एंटीबाडीज़ के मध्य भी शरीर के भीतर लड़ाई होती है शरीर इनको धकेलना चाहता है लेकिन निरंतर दवा की खुराक को शरीर में प्रवेश करा कर हम इसकी प्रतिरोधक क्षमता को खत्म कर देते हैं जिसका दीर्घकालिक परिणाम स्वयं के लिए घातक साबित होता है। भारतीय ग्रंथो में सबसे प्रमुखता आंवले को दी गयी है, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिए. किसी भी प्रकार से आंवले को शरीर में समाहित करने से pH संतुलित रहता है और रसायनों के अनुपात को जरूरत के मुताबिक नियंत्रित करता है।   गूढ विज्ञान निरंतर कर्म कर रहा है स्वयं मानव के भीतर जो अपनी हर क्रिया में जीवन अनुकूलन का सिद्धान्त समेटे है। कभी ध्यान से देखना जब किसी मनुष्य को चोट लगती है या बीमार पड़ता है तब वह गोल अर्थात सिकुड़ कर लेट जाता है, गहरी व लंबी साँसे लेने लगता है। इससे आशय ये है कि किसी भी हालत में शरीर सबसे पहले हृदय की रक्षा करना चाहता है यानि प्राण की। यदि यह प्राण ऊर्जा सुरक्षित रही तो, जैसा की शरीर को मुड़कर लेटने का आदेश देकर मस्तिष्क अब और भी बचाव के उपायों को करने के लिए इंद्रियों को तत्पर कर सकता है।   बहुत गहनता है शरीर के भीतर, जिसको सिर्फ भारतीय चिंतन ही पहचान पाया है। भारतीय संस्कृति के असंख्य शताब्दियों के सतत शोधों के कारण आज विश्व में मौजूद सभी चिकित्सा पद्धतियों का जनक है। चीन की एक्यूप्रेशर का प्राचीनता का भारत की स्पर्श या मालिश की चिकित्सा में है; विप्श्यना के वैभव का अंदाजा बताने को पक्षाघात को ठीक करने में उँगलियों के पोरों से निकलने वाली ऊर्जा, ग्रन्थों में अपना स्थान लिए है; होमियोपैथी की शुरुआत धन्वन्तरी के सत्व शोधन के साथ प्राण ऊर्जा के संतुलन में स्थित है, शल्य चिकित्सा से लेकर मानसिक व्याधियों को दूर करने के तांत्रिक अनुष्ठानों तक से भारतीय पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान की विशाल क्षमता का प्रदर्शन होता है।   साँप का जहर उतारने के लिए प्रेमचन्द्र की कहानी में पात्र पर घंटों ठंडे पानी के घड़े उड़ेले जाते हैं और उसे सोने नहीं दिया जाता। बड़ा सरल वैज्ञानिक सिद्धान्त है की अवचेतन अवस्था में शरीर की अन्य क्रियाओं के सुप्तावस्था में जाते ही जहर शरीर के अन्य हिस्सों में जाने की बजाय मस्तिष्क में इकट्ठा होकर पूरी तरह गिरफ्त में ले लेगा। मस्तिष्क की क्रियाओं को नियंत्रित करने वाली प्रणाली में पक्षाघात होने से एक बार सोया मानव फिर जाग नहीं पाएगा। न केवल साँप वरन किसी भी प्रकार के जहर को निष्क्रिय करने की हमारे पूर्वजों की अचूक तकनीकी मूर्ख तात्रिकों के फैलाये अंधविश्वास की भेंट चढ़ गयी।   गाँव की बूढ़ी औरतों के द्वारा धुले पोंछे चौके में नहाने के पश्चात ही जाने का कट्टर प्रण भारत की अव्वल दर्जे की हाईजीन चिंता तथा व्याधिमुक्त जीवन के प्रति संवेदनशीलता का प्रमाण है। आयुर्वेद के मूल सिद्धान्त कि जैसा भोजन शरीर में पहुंचता है उसी के फलस्वरूप वैसा बर्ताव शरीर करने लगता है। इसलिए पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान में पथ्य व अपथ्य भोजन का उल्लेख किसी भी बीमारी के निदान से पहले मिलता है। सामुद्रिक शास्त्र में वर्णित शरीर की स्थितियों की जानकारी, माथे के वलय, हथेलियों, पैरों, आँखों, धमनियों के परीक्षण के आधार पर व्यक्ति की मूल व्याधि का इलाज, इस सबसे प्राचीन सभ्यता का अदृश्य आधार थी। विडम्बना ही है कि X-Ray, CT स्कैन, MRI, अल्ट्रासाउंड, रक्त-मल-मूत्र की जाचें न किए जाने के बावजूद चिकित्सा के अतुलनीय कीर्तिमान स्थापित हुये। ऋतु परिवर्तन, वातावरण के अलावा जीव और निर्जीव पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है यही वजह है कि शीत रक्त समूह वाले जीव एक लंबी नींद के बाद जागने लगते हैं, दीर्घकालिक वृक्षों के पत्ते पीले पड़ कर झड़ने लगते हैं। आने वाली गर्मी का सामना करने के लिए हरे – चमकदार नए पत्तों का स्वागत करते हैं। जबकि छोटे अल्पायु पौधे इस दौरान अपने यौवन की चरमता पर पहुँच रहे होते हैं। फरवरी-मार्च के दौरान दीर्घायु जीवों की स्थिति असहज होती है, इस काल में शरीर रोग प्रतिरोधकों की क्षमताओं का परीक्षण करता है और जहां भी ये कमी देखता है उसकी भरपाई के लिए बाह्य चिन्ह प्रकट करता है। दो मुख्य ऋतुओं गर्मी व सर्दी के मध्य का समय अल्पायु छोटे जीवाणुओं व पौधों का जीवन काल होता है जबकि दीर्घायु जीवों के लिए कष्टकर समय।   अभी फ्लू वाइरस के विविध संस्करणों का प्रभाव देख रहे हैं, इसके बाद 25° से 40° सें॰ का तापमान परजीवों अर्थात पैरासाइटों, प्रोटोज़ोआ के लिए मुफीद हो जाएगा जिससे फेल्सिपेरम मलेरिया, डेंगू, मेनिंजाइटिस, परागज ज्वर आदि का काल होगा। इससे अधिक तापमान आने पर शरीर से लवणों की कमी, डिहाइड्रेशन, जीवाणु जनित व्याधि, फूड प्वायजनिंग, हैजा आदि की प्रचुरता होगी। गर्मी में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होने वाली वर्षा ऋतु कवकों और मध्य सूक्ष्म जीवों को जीवित कर देगी जिससे पेट संबन्धित रोग टाइफाइड, पीलिया आदि ग्रास करेंगी।   नवीन चिकित्सा इन सभी बीमारियों से लड़कर इनको जन्म देने वाले जीवों को मार कर शरीर को जीवित रखने की कला का प्रदर्शन करती है। उसका एक ही सिद्धान्त है दवाइयों के निर्धारित डोज़ द्वारा विषाणुओं – जीवाणुओं – कवकों को मार दो लेकिन इस पद्धति का परिणाम ये होता है की ये अल्पायु जीव अगले जीवन काल में इन दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करके सामने आ जाते हैं और उसी बीमारी का नया घातक रूप महामारी के तौर पर प्राण लेने लगता है लेकिन अपनी चिर जीवित सभ्यता के मूल सिद्धान्त की पड़ताल में एक ही सूत्र सामने आता है की हम किसी भी जीव को मारकर जीवित नहीं रह सकते हैं बल्कि उनके साथ सहअस्तित्व लिए खुद को सुरक्षित रखने के सतत आविष्कारों का सहारा लेना होगा। फेफड़ों का कैंसर और अमाशय में अल्सर पैदा करने वाली आल आउट या हिट के धुएं से मलेरिया पैदा करने मच्छरों को मारकर डेंगू मच्छरों को जन्म देने से बेहतर नीम की सूखी पत्तीयों का धुआँ और मच्छरदानी होती थी। नालियों और ठहरे हुये पानी में जब तक हमारे घरों का साबुन, डिटाल और हारपिक नहीं पहुँचा था तब तक मच्छरों को नियंत्रित रखने वाली मछलियाँ हमारा अस्तित्व संभाले रहती थीं।   और इन परिस्थितियों को जन्म देने वाली अंधी जनसंख्या नीति का समर्थन करने वाले सत्तालोलुप धर्मांध नेताओं कभी गौर से नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर देखना. बरसात में निंबौरी से लाखों छोटे छोटे नीम पैदा होते हैं लेकिन अगले साल उस जगह सिर्फ एक या दो ही पेड़ खड़े नज़र आते हैं। कभी सोचा है क्यों? अस्तित्व के संघर्ष में प्रकृति की बेहद जटिल व्यवस्था हैहर जीव के हिस्से में सीमित संसाधन हैं और जो इन संसाधनों को हासिल करने की लड़ाई में जीवित रहता है वही अगली पीढ़ी को जन्म दे पाता हैदवाओं और धन से बढ़ी क्षमता के बल पर हम जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में तो सक्षम हो सकते हैं लेकिन संसाधनों को उत्पन्न नहीं कर सकतेइसके लिए हमें प्रकृति पर ही निर्भर रहना हैयदि आज हम अपने मस्तिष्क और नवीन आविष्कारों के दम पर मानव जीवन बचाने में महारथी हैं तो हमारा ये भी कर्तव्य है की इसको सीमित रखने का उपाय भी हमें ही करना है।

Thursday, February 26, 2015

मातम में बदली जीत की खुशी

मोगा : मोगा में अकाली दल के उम्मीदवार काला बजाज की जीत की खुशियां उस समय मातम में बदल गई जब उनके भाई सन्नी बजाज की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि सन्नी बजाज काला बजाज का चचेरा भाई था। चुनावों के नतीजे आते ही जैसे ही काला बजाज को जीत की खबर मिली तो वह ख़ुशी में थे लेकिन जब उनके चचेरे भाई चारा बजाज को हार्ट अटैक आ गया तो उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वहीं मौके पर ही  उनकी मौत हो गई। अकाली नेता के भाई की मौत से इलाके में सन्नाटा छा गया 

मोहाली नगर निगम चुनावों में आया नया मोड़

मोहाली
: मोहाली नगर निगम चुनाव में वार्ड नंबर 47 में उस समय पर दिलचस्प मोड़ आ गया जब इस वार्ड की मतगणना तो हो गई पर जीत के ऐलान के लिए रिपोर्ट सील बंद करके हाईकोर्ट में भेज दी गर्इ।
दरअसल, इस वार्ड पर अकाली-भाजपा की तरफ से सुखदेव सिंह पटवारी, कांग्रेस की तरफ से पूर्व प्रधान जिला यूथ कांग्रेस मोहाली परमजीत सिंह वैदवान व एक और उम्मीदवार प्रेम सिंह इस वार्ड पर खड़े थे लेकिन सुखदेव सिंह पटवारी को योग्य उम्मीवार न ऐलान करते हुए रिटर्निंग अफ़सर ए.सी.ए. गमाड़ा नवजोत कौर ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी थी, जिसके बाद सुखदेव सिंह पटवारी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 
हाईकोर्ट ने मतदान से बिल्कुल पहले अकाली-भाजपा उम्मीदवार को सही बताते हुए उसे चुनाव लड़ने की इजाज़त दी थी। जिसके बाद सुखदेव सिंह पटवारी फिर अकाली-भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे थे। 
सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार मतदान की संख्या मुकम्मल हो गई है और इस वार्ड पर अकाली -भाजपा उम्मीदवार सुखदेव सिंह पटवारी ही विजेता हैं। अब देखना यह होगा कि सील बंद हाईकोर्ट भेजी गई रिपोर्ट में कौन विजेता निकलता है। इस सीट का नतीजा शुक्रवार को हाईकोर्ट की तरफ से घोषित किया जाएगा। 

सुस्त कंप्यूटर को तेज करने के 5 तरीके

कंप्यूटर की स्पीड को लेकर बहुत से लोग शिकायत करते नजर आते हैं। पुराने तो पुराने, नए कंप्यूटर लेने वाले भी कहते नजर आते हैं कि अभी-अभी कंप्यूटर खरीदा है लेकिन ये खुलने में बहुत वक्त लेता है।

बीबीसी आपको बता रहा है पांच ऐसे सरल उपाय जिनके आप अपने सुस्त निजी कंप्यूटर की रफ्तार बढ़ा सकते हैं। खास बात ये है कि इन तरीकों को अपनाने के लिए आपको कंप्यूटर विशेषज्ञ होने की भी जरूरत नहीं।

1-हार्ड डिस्क को डीफ्रैग्मेंट करें : हो सकता है कि आप यह भी न जानते हों कि डीफ्रैग्मेंट का मतलब क्या होता है लेकिन यह आपके कंप्यूटर के लिए कितना अहम है, इस बात से आप हैरान हो सकते हैं।

असल में डीफ्रैग्मेंटेशन डेटा की सफाई कर फाइलों को पढ़ने और उन तक पहुंचने की कंप्यूटर की रफ्तार को बढ़ा देता है। फाइलों के सुरक्षित रखे जाने के तरीकों के कारण समय के साथ-साथ हार्ड डिस्क की रफ्तार भी धीमी पड़ती जाती है।

जैसे-जैसे हार्ड डिस्क फाइलें बनाती है या मिटाती है, ये सूचना एक साथ रहने की बजाय, टुकड़ों में बंट जाती है और डिस्क के विभिन्न हिस्सों में संरक्षित हो जाती है। इस कारण कंप्यूटर को किसी फाइल को ढूंढना मुश्किल होता जाता है।

इसलिए पूरे डिस्क में फैली सूचनाओं के ब्लॉक को व्यवस्थित कर आप न केवल मेमरी में खाली जगह को बढ़ा सकते हैं बल्कि आप इन सूचनाओं को ढूंढने को भी आसान बना देंगे।

और यह बहुत मुश्किल नहीं है। ढेरों ऐसे प्रोग्राम हैं, जो आपके लिए यह काम कर देंगे, जैसे- स्मार्ट डीफ्रैग 3 (माइक्रोसाफ़्ट विंडोज 8 1 के लिए) या आईडीफ्रैग (ऐपल के ऑपरेटिंग सिस्टम एक्स के लिए)।

2. बेकार फाइलों को हटाएं : आजकल 200 जीबी से कम की हार्ड डिस्क को भर देना बहुत आसान है। यह जितना ही भरी होगी, उतनी ही सुस्त भी होगी। यह संभव है कि आपके पास काफी पुरानी फाइलें हों जिन्हें फिर कभी आप शायद ही इस्तेमाल करें। ये आपके कंप्यूटर की बहुत सारी कीमती जगह घेरे रहती हैं।

और इन पर काम करना उतना ही आसान है जितना एक एप को डाउनलोड करना। बाजार में ऐसे ढेरों प्रोग्राम हैं। आप स्पेसस्निफर या विनडर्टस्टेट जैसे प्रोग्राम से यह आसानी से जान सकते हैं कि कौन सी फाइल आपके हार्ड डिस्क में सबसे ज्यादा जगह घेरे हुए है।

यदि आपके पास ओएस एक्स पर चलने वाला मैक कंप्यूटर है तो फाइंडर सर्च सेवा के मार्फत यह करना और आसान है।

इस सेवा से आप अपने मैक कंप्यूटर में ऐप, प्रोग्राम, हार्ड डिस्क, फ़ाइल्स, फोल्डर और डीवीडी ड्राइव के बारे में दृश्य और व्यावहारिक दोनों ही तरीकों से जान सकते हैं और कोई भी सामग्री आप देख सकते हैं और उसे मिटा सकते हैं।

3-प्रोग्राम को ऑटोमेटिक रन करने से बचें : अपने कंप्यूटर को तेज करने का यह सबसे आसान तरीका है, खासकर तुरंत स्टार्ट करने के मामले में। यह देखना संभव है कि कौन-सा प्रोग्राम आपके कंप्यूटर पर चल रहा है और अगर आप चाहें तो उसे बंद कर सकते हैं।

मैक के ओएस एक्स में एक्टिविटी मॉनिटर के जरिए और विंडोज में टास्क मैनेजर के जरिए आप ये कर सकते हैं। अगर आपके पास मैक है तो आप सिस्टम प्रिफेरेंसेज में जाएं, यूजर्स और ग्रुप्स का विकल्प चुनें और जिस प्रोग्राम को बंद करना चाहें उस पर क्लिक करें।

अगर आपके पास विंडोज कंप्यूटर है तो आप एक निःशुल्क टूल ऑटोरन का इस्तेमाल कर सकते हैं जो अपने आप रन होने वाले प्रोग्राम को नियंत्रित करता है।

4-वाइरस और मैलवेयर को हटाएं : कुछ लोगों का मत है कि आप बिना एंटीवायरस सॉफ्टवेयर के अपना काम चला सकते हैं और उनका तर्क है कि यह बहुत ज्यादा मेमरी घेरता है और बिजली की अधिक खपत करता है, खासकर पुराने निजी कंप्यूटरों में।

लेकिन जो लोग विशेषज्ञ नहीं हैं, उनके लिए सुरक्षित रहने के लिए एंटीवायरस सॉफ्टवेयर लगाना ही बेहतर है।

अपने कंप्यूटर की विशेषता के अनुसार आप एंटीवायरस चुन सकते हैं। जो मेमोरी में सबसे कम जगह घेरता है और कम बिजली खपत करता है, वो है माइक्रोसॉफ्ट सिक्यूरिटी इसेंशियल्स, पांडा क्लाउड वाई एविरा। जबकि पर्सनल कंप्यूटर के लिए यह सूची काफी लंबी है।

हालांकि एक मिथक यह भी है कि मैक के कंप्यूटर में वायरस नहीं घुसता, लेकिन यदि आपका ऐपल कंप्यूटर सामान्य से अधिक धीमे चलता है तो आपको इस बात पर शंका करनी चाहिए। आपको एवास्ट या सोफोज जैसे निःशुल्क एंटीवायरस की सुरक्षा ले लेनी चाहिए।

5- वेब एप्लिकेशन का इस्तेमाल करें : अगर आप गूगल डाक्यूमेंट, एडोब के बजवर्ड या जोहो या पीपेल जैसे एप्लिकेशन से वो सब कुछ हासिल कर सकते हैं जिसकी आपको जरूरत है तो अलग से ऑफिस इंस्टाल करने और उसे इस्तेमाल करने की आपको क्यों जहमत उठाने की जरूरत क्या है?

एक ब्राउजर में काम करने वाले आज के वेब एप्लिकेशन लगभग सभी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।

इनका दो फायदा है : रन कराने के लिहाज से यह बहुत आसान हैं और ये हार्ड डिस्क में जगह भी नहीं घेरते।

यदि आप इन पांचों तरीकों को अपनाते हैं और आपका कंप्यूटर फिर भी बहुत तेजी से नहीं खुलता है तो शायद आपको टेक्निशियन को बुलाने की जरूरत है या फिर नई कंप्यूटर खरीदने की।

नाभा कौंसिल चुनावों में अकाली-भाजपा गठजोड़ ने मारी बाजी

नाभा (पटियाला)
पूरे पंजाब में संपन्न हुई कौंसिल चुनावों अधीन नाभा कौंसिल चुनावों में आज अकाली भाजपा ने बाजी मार ली, जबकि कांग्रेस के शहरी प्रधान पवन गर्ग चुनाव हार गए। बुधवार को शहर के दो वार्डो को छोड़कर 21 वार्डो से वोटिंग करवाई गई।
इस दौरान सख्त सुरक्षा प्रबंधों बावजूद इक्का दुक्का घटनाओं को छोड़कर पूरे शहर में वोटिंग अमन और शांति से संपन्न हुई। सुबह ही भारी बारिश के बावजूद भी वोटरों द्वारा बड़े उत्साह से अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया गया।
23 वार्डो में वार्ड नंबर सात से भाजपा की अंजू बाला और वार्ड नंबर 19 से पूर्व कौंसिल प्रधान हरी सेठ की पत्नी आजाद उम्मीदवार रेनू बाला के बिना मुकाबला विजेता एलान किया जा चुका है, जबकि बाकी वार्डो संबंधी हुए चुनावी मुकाबलों के प्राप्त नतीजों अनुसार वार्ड नंबर 1 से अकाली भाजपा की सुखविंदर कौर लालका ने कांग्रेस की जंगीर कौर को, वार्ड नंबर दो से अकाली भाजपा के गुरसेवक गोलू ने आजाद उम्मीदवार कुलवंत सियान को, वार्ड नं. तीन से अकाली भाजपा गठजोड़ के हरप्रीत सिंह प्रीत ने और कांग्रेस के जसविंदर सिंह को, वार्ड नं. 4 से कांग्रेसी की जगविंदर कौर ने अकाली भाजपा की किरन शर्मा को, वार्ड नंबर पांच से आजाद उम्मीदवार और पूर्व कौंसिल प्रधान गुरबख्शीश सिंह भंट्टी ने 837 वोटें प्राप्त करके अकाली भाजपा के ठेकेदार अमन गुप्ता को मिली 832 वोटों अनुसार 5 वोटों के फर्क से हराया।
वार्ड नंबर छह से अकाली भाजपा के दलीप बिंट्टू के विजय भाटिया, वार्ड नंबर आठ से अकाली दल के अशोक बिट्टू ने कांग्रेस के राजेश बबला को, वार्ड नंबर नौ से कांग्रेस के रजनीश शैंटी ने अकाली भाजपा को सोनू सिंगला, वार्ड नंबर दस से अकाली भाजपा की कृष्ण रानी ने कांग्रेस की रीना शर्मा को, वार्ड नंबर 11 से अकाली भाजपा के प्रमोद जिंदल ने कांग्रेस के शहरी प्रधान पवन गर्ग को, वार्ड नंबर 12 से कांग्रेस के रमेश तलवाड़ ने भाजपा की दिनेश शर्मा को, वार्ड नंबर 13 से अकाली भाजपा की ऊषा तुली ने कांग्रेस की रीना बंसल, वार्ड नंबर 14 से अकाली भाजपा गठजोड़ के खुशहाल कुमार बबलू खौरा ने कांग्रेस नथो देवी, वार्ड नंबर 15 से अकाली भाजपा के ठेकेदार दर्शन सिंह ने कांग्रेस के जगपाल महिमी को, वार्ड नं. 16 अकाली भाजपा की सुखजिंदर कौर ने कांग्रेस की सुनीता रानी, वार्ड नं. 17 से अकाली भाजपा के भोला राम ने कांग्रेस के महिंदरपाल सिंह को हराया।
वार्ड नंबर 18 कांग्रेस के नरिंदर सिंह भाटिया ने आजाद उम्मीदवार मनिंदरपाल सिंह को, वार्ड नं. 20 कांग्रेस के अमरदीप खन्ना ने अकाली भाजपा के प्रिंस को, वार्ड नं. 21 से कांग्रेस के एडवोकेट यशप्रीत भंदोहर ने अकाली भाजपा के हरसिमरन साहनी को, वार्ड नं. 22 से अकाली भाजपा की सुजाता देवी कांग्रेस की रणजीत कौर को, वार्ड नं. 23 से अकाली भाजपा की मानवरिंदर सिंह लस्सी ने कांग्रेस के रविंदर शर्मा को हराया।

दिल्ली में आप सरकार ने बिजली, पानी सस्ता किया,13 लाख परिवारों को मिलगा लाभ

दिल्ली। आम आदमी पार्टी ने बुधवार को बिजली-और पानी पर चुनाव में किया अपना वादा पूरा कर दिया। एक मार्च से दिल्ली में 400 यूनिट बिजली खपत पर आधी दरों से बिल अदा करना होगा और 20 हजार लीटर पानी हर माह मुफ्त मिलेगा।हालांकि 400 यूनिट से एक यूनिट भी अधिक बिजली खर्च करने पर उपभोक्ताओं को यह छूट नहीं मिलेगी। उन्हें पूरा भुगतान करना पड़ेगा वहीं 20 हजार लीटर से एक लीटर भी पानी अधिक इस्तेमाल करने पर उपभोक्ताओं को पूरे 20001 लीटर पानी का बिल अदा करना पड़ेगा। कैबिनेट के इस फैसले से सरकार पर 1677 करोड़ रुपए का सालाना भार पड़ेगा। 
उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने बताया कि कैबिनेट की बैठक में एक मार्च से 31 मार्च तक बिजली के बिलों में राहत देने के लिए 70 करोड़ रुपए की सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। हालांकि यह राहत तब तक इसी तरह जारी रहेगी जब तक कि कैग की रिपोर्ट नहीं आ जाती।सिसौदिया का दावा है कि 400 यूनिट तक बिजली की दरों को आधी दरों पर करने का दिल्ली की 90 फीसदी जनता को फायदा मिलेगा।इसी तरह 20 हजार लीटर मुफ्त पानी देेने के लिए सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के अंतिम महीने के लिए 20 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
पिछली बार 49 दिन की सरकार के दौरान दिल्ली में 13 लाख 31 हजार परिवारों को इस फैसले का लाभ मिला था। इस बार उम्मीद है कि करीब 18 लाख परिवारों को इसका लाभ होगा।

आजाद उम्मीदवारों का रहा दबदबा, कांग्रेस 3 पर सिमटी

बरनालाजिले की चार नगर काउंसिल बरनाला, तपा, धनौला और भदौड़ के चुनाव में आजाद प्रत्याशियों का दबदबा रहा। सुबह आठ बजे से शाम के पांच बजे तक हुए 82 फीसदी पोलिंग के बाद नतीजे चौकाने वाला रहा। मतदाताओं ने अकाली-भाजपा और कांग्रेस से दूरी बनाते हुए अधिकांश सीटों पर आजाद प्रत्याशियों को अपने प्रतिनिधि चुने। जिले के कुल 72 वार्डों में 26 शिअद, 7 भाजपा, 3 कांग्रेस के और 37 आजाद उम्मीदवारों के खाते में गए। जबकि भदौड़ के वार्ड नंबर 4 और 5 जबकि तपा के वार्ड नंबर 8 पर पहले से ही सर्वसम्मति होने से वहां चुनाव नहीं हुआ। 
शहरके कुछ वार्डों में वोटरों को डरा धमका कर और उनपर दबाव डालकर वोटें डलवाने को लेकर कई वार्डों में उम्मीदवार आपस में भिड़ गए। जहां पुलिस ने मौके पर पहुंचकर दोनों गुटों को खदेड़ा। शाम को मतदान खत्म होने से 10 मिनट पहले नगर काउंसिल के मतदान केन्द्र पर कुछ लोगों ने जाली मतदान करने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया। जहां पुलिस ने मौके पर पहुंचकर हल्का बल प्रयोग कर सभी को खदेड़ दिया। शहर के वार्ड नंबर 9, 10, 18, 23, 24, और 8 में उम्मीदवारों ने एक-दूसरे पर वोटरों पर दबाव डालने का आरोह लगाया। माहौल तनावपूर्ण होता देख एसएचओ ने पुलिस बल के साथ दोनों गुटों को खदेड़ दिया। 
बरनालाके कुछ वार्डों में कुछ मतदाताओं की वोटें कट जाने के कारण उन्होंने भारी रोष व्यक्त किया। पोलिंग स्टेशन पर वोट डालने पहुंचे अशोक कुमार, रमेश कुमार, मोहित, दीपक, नरोत्म आदि ने बताया कि उनके पास वोटर शिनाख्ती कार्ड तो है लेकिन वोटर लिस्ट में उनकी वोटें नहीं हैं। इसी तरह रेखा रानी, सीमा, करमजीत सिंह, प्यारा लाल, नीलम ने कहा कि वोटर लिस्ट में नाम ना होने से वह वोट डालने से वंचित रह गए।  
चुनावआयोग पंजाब की सख्त हिदायतों के बावजूद बरनाला में बुधवार को चुनाव के दौरान सरेआम आचार संहिता की धज्जियां उड़ीं। बेशक हलके में कई अधिकारी, आब्जर्वर और आरओ घूम रहे थे लेकिन उनका सरकारी तंत्र बुरी तरह से विफल रहा। क्योंकि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों की सैकड़ों गाड़ियां बेखौफ होकर मतदाताओं को घरों से लेकर आती और फिर वोट डलवाकर उन्हें वापस घर तक छोड़कर आती। आब्जर्वर संबंधित आरओ केवल बरनाला शहर का चक्कर लगाने तक ही सीमित रह

नगर काउंसिल बरनाला मन्नू , मक्खन समेत कई दिग्गज हारे

बुधवारदेर शाम को जिले की चारों नगर काउंसिल बरनाला, भदौड़, तपा और धनौला के चुनाव परिणाम आते ही जहां विजयी उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने ढोल की थाप पर भंगड़ा डालकर खुशी मनाई वहीं लोगों ने खुशी में पटाखे भी फोड़े। ऐसा लग रहा था मानो कि बुधवार की रात दिवाली की रात हो। आसमां में रंग बिरंगे पटाखें जहां विजयी उम्मीदवारों की खुशी को चौगुना कर रहे थे वहीं चुनावों में आजाद उम्मीदवारों का ही दबदबा रहा। बरनाला में कुल 31 वार्डों में से 15 वार्डों पर भाजपा के उम्मीदवार खड़े थे लेकिन इनमें से भाजपा दो सीटें ही जीत पाई जबकि कांग्रेसियों ने 31 वार्ड में से 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे जिनमें कांग्रेस की झोली में केवल 3 सीटें ही आई। वहीं बरनाला शहर का सबसे मेन 10 नंबर वार्ड जिसे लेकर अकाली-भाजपा कई बार आपस में भिड़ गए थे। इस वार्ड में अकाली-भाजपा के दोनों उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ खड़े थे और लोगों ने दोनों को बुरी तरह से पराजित कर दिया। अकाली दल से व्यापारी विंग के प्रदेशाध्यक्ष मन्नू जिंदल और भाजपा से ललित गर्ग आमने-सामने थे यह दोनों बुरी तरह से हारे। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार मुनीश काका भी जीतने में असफल रहे। वार्ड नंबर 10 में आजाद उम्मीदवार हेमराज गर्ग सभी उम्मीदवारों पर भारी रहे और उन्होंने शानदार जीत हासिल की। इसी तरह वार्ड नंबर 9 जोकि अति संवेदनशील था और शहर के ज्यादातर लोग इस वार्ड पर टिकटिकी लगाए देख रहे थे क्योंकि इस वार्ड पर नगर काउंसिल के पूर्व प्रधान एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मक्खन शर्मा का मुकाबला आजाद उम्मीदवार परवीन बबली और भाजपा के मुनीश मिंटा के साथ था। जहां आजाद उम्मीदवार परवीन बबली मक्खन शर्मा पर भारी रहे और बबली ने शानदार जीत हासिल की। इसी तरह शहर के वार्ड नंबर-23 में भाजपा के जिला ट्रांसपोर्ट के प्रधान नीरज गर्ग कांग्रेस के पूर्व नगर पार्षद महेश लोटा को टक्कर दे रहे थे लेकिन लोटा ने नीरज गर्ग को भारी वोटों के अंतर से पराजित कर दिया। वार्ड नंबर-24 में वरिष्ठ भाजपा नेता रघुबीर प्रकाश गर्ग ने कांग्रेस के हरविंदर चहल, आजाद उम्मीदवार राज धौला रामपाल सिंगला को बुरी तरह से हरा दिया। इसी तरह वार्ड नंबर 14 में अकाली दल के करमजीत बाजवा और भाजपा के आशीश पालको दोनों आमने-सामने थे जहां अकाली दल के करमजीत बाजवा ने आशीश को पराजित किया। इसी तरह वार्ड नंबर-18 से जगदेव जगगी, भाजपा के सुभाष गर्ग आमने सामने थे। जिसमें कांग्रेसी उम्मीदवार धर्मपाल धर्मा ने दोनों उम्मीदवारों को भारी टक्कर देते शानदार जीत हासिल की। वार्ड नंबर 9 से हारे नगर काउंसिल के पूर्व प्रधान एवं कांग्रेसी नेता मक्खन शर्मा। वार्ड नंबर 10 से हारे शिअद व्यापारी विंग के प्रदेशाध्यक्ष मन्नू जिंदल। 

दिल्ली: चुनाव से पहले ही AAP की मदद कर रहे थे बीजेपी के कई नेता

नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर सिमटी भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश ईकाई के नेताओं में जल्द आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल होने की होड़ लग सकती है। खबर है कि भाजपा के कुछ बड़े नेता भी 'आप' में जाने की जुगत लगाने में जुट गए हैं। यही नहीं, चुनाव से पहले 'आप' से टूटकर बीजेपी में आए नेता भी वापसी का रास्ता खोज रहे हैं। 'आप' नेता योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास और संजय सिंह समेत पार्टी के कई वरिष्ठों से भाजपा नेताओं ने संपर्क साधा है। भाजपा के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो पार्टी को बड़ी संख्या में पार्षदों के आप नेताओं से संपर्क करने की जानकारी मिली है। बीजेपी प्रदेश ईकाई के एक नेता के मुताबकि पार्टी को यह भी पता चला है कि कुछ नेता 'आप' के नेताओं को पार्टी की अंदरूनी जानकारी चुनाव के पहले से दे रहे हैं, जिसके चलते आप का हर दांव सटीक बैठ रहा था। जबकि भाजपा चुनाव में बुरी तरह हारी। दिल्ली के नगर निगम चुनाव में मजबूती से खुद को उतारने के लिए आप भी इन नेताओं को मौका देने का मन बना रही है।भाजपा के आधिकारिक सूत्रों की माने तो दिल्ली के तीन नगर निगमों के कामकाज को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार के सख्त तेवरों को देखते हुए पार्टी के कई पार्षद आप नेताओं के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार ऐसे निगम पार्षदों की सूची बन रही है, जो आप से संपर्क साध रहे हैं। पार्टी को यह भी आशंका सता रही है कि बड़ी संख्या में पार्षद दोबारा टिकट न मिलने के कारण चुनाव से पहले ही भाजपा छोड़ सकते हैं। अगले निगम चुनाव दो साल बाद होने हैं पर भाजपा को पार्टी में टूट-फूट की आशंका अभी से सता रही है।हाल ही क्षेत्रीय और प्रदेश स्तर के दो दर्जन से भी ज्यादा नेताओं को बीजेपी प्रदेश नेतृत्व की ओर से तलब किया गया था। भाजपा किसी भी सूरत में दिल्ली नगर निगम से बेदखल नहीं होना चाहती। नगर निगम चुनाव में सत्ता खोने का मतलब दिल्ली की राजनीति से भाजपा का पूरी तरह से बेदखल होना होगा। इसी के मद्देनजर केंद्रीय नेतृत्व की ओर से प्रदेश के नेताओं को पार्टी को बिखरने से रोकने और हर स्तर के नेताओं को टूटने से रोकने का निर्देश दिया गया है।भाजपा सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबकि आप के विजयी 67 विधायकों में लगभग 20 का भाजपा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पुराना नाता रहा है। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष बने रामनिवास गोयल 1993 में भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े थे। गोयल शाहदरा भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। गोकलपुर से विधायक बने फतेह सिंह भी 1993 में भाजपा के निशाने पर विधानसभा में पहुंचे थे। फतेह सिंह विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे हैं। भावना गौड़, नरेश बालयान, विशेष रवि, कपिल मिश्रा का भाजपा और संघ से जुड़ाव रहा है। आप की प्रथम कड़ी के नेता योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास और संजय सिंह के अलावा भाजपा नेताओं ने अपने पूर्व साथियों से भी मौका दिलाने की गुहार लगाई है। हालांकि इनके अलावा कई अन्य विधायाकों का भी भाजपा और संघ से जुड़ाव रहा है, जिनसे भी संपर्क साधा गया है।भाजपा की दिल्ली ईकाई में यह चर्चा आम होने के बाद से चुनावी दौर में कांग्रेस से पार्टी में शामिल हुए नेता भी बगलें झांकने लगे हैं। अब वह भी आप व अन्य पार्टियों में शामिल होने का मौका ढूंढ रहे हैं। इनमें से एक बदरपुर से विधायक रहे रामवीर सिंह विधूड़ी की भी हार के बाद फिर से पार्टी छोड़ने की चर्चा है।वहीं आप सूत्रों के मुताबकि भाजपा के उन नेताओं ने भी पार्टी में शामिल होने के लिए संपर्क साधा है, जो अपनी ही पार्टी के नेताओं की जानकारी दे रहे हैं। हालांकि आप का शीर्ष नेतृत्व इन नेताओं को अपने पाले में लेने का इच्छुक नहीं है, क्योंकि पार्टी का मानना है कि जो भाजपा नेताओं की जानकारी बाहर कर सकता है, वह आप नेताओं की जानकारी दूसरी पार्टी को भी दे सकता है। बताया जा रहा है कि 'आप' ऐसे अवसरवादी नेताओं से दूर रहना चाहती है।

काउंसिल चुनाव: पंजाब में 80% वोटिंग, शिअद-भाजपा की जबर्दस्त जीत, कांग्रेस पूरी तरह साफ


चंडीगढ़। पंजाब में बुधवार को 122 नगर काउंसिलों के चुनाव में अकाली-भाजपा गठजोड़ ने कांग्रेस का पूरी तरह सफाया कर दिया। 122 काउंसिलों के 2044 वार्डों में से अकाली दल को 803 और भाजपा को 348 सीटें मिली हैं। दूसरी ओर कांग्रेस को 253 सीटें मिलीं, लेकिन वह सिर्फ चार कांउसिलों में ही अध्यक्ष बना सकेगी। बाकी 118 में अकाली दल और भाजपा के अध्यक्ष बनेंगे। दिलचस्प बात ये है कि 624 आजाद पार्षद जीतकर आए हैं। इसके अलावा पीपीपी को दो और बसपा को चार सीटें मिली हैं। कांग्रेस को सिर्फ पातड़ां, खन्ना, दोराहा और नवांशहर में ही सफलता मिली है।  प्रदेशभर में कुल 80 फीसदी वोटिंग हुई। कुछ जगह हिंसा भी हुई। इस वजह से समाना और फिरोजपुर के दो वार्डों में चुनाव रद्द कर दिए गए। यहां कुछ लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं। 
 जहां भाजपा अलग होकर लड़ी, वहां बढ़त मिली
अकाली दल और भाजपा के गठजोड़ ने बेशक कांग्रेस का सफाया कर दिया हो, लेकिन जिन तीन नगर काउंसिलों में अकाली दल और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा वहां भाजपा ने आधार बढ़ाया है। तरनतारन में जहां भाजपा को पिछली बार मात्र 2 सीटें मिली थीं इस बार 8 सीटें मिली हैं इसी तरह सन्नौर में पांच और बटाला में पार्टी ने 11 सीटें जीती हैं। हालांकि, यह चिंगारी मात्र है लेकिन जिस तरह से कैबिनेट मंत्री अनिल जोशी के भाई राजा जोशी को पीटने के मामले में अकाली दल और भाजपा नेताओं के रिश्तों की खाई गहरी हुई है उसका असर दो साल बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में पड़ना तय माना जा रहा है।
हरसिमरत के हलके में शिअद का आधार खिसका
अकाली दल के लिए दूसरी बड़ी चिंता हरसिमरत बादल के हलके के जिले मानसा में उनका आधार खिसकना भी हो सकता है। जिले की छह में से पांच नगर काउंसिलों में आजाद काउंसलर जीते हैं। मानसा, बरेटा, बोहा, बुढलाढा और जोगा में आजाद पार्षद ज्यादा जीते हैं। अकाली दल काे नुकसान हुआ है। केवल सरदूलगढ़ में ही पार्टी की कुछ साख बची है।
जाखड़ के इलाके में ही नाक बचा पाई कांग्रेस
पातड़ां, नवांशहर, खन्ना, अबोहर, दोराहा आदि में ही कांग्रेस मुकाबले में दिखी। बाकी शहरों में से ज्यादातर में तो आजाद पार्षद ही दूसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस खिसककर तीसरे स्थान पर चली गई है। विपक्ष के नेता सुनील जाखड़ के अपने शहर अबोहर में भी अकाली भाजपा का ही प्रधान बनेगा। यहां पार्टी ने 13 सीटें जीतीं, जबकि अकाली-भाजपा गठजोड़ ने 16 सीटें जीतीं।
बरनाला  नगर कौंसिल बरनाला की चुनावों में कांग्रेस पार्टी को 3, शिअद को 12 सीटों पर, भाजपा को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि 13 शेष सीटों पर आजाद उम्मीदवारों का पलड़ा भारी रहा। इन परिणामों में स्पष्ट हो गया है कि अकाली-भापजा बहुमत के समीप है। वार्ड नंबर 1 में से आजाद उम्मीदवार सिंदरपाल कौर, वार्ड नंबर 2 से हरबंस सिंह आजाद, वार्ड नंबर 3 में मास्टर कर्म सिंह आजाद,वार्ड नंबर 4 में सुनीता कौर शिअद, वार्ड नंबर 5 में शिअद के तेजिन्द्र सिंह सोनी जागल, वार्ड नंबर 6 में शिअद के संजीव शोरी, वार्ड नंबर 7 में आजाद उम्मीदवार हरजीत कौर ने, वार्ड नंबर 8 में सुखपाल सिंह रूपाणा शिअद, वार्ड नंबर 9 में आजाद उम्मीदवार प्रवीन कुमार बबली ने, वार्ड नंबर 10 में हेमराज गर्ग, वार्ड नं. 11 से यादविंद्र बिट्टू, वार्ड नंबर 12 में विनोद कुमार चौबर, वार्ड नंबर 13 में इन्दू गोयल आजाद उम्मीदवार, वार्ड नंबर 14 में कर्मजीत सिंह बाजवा शिअद, वार्ड नंबर 15 में मनजीत सिंह आजाद, वार्ड नंबर 16 में प्रवीण रानी आजाद, वार्ड नंबर 17 में जगराज सिंह आजाद, वार्ड नंबर 18 में कांग्रेस पार्टी के कुलदीप कुमार धर्मा, वार्ड नंबर 19 में रमा शर्मा आजाद, वार्ड नंबर 20 में अमृत पाल शिअद, वार्ड नंबर 21 में शिअद के धर्म सिंह फौजी, वार्ड नंबर 22 में शिअद की राजिन्द्र कौर, वार्ड नंबर 23 में कांग्रेस महेश लोटा, वार्ड नंबर 24 में रघबीर प्रकाश गर्ग, वार्ड नंबर 25 में कृष्णा देवी आजाद, वार्ड नंबर 26 में मंजू शर्मा भाजपा, वार्ड नंबर 27 में शिअद के रविन्द्र सिंह रम्मी ढिल्लों ने, वार्ड नंबर 28 में सुरजीत कौर शिअद, वार्ड नंबर 29 में शिअद के परमजीत सिंह ढिल्लों, वार्ड नंबर 30 में आजाद उम्मीदवार गुरपाल सिंह शम्मा। जिला चुनाव अफसर-कम-डिप्टी कमिश्रर गुरलवलीन सिंह सिद्धू ने बताया कि आज जिले में 69 वार्डों के लिए कुल 82 फीसदी पोलिंग हुई। उन्होंने बताया कि आए परिणामों में शिअद के 24, भाजपा के 5, कांग्रेस के 3 व 37 उम्मीदवार आजाद विजयी रहे। यहां यह भी वर्णनीय है कि जिले के कुल 72 वार्डों में 3 वार्ड, जिनमें से भदौड़ के 4 व 5 नंबर वार्ड व तपा मंडी के 8 नंबर वार्ड के उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं। धनौला के वार्ड नंबर 1 से अमनदीप कौर आजाद, 3 से गुरजंट सिंह आजाद, 3 से सुरजीत सिंह आजाद, 4 से मुख्तियार कौर भाजपा, 5 से मनपाल सिंह शिअद, 6 से गुरमीत सिंह आजाद, 7 से जसवीर कौर आजाद, 8 से जसमेल कौर आजाद, 9 से राजिन्द्रपाल सिंह आजाद, 10 से राजवंत कौर शिअद, 11 से बूटा खां आजाद, 12 से बहादुर सिंह आजाद व 13 से सर्वजीत कौर शिअद व 14 से कुलविन्द्र सिंह आजाद व 15 से गुरमीत सिंह शिअद उम्मीदवार विजयी रहे। भदौड़ में 1 से परमजीत सिंह शिअद, 2 से अशोक कुमार शिअद, 3 से जतिंद्र सिंह आजाद, 4 से सुरजीत कौर भाजपा सर्वसम्मति, 5 से हंसराज सिंह शिअद सर्वसम्मति, 6 से गुरजंट सिंह आजाद, 7 से दियालो आजाद, 8 से जसविन्द्र सिंह शिअद, 9 से गोकल सिंह भाजपा, 10 से सुखदेव कौर आजाद, 11 से परमजीत सिंह आजाद, 12 से जसवीर सिंह शिअद, 13 से चरणजीत कौर आजाद उम्मीदवार विजयी रहे। 
लौंगोवाल  नगर कौंसिल के वार्ड नं. 1 से गुरमीत कौर, वार्ड नं. 2 से रमनदीप सिंह ने, वार्ड नं. 3 से बेअंत सिंह, वार्ड नं. 4 से रमनदीप कौर, वार्ड नं. 5 से जगदेव सिंह, वार्ड नं. 6 से भुपिन्दर सिंह, वार्ड नं. 7 से हरपाल कौर वार्ड नं. 8 से नरिन्दर सिंह, वार्ड नं. 9 से रमेश कुमार गोलू, वार्ड नं. 10 से बलजीत कौर, वार्ड 11 से जगशीर सिंह गांधी, वार्ड 12 से परमजीत सिंह गांधी, वार्ड 13 से रजनी शर्मा, वार्ड नं. 14 से अवतार सिंह दुल्लट, वार्ड 15 से अमनदीप कौर ने विजय प्राप्त की। 
सुनाम  नगर कौंसिल चुनावों को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह देखने को मिला। सुबह थोड़ी वर्षा के बाद मतदाता अपने वोट डालने पूरी गर्मजोशी के साथ पोलिंग बूथों पर पहुंचे जहां उन्होंने बढ़-चढ़कर मतदान किया। डी.एस.पी. जगतप्रीत सिंह पुलिस बल के साथ विभिन्न वार्डों के पोलिंग बूथों पर गए। उन्होंने बताया किसभी जगह पूरी अमन-शांति के साथ चुनाव हो रहे हैं कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ नहीं। इस मौके पर विभिन्न वार्डों में अपने कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेता राजिन्द्र दीपा भी पहुंचे। 
तपा मंडी  शहर के पूरे 15 के 15 वार्डों में नगर कौंसिल की चुनावों को लेकर सारा दिन मेले वाला माहौल रहा। तीन-चार छोटी-छोटी लड़ाइयों को लेकर शेष दिन चुनावों का काम ठीक ढंग से चलता रहा। पुलिस ने सुरक्षा के पूरे प्रबंध किए हुए थे। तपा पुलिस के अलावा थाना शैहणा भदौड़ व थाना रूड़ेके कलां की पुलिस भी चुनाव दौरान गश्त पर रही। शहर के वार्ड नंबर 15, 9, 5 को छोड़कर किसी अन्य वार्ड में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई।  
धूरी  नगर कौंसिल धूरी के हुए चुनाव में कुल 79 प्रतिशत लोगों ने अपने मत का इस्तेमाल किया है। जानकारी के अनुसार शहर के वार्ड नंबर 1 में से भाजपा उम्मीदवार नीना रानी, 2 में से आजाद उम्मीदवार पुष्पिंदर शर्मा, 3 में से आजाद उम्मीदवार सुरिन्द्र गोयल बांगरू, 4 में भाजपा उम्मीदवार योगिता शर्मा, 5 में आजाद उम्मीदवार अश्विनी कुमार धीर, 6 में अकाली दल समर्थित पुरुषोत्तम कांसल, 7 में भाजपा उम्मीदवार जमीला, 8 में अकाली दल (ब) उम्मीदवार अजय परोचा, 9 में आजाद उम्मीदवार संतोष रानी, 10 में आजाद उम्मीदवार संदीप कौर चट्ठा, 11 में आजाद उम्मीदवार रण सिंह, 12 में अकाली दल समर्थित चरण दास, 13 में आजाद उम्मीदवार आशा रानी लद्ड़, 14 में आजाद उम्मीदवार व भाजपा-कांग्रेस द्वारा समर्थित संजय जिंदल, 15 में कांग्रेस समर्थित संदीप तायल पप्पू, 16 में अकाली दल समर्थित अमृत पाल कौर, 17 में अकाली दल समर्थित साधू राम, 18 में आजाद उम्मीदवार राजदीप कुमार, 19 में अकाली दल समर्थित तनवीर कौर, 20 में आजाद व कांग्रेस समर्थित अमरीक काला तथा 21 नंबर वार्ड में अकाली दल समर्थित मलकीत सिंह ने पार्षद के चुनाव में जीत हासिल की है। शहर के हुए इस चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर वार्ड नंबर 14 में देखने को मिला है, जहां पर अकाली दल समर्थित व नगर कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष रघुवीर चंद थानेदार चुनाव मैदान में थे। यहां से उनके मुकाबले सिर्फ आजाद उम्मीदवार संजय जिंदल ही चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में विजेता रहे संजय जिंदल को 1033 और नगर कौंसिल के पूर्व प्रधान रघुवीर चंद थानेदार को 920 वोटें हासिल हुई हैं। उन्होंने अपने विरोधी उम्मीदवार को 113 वोटों के अंतर से हराया है। 

Tuesday, February 24, 2015

दिल्ली की पराजय से आगे भाजपा की प्रगति यात्रा

पिछले दिनों दिल्ली विधान सभा के लिये हुये चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की पराजय हुई है । विधान सभा की ७० सीटों में से पार्टी केवल तीन सीटें जीत पाई । शेष सभी सीटें आम आदमी पार्टी ने गटक लीं । सोनिया कांग्रेस को कोई भी सीट मिलने की आशा नहीं थी और उसी के अनुरूप पार्टी ने कोई सीट नहीं जीती । जिन दिनों दिल्ली विधान सभा के लिये चुनाव हो रहे थे , उसके आसपास ही असम प्रदेश में नगर पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनाव हो रहे थे । कुछ प्रदेशों में कुछ सीटों पर उप चुनाव हो रहे थे । लेकिन दिल्ली के शोर में सब कुछ दब गया । जिस दिन दिल्ली के चुनावों के नतीजे आये मैं उस दिन मणिपुर में था । उन्हीं दिनों असम के स्थानीय निकायों के चुनाव नतीजे भी आ रहे थे । लेकिन तथाकथित इलैक्ट्रोंनिक मीडिया दिल्ली शहर को ही पूरा भारत मान लेता है और उससे बाहर देखने को अपनी चौहान समझता है । इम्फ़ाल में कई प्रबुद्ध लोगों ने कहा दिल्ली के तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया के लिये असम के चुनावों की कोई अहमियत ही नहीं है । दिल्ली शहर देश की राजधानी है इसमें कोई शक नहीं । वहाँ के चुनाव परिणामों का ज़िक्र जरुरी है , इसमें भी कोई शक नहीं । लेकिन मीडिया को कहीं न कहीं संतुलन तो बनाना ही चाहिये ।
लेकिन संतुलन न मीडिया अपनी कवरेज में बना पाया और न दिल्ली के मतदाता अपने निर्णय में । अब जब भाजपा वहाँ हार गई है , तो हर व्यक्ति , मैंने कहा था , कि मुद्रा में उतर आया है । मैंने कहा था और उन्होंने सुना नहीं , की तर्ज़ पर पार्टी के भीतर विश्लेषण हो रहे हैं । बाहर के विश्लेषण का स्वर दूसरा है । मोदी की लहर उतर गई है । अब यदि सोनिया कांग्रेस से लेकर जदयू तक बरास्ता लालू यादव /ममता बनर्जी एक जुट हो जायें तो खोया हुआ सिंहासन वापिस पाया जा सकता है । किरण बेदी को लेकर , जो प्रयोग भारतीय जनता पार्टी ने किया , उसको लेकर पार्टी के भीतरी और बाहरी दोनों प्रकार के आलोचक सहमत हैं कि उस प्रयोग के कारण नुक़सान ही नहीं हुआ , पार्टी का आम कार्यकर्ता आहत भी हुआ । लेकिन जो पार्टियाँ , अली बाबा चालीस चोर की तर्ज़ पर , भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ एकजुट होकर सिंहासन के लिये संघर्ष करने के मनसूबे दिल्ली के चुनाव परिणामों को लेकर बना रहीं थीं उनके रास्ते में असम और अन्य प्रदेशों के यंत्र तत्र उपचुनावों के परिणाम बाधा पहुँचा रहे हैं ।
असम में 74 नगरपालिकाओं/नगर पंचायतों के लिये चुनाव उन्हीं दिनों हुये थे जब दिल्ली में चुनाव हो रहे थे । सोनिया कांग्रेस इनमें से कुल मिला कर १७ पर अपना बहुमत प्राप्त कर सकी । भारतीय जनता पार्टी ने ३९ नगर पालिकाओं में विजय प्राप्त की । असम गण परिषद केवल दो में ही जीत हासिल कर सकी । ध्यान रखना होगा कि अभी तक सोनिया कांग्रेस के पास इन ७४ नगरपालिकाओं में से ७१ पर क़ब्ज़ा था । जिन नगरपालिकाओं/नगर पंचायतों के लिये चुनाव हुये , उनमें कुल मिला कर ७४६ बार्ड या सीटें हैं । भारतीय जनता पार्टी ने इनमें से आधी से भी ज़्यादा सीटें जीतीं । सोनिया कांग्रेस केवल २३० सीटें जीत सकीं । बंगलादेशियों की पार्टी ए.आई.यू.डी.फ केवल आठ सीटें जीत पाईं । सी पी एम को केवल एक सीट मिली । सबसे बड़ी बात तो यह कि भाजपा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के अपने नगर जोरहाट की नगरपालिका पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया । सोनिया कांग्रेस के लिये चिन्ता की बात तो यह है कि प्रदेश में इसी साल विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं ।
पूर्वोत्तर भारत में असम के बाद जिस प्रदेश में भाजपा महत्वपूर्ण राजनैतिक दल की हैसियत में आ गई है , वह अरुणाचल प्रदेश है । साठ सदस्यीय विधान सभा में सोनिया कांग्रेस के ४७ और भाजपा के ११ सदस्य हैं । दो सदस्य निर्दलीय हैं । वहाँ के मुख्यमंत्री नवम टुकी सोनिया गान्धी के खासुलखास हैं । उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद अरुणाचल प्रदेश में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों में हैरानी पैदा करने वाली तेज़ी देखी गई है । सोनिया कांग्रेस के ख़िलाफ़ प्रदेश की अनेक जनजातियों में असंतोष बढ़ रहा है । पिछले दिनों प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जारबोम के देहान्त के बाद विधान सभा की लिरोम्बा सीट के लिये दिल्ली चुनाव के कुछ दिन बाद ही उपचुनाव हुआ । सीट सोनिया कांग्रेस व मुख्यमंत्री के लिये प्रतिष्ठा की सीट बन गई । यह ठीक है कि सोनिया कांग्रेस ने यह सीट जीत ली और भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी बाई गादी हार गया । लेकिन दोनों पार्टियों को प्राप्त मतों का अन्तर केवल ११९ था । राजनैतिक हलकों में व्यवहारिक तौर पर इसे मुख्यमंत्री की हार ही माना जा रहा है । ज़ाहिर है असम और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा सोनिया कांग्रेस को पछाड़ने की स्थिति में आ रही है । ये दोनों ऐसे राज्य हैं , जिनमें आज से कुछ साल पहले जनसंघ/भाजपा बेगानी मानी जाती थी । इसके बाद पश्चिमी बंगाल में , बनगांव में लोकसभा और किशनगंज में विधान सभा के लिये हुये उपचुनाव की चर्चा करेंगे । पश्चिमी बंगाल में लम्बे अरसे तक सी.पी.एम और सोनिया कांग्रेस मुख्य राजनैतिक दलों के रुप में स्थापित रहीं । इसके बाद मुख्य मुक़ाबला सी.पी.एम और ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस में होने लगा । लेकिन पिछले कुछ समय से पश्चिमी बंगाल का परिदृष्य बदला है । अब वहाँ मुख्य मुक़ाबला तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में होने लगा है । ऊपर जिन उपचुनावों का ज़िक्र किया गया है , उनके परिणाम इसी दिशा की ओर संकेत करते हैं । बनगांव लोकसभा चुनाव में जीत चाहे तृणमूल कांग्रेस की हुई लेकिन सोनिया कांग्रेस चौथे नम्बर पर खिसक गई और उसे केवल २९ हज़ार वोटें मिलीं । दूसरे नम्बर पर सी पी एम रही , लेकिन सी पी एम और भाजपा को प्राप्त वोटों का अन्तर केवल दस हज़ार के आसपास रहा । इसी तरह किशनगंज विधानसभा के लिये सोनिया कांग्रेस को केवल पाँच हज़ार के आसपास वोट मिले । भाजपा दूसरे नम्बर पर रही और सी पी एम तीसरे स्थान पर रही । तृणमूल कांग्रेस ने स्वयं माना की उसकी जीत के बाबजूद , भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में दूसरे स्थान पर आ रही है । यद्यपि उसे यह स्वीकार करने में खिसियाहट हो रही थी । जब ममता पत्रकारों को तृणमूल की जीत पर बधाइयाँ दे रही थीं तो किसी पत्रकार ने पूछा , दूसरे नम्बर वालों के बारे में क्या कहना है ? तो वे ग़ुस्से में बोलीं, दूसरे तीसरे की बात मत करो । सोनिया कांग्रेस को इन दोनों सीटों पर तीन प्रतिशत से भी कम वोट मिले और दोनों स्थानों पर उसकी ज़मानत ज़ब्त हो गई । २०१४ के लोकसभा चुनावों में पश्चिमी बंगाल में भाजपा को १७ प्रतिशत से भी ज़्यादा वोट मिले थे और वह प्राप्त मतों के लिहाज़ से तृणमूल कांग्रेस और सी पी एम के बाद तीसरे नम्बर पर आ गई थी । सोनिया कांग्रेस का स्थान चौथे नम्बर पर था । उसके बाद से राज्य में चार उपचुनाव हुये , जिनमें से एक तो भाजपा ने जीत ही लिया और प्राप्त मतों के हिसाब से पार्टी राज्य में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ रही है ।
यह स्पष्ट है कि दिल्ली के चुनाव परिणामों के बाबजूद भारतीय जनता पार्टी उन प्रदेशों में भी मुख्य राजनैतिक दल के तौर पर उभर रही हैं , जहाँ कुछ साल पहले उसके आधार अति सीमित था । पर दिल्ली के शोर शराबे में भाजपा की यह प्रगति यात्रा उभर नहीं पाई । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं की भाजपा को दिल्ली के चुनावों का विश्लेषण नहीं करना चाहिये । लेकिन पार्टी के भीतर से ऐसे विश्लेषणों में नीर क्षीर विवेचन कितना कठिन होता है , यह बताने की जरुरत नहीं । यह अपना आप्रेशन बिना किसी एनथीसिया के स्वयं करने के बराबर होता है । क्या भाजपा यह कर पायेगी ?

नेताजी सुभाष बाबू को श्रद्धांजलि

यह मेरा सौभाग्य ही है कि मैं भारत के महान सपूत, स्वतंत्राता संग्राम के एक अगवा ओर आजाद हिन्द फौज के महान नायक पर कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। मैं खुशकिस्मत हूँ कि देश के जननायक, महान वीर और शहीद सुभाष चन्द्र बोस के एक प्रमुख सहयोगी कर्नल महबूत अहमद से मिला हूँ। मैंने उनके मुख से अनेकों गोष्टी और सेमीनारों में नेताजी की गाथा और देश के लिऐ उनके बलिदानों की दास्तान सुनी है। सुभाष बाबू की जीवनी पर उन्होंने उर्दू और हिन्दी में एक पुस्तक भी लिखी है जिसे खुदाबख्स पुस्तकालय पटना के तत्वावधन में प्रकाशित भी किया गया है। उस समय महबूब साहब किसी अरब देश में भारत के राजदूत रह चुके थे। पिछले दिनों जब मैं करीब करीब बीस वर्षों के पश्चात् पटना गया तो  कर्नल साहेब का घर, उन के उत्तराध्किारियों ने किसी बिल्डर को बेच कर कहीं और जा चुके थे। नेताजी के जन्म दिन 23 जनवरी पर मैं कर्नल साहेब की यादों को अपने शब्दों में ढालने का प्रयास कर रहा हूँ।
कुछ कर्नल महबूब के सम्बंध् में बताता चलूं, महबूब साहेब 72 वर्ष की आयु में 19 मार्च 1992 को इस दुनिया से चले गए। महबूत साहेब का जन्म 1920 में पटना में हुआ था। आप नेता जी के चन्द युवा, और बड़े ही विश्वासपात्र साथियों और सहयोगियों में से थे। कर्नल साहेब की शिक्षा देहरादुन स्थित राॅयल इण्डियन मलेट्री काॅलेज में हुई थी, अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात् आप की नियुक्ति सेकन्ड लेफ्टीनेन्ट के रूप में हुई थी। 1942 में महबूत ने ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर, अपने आपको आजाद हिन्द फौज, नेताजी और भारत माता के हवाले कर दिया था। कर्नल साहेब ने अपनी आत्मकथा में ब्रिटिश सरकार की नोकरी छोड़ने और आजाद हिन्द फौज में शामिल होने और नेता जी के साथ बीताये पलों को 1985 में पटना से निकलने वाले हिन्दी दैनिक, पाटलीपुत्रा टाइम्स में छापा था, जिसे बाद के दिनों में अन्य भाषाओं में अनुवाद भी किया गया और उनके द्वारा लिखे गऐ लेख को पुस्तक का आकार दिया गया था। महबूब साहेब ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि मेरा जन्म चौहट्टा, पटना में हुआ था, मेरा सम्बन्ध् एक गरीब परिवार से था, पिता जी मामूली डाॅक्टर थे, 1932 में जब देहरादून पढ़ाई करने गया। उस समय मैं ग्यारह वर्ष का था, कर्नल साहेब के अनुसार देहरादुन में वह पहले बिहारी छात्र थे और उनके छः महीनों के बाद कर्नल एन के सिंह साहेब देहरादून पढ़ने आए थे। उन्होंने कहा था कि एक वर्ष पश्चात् वह स्कूल फुटबाल टीम के कैप्टन बने थे, आल इण्डिया संयुक्त सेना परीक्षा में वह दूसरे प्रयास में सफल हुऐ थे। कर्नल साहब ने कहा था, मुझे याद आता है। देश प्रेम का वह जनून, याद आता है देश पर मर मिटने का जज्बा और उन जज्बों में कैप्टन राम सिंह, शोकत मल्लिक, कर्नल हबीब, शाहनवाज खान और उन देशभक्त चेहरों में सबसे आकर्षक और सुन्दर नेता जी का। 1943 में नेता जी को देखने और उन्हें सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। उस समय मैं ब्रिटिश इण्डियन सेना में सेकेण्ड लेफ्टीनेंट के पद था। 1940 में मेलेट्री परीक्षा में पास होकर फौज के एक बटालियन के साथ वर्मा भेजा गया थां उस समय हिटलर की सेना यूरोप को रौंदने के करीब थी। 1943 में मुझे सिंगापुर भेजा गया जहां पर मेरी मुलाकात नेता जी से हुई थी। कैथे भवन में आयोजित उनके भाषण को सुनकर मैंने अपने आप को नेता जी और देश के हवाले कर दिया था और मुझे आजाद हिन्द फौज़ में भर्ती कर लिया गया और भर्ती के एक महीने बाद मुझे सुभाष रेजिमेन्ट का ऐजूटेन्ट बनाया गया और इसके अध्ीन मेरा पहला मोर्चा था। भारत, वर्मा सीमा जहां पर हमारी पहली मुठभेड़ ब्रिटिश सेना से हुई थी और इस लड़ाई में प्राप्त जीत ने हमारे हौसलों को और बढ़ाया और नेताजी का प्रत्येक शब्द मुझे आशवाणी लगता था। इस जीत के पश्चात् 1944 ई. में इम्फाल के समीप मैटिंग पर हमारा अगला मार्च था और भारतीय जमीन पर हमने आजाद हिन्द फौज़ का झण्डा फहरा दिया और कर्नल शोकत मलिलक की अगुवायी में मैरिंग में आजाद हिन्द सरकार का ऐलान कई दिनों तक टोकियो रेडियो और ताशकन्द रेडियो से प्रसारित होता रहा। इस जीत पर नेता जी का सम्बोधन अविस्मरिणय रहा। इस अवसर पर नेताजी ने शोकत मल्लिक को विशेष प्रशस्ती पत्र भेंट किऐ। 1944 में रंगुन पहुंचते ही नेता जी ने मुझे अपने पास बुला लिया था। एकान्त में उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम आज मेरे भरोसे का नेतृत्व करोगे और आज आजाद हिन्द फौज़ का सारा दारोमदार तुम पर है और मैं नेता जी के भरोसों पर खड़ा उतरा और अपनी जिम्मेवादी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया। रंगुन में आजाद हिन्द फौज़ में भर्ती होने वालों की बड़ी संख्या थी। नेताजी के आते ही नेताजी जिन्दाबाद और जय हिन्द के नारों से वातावरण गुंज उठा था और यहीं से नेता जी ने अपना ऐतिहासिक नारा ‘‘तुम मुझे खुन दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ दिया था। 20 से 22 घंटों तक कठिन परिश्रम और लगातार काम करने वाले नेता जी हम सबके आदर्श थे। अगस्त 1944 को जब आजाद हिन्द के कुछ सिपाही अंग्रेजी सेनाओं से लड़ते हुऐ जख्मी हुऐ थे जिनमें लाल सिंह, राम प्रसाद, मुहम्मद खान, मेजर आबिद हसन थे, नेता जी मुझे साथ लेकर उनसे मिलने माण्डले अस्पताल गऐ थे। नेता जी का दर्द जख्मी जवानों के प्रति मैंने देखा भी था और महसूस भी किया था।
सिंगापुर में नेताजी ने आजाद हिन्द फौज़ की कार्यवायी को तेज करने और जापान से हथियार खरीदने का फैसला किया था और नेताजी के सम्बोधन का भारतीयों पर इतना प्रभाव पड़ा कि लोग अपना सब कुछ देश सेवा और नेताजी पर बलिदान करने लगे। हबीब नामक व्यक्ति ने अपना सारा धन और अपनी सारी सम्पति आजाद हिन्दी फौज़ के नाम कर दिया था। नेता जी ने आगे बढ़कर उनका अभिवादन तक किया था। सिंगापुर में नेताजी के जन्मदिन के अवसर पर भारतीयों ने उन्हें सोना चांदी से तौला था, एक गुजराती महिला ने नेता जी के हाथों में अपनी जीवन भर की कमाई रख दी थी। नेताजी ने कहा था बहन तुम्हारी चरणों की ध्ूल प्राप्त करने के लिए देवताओं का मन भी आज करता होगा।
नेताजी भारत की गरीबी, खस्ताहाली और अन्य खराबियों के लिये ब्रिटिश सरकार को जिम्मेवाद मानते थे। नेताजी देश में समाजवाद स्थापित करना चाहते थे। नेता जी ने मुझे बताया था, मैं प्रत्येक दिन अपने खाने में से दो रोटियां बचा लेता और स्कूल के रास्ते में बैठी एक बूढ़ी महिला को देता। एक दिन जब उसके हिस्से का रोटी लेकर गया तब वह नहीं थी। मैंने उसके हिस्से की रोटी वहीं रख दी। बाद में पता चला कि वह मर गयी है। एक खुद्दार व्यक्तित्व के स्वामी नेताजी समाज और देश की सेवा के लिऐ सदैव तत्पर रहते थे। महबूब साहेब कहते थे कि मुझे उस समय बड़ा आघात और दुख होता है जब नेता जी के विरोध्ी और आलोचक उन्हें जमर्नी और जापान का तनख्वाहदार कहते हैं। आजाद हिन्द फौज़ की तत्कालीन सरकार ने अपनी व्यवस्था चलाने के लिऐ जो कर्ज लिये थे। नेता जी ने उस कर्ज की किस्त जापानी बैंक के माध्यम से समय समय पर बर्लीन भेजते रहे। आजाद हिन्द फौज़ का मुख्यालय रंगुन में स्थापित किऐ जाने के तुरन्त पश्चात् ही सेनाओं को भारत की ओर भेजने का काम शुरू हो गया था। और कई स्थानों पर झड़पें हुई और नौ महीनों के अन्दर आजाद फौज़ की सेनाएं भारत में घुस गई थी। यह कार्य कितना कठिन होगा उस समय आप अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं। 5 अप्रैल 1944 को नेता जी के हाथों रंगुन में आजाद हिन्द फौज़ के राष्ट्रीय बैंक की स्थापना हुई थी। लगातार वर्ष ने हमारे इरादे ध्वस्त कर दिये और हमारे बड़े-बड़े सैन्य अधिकारी और सेना के जवान मलेरिया से मारे गऐ।
1945 में जर्मनी के समर्पण के बाद भी जापान लड़ता रहा। वाऐस राय और कांग्रेस के मध्य वार्ता को देखते हुए नेता जी ने सिंगापुर रेडियो से काँग्रेस के नेताओं और गाँध्ी जी से अनुरोध् किया कि वह वाऐस राय की बात में नहीं आऐ। 15 अगस्त 1945 को जापान ने भी समर्पण कर डाला और 17 अगस्त तक विश्व में बदलते राजनीति परिदृश्य ने आजाद हिन्द फौज़ और नेताजी को एक अलग मुकाम पर ला खड़ा कर दिया था। मेरी कर्नल महबूब से मुलाकात कर्नल हबीब से, दिल्ली के लाल किला में एक कैदी के रूप में हुई थी। मेरे पश्चात् कर्नल हबीब को लाया गया था। मैंने महबूब ने कर्नल हबीब से पूछा था- हबीब तुम तो नेता जी के साथ फारमौसा में थे। और तुम लोग साथ साथ डाऐरेन जाने वाले थे फिर क्या हुआ? कैसे हुआ? कर्नल हबीब के ही शब्दों में- 18 अगस्त 1945, फारमोसा के एक होटल में, मैं ;हबीब और नेता जी अलग कमरों में ठहरे हुऐ थे, प्रातः 5 बजे जब मैं उठा तो नेता जी कुछ आवश्यक कामकाज निबटा रहे थे, नेता जी अधिक उर्जावान और सुन्दर दिखाई पड़ रहे थे उन्होंने मुझे तैयार हो जाने का आदेश दिया, जैसे उन्हें स्वतंत्राता की कुंजी मिल गई हो। नेताजी ने मुझसे कहा कि हबीब आज हम दोनों 10 बजे की उड़ान से डाऐरेन जा रहे हैं और डाएरेन पहुंच कर हमें रूसी नेताओं से वार्ता करनी है। उत्साह और आत्मविश्वास से भरे नेता जी ने कहा था कि हमने ऐसी योजना तैयार कर ली है। जिस पर उन्हें सहमत होना ही होगा। हबीब तुम यकीन करो अगर रूसी नेताओं ने सहमती दी तो 25 अगस्त तक भारत से अंग्रेजी साम्राज्य का अंत होना निश्चित है और लाल किला हमारी मुट्ठी में होगा। नेताजी ने कहा था, हबीब तुम हमारे साथ हो छः सात घंटे और इंतजार करो। ठीक 10 बजे डाऐरेन को उड़ान भरने वाली जहाज, में, हम दोनों बैठ गऐ। 20 मिनट के पश्चात् सूचित किया गया कि अब जहाज उड़ान के लिए तैयार है। नेता जी अधिक से अधिक भावुक होते जा रहे थे, कह रहे थे महबूब जिस प्रकार से जहाज उड़ने वाला है उसी प्रकार से एक सप्ताह के अन्दर अन्दर अंग्रेज हमारे देश को छोड़ कर उड़ जायेगा और तब हम भारत की धरती पर अपना झण्डा फहरायेंगे। जहाज रनवै पर दौड़ने लगा, मैं नेता जी के बगल में बैठा था। नेता जी किसी गहरे सोच में डूबे हुए थे। जहाज जैसे ही हवा में उड़ा जहाज ने झटका लिया और और एक जोरदार आवाज हुई और जहाज टुकड़े-टुकड़े होकर हवाई अड्डा पर बिखर गया, मैं बूरी तरह जख्मी था, मगर मुझे स्वयम से अधिक नेता जी की चिंता थी। मैंने जहाज के टुकड़ों को जलते देखा था। नेता जी को हल्की चोट आई थी। हम दोनों को फारमोसा के एक अस्पताल में ईलाज के लिऐ ले जाया गया था। मुझे और नेता जी को अलग अलग वार्ड में रखा गया, यह था फारमोसा रेडक्रास अस्पताल। दो घंटे के पश्चात् मुझे सूचना दी गई कि नेता जी अब जीवित नहीं है। मैं ;हबीब पागलों सा व्यवहार करने लगा और मैं अस्पताल के सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। उसके पश्चात् क्या हुआ मुझे कुछ भी नहीं पता। और मैं पांच दिनों तक बेहोश रहा, मुझे बार बार बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाता रहा था। जब मैं होश में आया तो पता चला कि 22 अगस्त से ऐलान किया जा रहा है कि नेता जी की मृत्यु हवाई हादसे में हो गई है। मगर नेता जी, और उनके सहयोगी आज भी स्वतंत्राता के 66 वर्षों के पश्चात् हमारे रोम रोम और अंग-अंग में बसते हैं।
आजाद हिन्द फौज़ के गिरफ्तार जवानों की पैरवी जवाहरलालनेहरु, भोलाभाइ देसाई, आसिफअली, सर तेजबहादूर सपरु और कैलाश नाथ काटजू कर रहे थे। अंग्रेजी सरकार ने जिन तीन फौजी अधिकारियों पर मुकदमें की कार्यवायी आरम्भ की थी उनमें जेनरल शाहनवाज खान, करनल प्रेमकुमार सहगल और गुरूवख्श सिंह थे। अंग्रेजी सरकार की ओर से उनके वकील ने इन पर बार-बार आरोप लगाया था कि अंग्रेजी सेना में भर्ती के समय उन्होंने जो शपथ ली थी उसका उन्होंने उल्लंघन किया है। सरकार उसकी सजा ए मौत चाहती थी। इन अधिकारियों ने जज के समक्ष साफ कह दिया था कि उन्होंने नियुक्ति के समय जो कसम खाई थी वह देश के प्रति था न कि जार्ज छठे के प्रति!
मुझसे ;कर्नल मजबूब सरकारी अधिकारियों ने पहले परिवार के प्रति डराया फिर जनरल शाहनवाज के द्वारा सच्चाई बताऐ जाने का झूठ बोला था। मुझे अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों ने बहुत लालच दिया, मगर मैंने नेताजी, भारत और आजाद हिन्द से गद्दारी नहीं की। आप यातनाओं का अनुमान लगा सकते हैं। मेरी आयु उस समय मात्रा 25 वर्ष थी। हमारा केस भी उन्हीं वकीलों ने लड़ा था। नेता जी देशबन्ध्ु चितरंजन दास को अपना आदर्श मानते थे, और उसी महान देशभक्त से प्रभावित होकर नेताजी में देशभक्ति का इतना जनून और जजबा भरा था। स. श्री दास से नेता जी का मिलना एक संयोग था। 10 दिसम्बर 1921 को अंग्रेजी कानून के अवहेलना में चितरंजन दास, मौलाना आजाद, और नेता जी गिरफ्तार किऐ गऐ थे। यह नेता जी की प्रथम जेल यात्रा थी। जेल में नेता जी ने श्री दास के कपड़े धोने से खाना पकाने और सहायक सचिव का काम किया था। नेता जी ने सिंगापुर में मुझे बताया था। नेता जी ने कहा था, जानते हो महबूब अंग्रेजी सरकार ने मुझे दास के साथ जेल भेज कर बड़ा ही अच्छा काम किया था। मैंने जेल में रहकर नेतृत्व और राजनीति उन्हीं से सीखी जो आज मेरे लिऐ बड़े काम की चीज है। वह मेरे माँ बाप भाई सभी थे, जिसके प्रभाव से तुम जैसे योग्य युवकों को लेकर हमने अंग्रेजी सरकार की निंद उड़ा रखी है। नेता जी लंदन से लौटकर सबकुछ करने में सक्षम थे, उनका शैक्षिक रिकाॅर्ड बेहतरी था, मगर उन्होंने देश सेवा को चुना था। गोरखपुर में घटित चौरी चौरा की घटना और उसमें 19 सिपाही की हत्या और आरोपियों को फांसी पर लटकाऐ जाने की घटना ने नेता जी का रूख मोड़ दिया था। नेता जी ने चौरी चौरा की घटना पर महात्मा गाँध्ी की आलोचना करते हुए कहा कि वह राष्ट्रपिता है। मैं उनका बड़ा आदर और सम्मान करता हूँ। मगर मैं इस घटना पर उनकी निंद का विरोध् करता हूँ। नेताजी भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिऐ एक सेना की भांति लड़ाई लड़ रहे थे और उनकी सेवा अविस्मरणीय है। देशबन्ध्ु ने नेताजी को दैनिक बंगला ‘बंगला कथा’ का सम्पादक बनाया था। इस दैनिक का संचालन स्वराज दल के अध्ीन हो रहा था। दिसम्बर 1929 को नेताजी ने नेहरू के साथ मिलकर इन्डिपेंडेंट पार्टी की स्थापना भी की थी। 1920 में काँग्रेस ने जिस पूर्ण स्वतंत्रता की बात की थी वह नेता जी के लाहौर अधिवेशन में दिऐ गऐ भाषण का आधर था। 1928 के कोलकत्ता अधिवेशन के उपरांत देश में नवयुवकों की अगुवायी में कई संगठनों की स्थापना हुई। 1940 में विधानपरिषद का चुनाव नेता जी ने जेल से लड़ा और ढाका निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीत गऐ। इस जीत में नेता जी की इज्जत, शोहरत, देश और जनता प्रेम का मिश्रण था। नेता जी ने कोलकत्ता में 1940 में महाजाति सदन की स्थापना की और इस परिषद् का उद्घाटन महान कवि और विचारक गुरु रविन्द्र नाथ के हाथों हुआ। यह नेताजी के राजनीति जीवन का सबसे बुरा दिन था। जब नेताजी काँग्रेस से बाहर हो गऐ थे। स्वतंत्राता संग्राम और विश्व राजनीति के बदलते पटल के साथ-साथ विश्वयुद्ध और अंतर्राष्ट्रीये गठजोड़ के भविष्य पर नेताजी और नेहरु दो व्यक्ति ही पकड़ रखते थे। मगर दोनों में एक बात पर सहमती नहीं थी के नेहरू जर्मनी से सहानुभूति नहीं रखते हैं।
नेताजी विदेशी सहायता से भारत को स्वतंत्राता दिलाना चाहते थे। नेता जी की सोच देश के अन्य युवा क्रान्तिकारियों और देश को स्वतंत्राता दिलाने वालों के मन में भी चल रहा था। ऐसे नवयुवक और नौजवान देशभक्तों की आस्था शान्तिपूर्ण और अहिंसक आन्दोलनों से समाप्त हो चुके थे। 16 जनवरी 1941 को भारतीये समाचार पत्रों में एक प्रमुख समाचार छपी कि ‘‘सुभाष चन्द्र बोस अपने घर से गायब।’’ प्रथम देशवासियों को इस समाचार पर यकीन नहीं आया, मगर कुछ समय तक लोगों को यह भी लगने लगा था कि नेता जी साध्ु जीवन को अपना कर हिमालय की ओर निकल गए हैं। क्योंकि नेताजी का बचपन से ध्र्म के प्रति बहुत अधिक झुकाव था एवं आप एक धर्मिक परिवार में भी जन्मे थे। नेताजी ने मुझे बताया था ;कर्नल महबूब कोद्ध कोलकत्ता कारप्रेशन का सारा काम काज पूरा करने के पश्चात् मैंने फैला दिया कि मेरी तबियत खराब है। मैं किसी से मिलना नहीं चाहात हूं। अगर बहुत आवश्यक हो तो टेलीपफोन पर बात की जा सकती है। मैंने अपने घर आनेवाले मेहमानों से भी मिलना बन्द कर दिया था और महबूब तुम्हें बताउफं कि मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी से मुझे कोई नहीं पहचान सकता था। मैंने दाढ़ी बढ़ाकर सरकार को धेखा देने और सरकार को किसी इस्लामी देश में भागने का मैंने ढांेग रचा था। सिपर्फ मुझसे मेरी 14 वर्षीये भतीजी ही मिल सकती थी। 14 जनवरी 1941 को मैंने अपनी भतीजी को अपने योजना की जानकारी दी और उससे वादा लिया कि वह 36 घंटों तक इस योजना के सम्बंध् में किसी को न बताऐं और मैंने अपनी बेटी को रोते-सिसकते, भारत माता को स्वतंत्राता दिलाने के लिऐ अपने सब कुछ का त्याग किया था। मुझे नेता जी उस भतीजी का नाम याद नहीं है। 14 जनवरी 1941 के मध्य रात्राी को नेता जी ने घर छोड़ दिया था। उस समय नेता जी एक मौलवी के भेष में थे। हावड़ा रेलवे स्टेशन होते हुऐ गौमो तक उनके साथ उनका भतीजा शिशिर कुमार बोस साथ थे। अब तक नेता जी के गायब होने की खबर देश भर में फैल गई थी और चप्पे चप्पे पर अंग्रेजी पुलिस नेता जी की तलाशी में लगी थीं नेता जी गोमों से पेशावर जानेवाली रेल में सवार थे और पुलिस प्रत्येक यात्राी की तलशी ले रही थी। सघन तलशी के क्रम में सी.आई.डी के आई जी ने मेरे डब्बे की तलाशी ली थी और रेल के चलते समय मुझे सैल्यूट किया था। महबूब मैं तुम्हें बताउफं मैं ;नेता जीद्ध ने उसी समय गौमो रेलवे स्टेशन पर सोच लिया था कि अब हमारा देश स्वतंत्रा होकर ही रहेगा।
नेताजी ने मुझे बताया था कि वह चमड़े की थैलियों के द्वारा काबुल में नदी पार किया था। कड़ाके के सर्दी और बपर्फ में नेता जी के पास गर्म कपड़े तक नहीं थे। यह था उनका देशप्रेम। रहमत खान ;भगतरामद्ध ने पुलिस अधिकारी को दो रुपये रिश्वत देकर मुझे बचाया था और उस पुलिस अधिकारी ने मेरी घड़ी ले ली थी। काबूल में अंग्रेजी सरकार के अधिक प्रभाव के कारण अधिक दिनों तक काबूल में ठहरना नेता जी ने उचित नहीं समझा था। नेता जी रूस जाना चाहते थे मगर लगातार तीन दिनों तक काबूल में रूसी दुतावास से सम्पर्क करने के उपरांत भी नेता जी को रुस जाने की अनुमति नहीं मिली। नेताजी और भगत राम काबूल में असहाय थे। मगर उनकी हिम्मत और देश प्रेम उनमें उफर्जा भर रहा था। रहमत खान ;भगत रामद्ध ने काबूल में एक भारतीय व्यापारी उत्तमचन्द तक पहुंच गऐ, उन्हें पता चला कि व्यापारी उत्तम चन्द बड़े सम्पर्क वाले और देशभक्त है। मुझे ;महबूबद्ध को उत्तम चन्द से नेता जी के सहयोग के सम्बंध् में जानने का अवसर उस समय प्राप्त हुआ जब उत्तमचंद सिंगापुर में थे। उत्तमचन्द ने मुझे बताया था कि नेताजी से मेरी भेंट 1941 में काबूल में हुई थी। इससे पूर्व मैंने नेता जी के सम्बंध् में सुन रखा था। जानते हो महबूत, नेता जी से मेरी भेंट एक तेज झोके की भांति थी। मेरी दुकान पर भगत राम आऐ और उन्होंने बताया था कि वह भगत राम है और पंजाब के धलदेर गांव का निवासी है। उन्हीं के भाई ने पंजाब के गवर्नर को गोली मारने का प्रयास किया था, जिसका नाम हरी किशन लाल था। उन्होंने मुझे बताया कि नेता जी उनके साथ है और उन्हें रुस भेजना है। नेता जी का नाम सुनकर मैं बहुत खुश हुआ था। उन्होंने मुझे बताया था कि वह किसी ध्र्मशाला में ठहरा है और उसके पीछे एक अफगानी जासूस लगा है। जिसे पैसे दे देकर जान अभी तक छुड़ाये हैं। मैंने भगत राम से कहा कि उसके घर महान देशभक्तों का स्वागत है। दरअसल काबूल में भगत राम ने अपना नाम रहमत खान और नेता जी का नाम जियाउद्दीन रखा हुआ था। उनके चले जाने के पश्चात् मैं ;उत्तमचन्दद्ध बड़ा भयभीत था। नेता जी की हालत और उनका पहनावा देखकर भारत का रत्न, भयभित निर्भय, इतना बड़ा देशभक्त मेरे समक्ष इस अवस्था में। मेरा दिन कटने लगा, अब नेता जी का स्थान मेरे समक्ष पहले से और बड़ा होने लगा। नेताजी ने मेरे घर पर बड़े अन्तराल के पश्चात् रेडियो सुनी और समाचार पत्रा पढ़ा था।
नेताजी काबूल में इटली और जर्मनी के दुतावास के सम्पर्क में थे। लगातार रूस और अन्य दुतावासों से नेता जी को झूठा भरोसा मिलता रहा। 18 मार्च 1941 को नेता जी इटली दूतावास की सहायता से बर्लीन चले गऐ। नेताजी की सुरक्षा के लिऐ इटली सरकार की ओर से डाॅ. बेलर आऐ थे और पासपोर्ट पर नेता जी का नाम भूज जातिया लिखकर इटली से आया था। काबूल से सोवियत सीमा तक सड़क के रास्ते और वहां से मास्को रेल के माध्यम गऐ थे। जर्मनी की मीडिया ने नेता जी का पफोटो छापा और जर्मन भाषा में लिखा था- भारत के महान स्वतंत्राता सेनानी और भारतीये राष्ट्रीये कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जो कुछ दिनों से लापता थे 28 मार्च 1941 को बर्लीन पहुंच गऐ। नेताजी के साथ दो जर्मन अधिकारी हिटलर ने लगाऐ थे, हिटलर नहीं चाहता था कि नेता जी इटली अथवा मासको में रुके। उत्तम चन्द ने बताया था कि मई 1941 को उन्हें एक ब्रिटिश जासूस ने गिरफ्रतार करवाया। प्रथम जलालाबाद और फिरर लालकिला जेल दिल्ली में भेज दिया गया और लाल किया में मेरी मुलाकात जीवन लाल से हुई। जीवन लाल को इस आधर पर गिरफ्रतार किया गया था कि वह मुझसे मिलता रहता था। काबूल में मेरी तमाम सम्पति जब्त कर ली गई थी। महबूत साहेब कहते थे, आखिरकार नेता जी के व्यक्तित्व में इतना प्रभाव था, उनकी देशभक्ति इतनी सच्ची थी कि एक आम भारतीये और व्यापारी अपनी सारी सम्पत्ति और कारोबार लूटा कर इतना प्रसन्न मुद्रा में मुझसे एक कैदी के रूप में लालकिला में मिला। यह स्वतंत्राता यह आजादी न जाने उत्तमचन्द जैसे कितनो गुमनाम व्यक्तियों के सहयोग से हमें प्राप्त हुआ है।
भारतीये स्वतंत्राता संग्राम का इतिहास जिन देशभक्तों और शहीदों के खुन से लिखा गया है। उसमें नेता जी का बलिदान और त्याग मुख्य अक्षरों में अंकित है। लाल किला में मेरी मुलाकात ;कहबूबद्ध कैप्टन रामसिंह के माध्यम से उत्तमचन्द से हुई थी। जब मैं नेता जी की मृत्यु हवाई दुर्घटनामें होने की बात उन्हें बताई तो उत्तम चन्द खुब रोया था। नेता जी जर्मनी में हिटलर से भेंट की थी। नेताजी ने जर्मनी में हिटलर के समक्ष यह इच्छा जताई थी कि विश्वयुद्ध में गिरफ्तार किऐ गऐ, भारतीयों को लेकर एक सेना का गठन करेंगे और हिटलर नेता जी के इन सुझाव पर तुरन्त राजी हो गया था। हिटलर की निगाहों ने नेता जी को पहली नजर में ही पहचान लिया था। जनवरी 1942 में नेताजी ने ‘स्वाध्ीनता लीग’ के नाम से जर्मनी में एक बटालीयन का गठन कर डाला। नेताजी इसी के आधर पर जापान और पश्चिम ऐशिया में सेना का गठन चाहते थे। वर्लीन में जापानी राजदूत को राजी करके एक सेना का गठन किया, नेता जी का स्वागत भारत से बाहर बड़े ही जोरदार तौर पर हुआ था। 8 फरवरी 1943 को नेता जी आबीद हुसैन के साथ टोकिया आ गऐ। नेता जी की यह यात्रा बेहद कठिन थी। इस यात्रा के क्रम में नेता जी के साथ एक जापानी मेजर यामामोती भी थे। 13 जून 1943 को 56 दिनों की कठिन यात्रा के पश्चात् नेता जी टोकियो पहुंचे थे। 20 जून 1943 को टोकियो रेडियो के प्रसारण में ऐलान किया गया कि नेता जी जापान पहुँच गऐ हैं और विश्व ने सुना के नेता जी अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ने के लिऐ तैयार हैं।
नेताजी का व्यक्तित्व का अन्दाजा तो लगाइये कि टोकियो हवाई अड्डे पर नेता जी के स्वागत के लिऐ जापान के प्रधनमंत्राी स्वयं आऐ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ नेताजी और उनकी सेना को समर्थन देने का ऐलान किया था। रास बिहारी बोस उन दिनों सिंगापुर में थे, जापान के प्रधनमंत्राी तोजो के बुलाबे पर बोस 3 जून 1943 को टोकियो पहुंचे थे। वहीं पर श्री बोस की भेंट नेताजी से हुई थी। बोस ने नेताजी से आजाद हिंद फौज़ की अगुवायी करने का अनुरोध् किया था। नेता जी को चीन जाना था मगर उन्होंने अपनी चीन यात्रा रद्द कर दी थी। 2 जुलाई 1943 को नेता जी सिंगापुर पहुंचे जहां पर उनका जोरदार ढंग से स्वागत किया गया था। सिंगापुर के इसी अन्तरर्राष्ट्रीय सभा में नेता जी ने स्वतंत्रा भारत की सरकार के भविष्य का ऐलान किया था। नेता जी ने अपने मंत्राीमंडल के सहयोगियों के साथ शपथ लिया था। दूसरे दिन सिंगापुर में 50 हजार से अधिक लोगों की सभा सम्पन्न हुई थी। इसी सभा से नेता जी ने इंगलैंड और अमेरिकी सरकार के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की थी। आजाद हिन्द फौज़ ने युद्ध करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी। नेताजी ने युद्ध से पूर्व अपने सैनिकों से सम्बोधन में कहा था- साथियों तुम्हारा नारा है। दिल्ली चलो! स्वतंत्राता प्राप्ति के इस युद्ध में हममें से कौन बचेगा यह किसी को भी पता नहीं है। मगर हमारा काम उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक के लाल किला में हमारे सैनिक स्वतंत्रारूप से परेड नहीं करेंगे। 6 जुलाई 1943 को आजाद हिन्द फौज़ की परेड में जेनरल तोजो ने फौजियों की सलामी ली थी। नेता जी रंगुन से जमर्नी आऐ और अन्तर्राष्ट्रीय समुदायों को जर्मन रेडियो से आजाद हिंद फौज़ का परिचय करवाया और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और घटनाक्रम का जायजा लिया था। इसी स्थान पर योरोसलम के धर्मिक गुरु से नेता जी की भेंट हुई थी। नेताजी ने जर्मनी और रुस के मध्य समझौता करवाने और दोनों देशों के मध्य युद्ध रोकने की बहुत कोशिश की थी। मगर नेताजी इस प्रयास में असफल रहे थे। नेताजी ने कई बार इटली का दौरा भी किया था और उन्होंने मोसोलीनी से भी भेंट की थी।
9 नवम्बर 1943 को फौजी प्रशिक्षण की समाप्ति पर रंगुन को सेना का मुख्यालय बनाया गया, सुभाष ब्रिग्रेट 24 नवम्बर 1943 को रंगुन के लिऐ रवाना हुई थी। 4 जनवरी 1944 को नेता जी ने रंगुन में फौज़ को तीन कमानों में विभक्त किया और कमान कर्नल लक्षण स्वरूप मिश्रा, मेजर मेहरदास सिंह और मेजर अजमेरा सिंह के हाथों में दिया गया था। इसके बाद कुछ गोरिल्ला रेजिमेन्टों में गाँध्ी, नेहरू गोरिल्ला और गुप्त दल का भी गठन किया गया था। आजाद हिन्द फौज़ का गीत- सुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग्य है जागे! की रचना आई.एन.ए. के मुम्ताज अहमद और आबिद हसन ने लिखा था और इसकी ध्ुन कैप्टन राम सिंह ने तैयार की थी।

हिंदी व्यंग्य --अब मीडिया बड़ा ही फ़ास्ट हो गया है

व्यंग्य लेख --  अब मीडिया बड़ा ही फ़ास्ट हो गया है . छोटे से छोटी घटना पर ऐसी प्रस्तुति देता है कि जिस व्यक्ति के बारे में समाचार दिखाया जा रहा है , उसे भी शक होने लगता है कि क्या वास्तव में “वो “ वैसा ही है .परन्तु खेद का विषय यह रहा कि हाल में तीन नामों को सम्मानित किया गया , परन्तु तीनों का ही इंटरव्यू मीडिया नहीं कर पाया . भारत रत्न मालवीय जी तो खैर पहले ही स्वर्ग में बैठे हैं , वहां तक शायद अभी किसी मीडिया ने अपने रिपोर्टर नियुक्त नहीं किये हैं .पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ,जो भारत रत्न से सम्मानित किये गए हैं ,इस स्थित्ति में नहीं हैं कि उनका इंटरव्यू किया जा सके . तीसरा नाम भी कुछ ऐसा ही है .परन्तु आज के चपर –चपर अंग्रेजी कुतरने वाले युवा एंकरों की नज़रों में क्यों नहीं चढ़ा , इसका मुझे मलाल भी है और अचरज भी .खैर हम ठहरे पुराने ढर्रे के पत्रकार जो आज भी प्रकृतिवादी की छाप ओढ़े हुए हैं ,जो प्रकृति की जड़ों से जुड़े हुए हैं , जो मानते हैं कि पेड़ पौधों व पशु –पक्षियों में भी भावनाएं होती हैं . आज भी उनको स्नेह देते हैं , उनकी भावनाओं की कद्र करते हैं ,उनके हाव –भाव को समझते हैं , उनकी ख़ुशी –गम को महशूस करते हैं . कुछ हद तक उनसे वार्तालाप भी कर पाने में सक्षम हैं .पशु –पक्षी भी इस मानवीय पीढ़ी की भाषा समझते हैं .जब हम ' छे: छे:' करते हैं तो गायें पानी पीने लग जाती हैं , “हिब्बो –हिब्बो “ कहते ही भैंस पानी में मुंह टेक देती है , “ थूवे –थूवे “ कहतें हैं तो ऊँट पानी पीना शुरू कर देता है . सवेरे सवेरे जब हम धूप सेक रहे थे तो गली से गुजरते एक ऊंट पर निगाह पड़ गयी .ऊंट के पैरों में चपलता थी ,चाल में प्रफुल्लता थी , आँखों में गर्व की चमक थी ,मुंह में झाग उफन रहे थे , जो मस्ती का प्रतीक प्रतीत हो रहे थे ,और ऊंट अपनी फूली हुई जिह्वा को बार बार बाहर निकाल कर पुन्झारे ( पूंछ को ऊपर नीचे पीटना ) मार कर किसी विशेष प्रसन्नता को प्रकट कर रहा था . मैंने ऊंट से पूछा –अरे ऊंट भाई , इतना खुश कैसे ? ऊंट ने अपने दांत पीसते हुए बताया –वो बहुत खुश है ,क्योंकि राजस्थान सरकार ने मरुस्थलीय जहाज की महता को समझते हुए ऊंट को राज्य पशु घोषित किया है . मेरी आँखों में भी चमक आ गयी , चलो बैठे –बिठाये एक लेख का विषय मिल गया . मैनें ऊंट से तुरंत ऊंटरव्यू यानि ऊंट का इंटरव्यू लेने की सहमति चाही तो ,ऊंट भी सहर्ष तैयार हो गया . मैनें तुरंत प्रश्न दागा –ऊंट भाई आपकी नस्ल राज्य पशु घोषित किये जाने पर , कैसा महसूस कर रही है ? ऊंट – क्षमा चाहूँगा , अब अंग्रेजी का युग है , थोडा सा आप भी चेंज करो . आगे से हमारी प्रजाति को ऊंट नहीं ,स्टेट एनिमल कैमल कहकर पुकारो तो हमें अच्छा लगेगा .हालांकि हमारी प्रजाति वसुंधरा मैया का सदा उपकार मानेगी , परन्तु हम सीधे तो उनसे सुरक्षा कारणों से मिल नहीं पा रहे हैं ,अतः आप पत्रकार लोगों से निवेदन है कि हमारी तरफ से वसुंधरा जी का आभार प्रकट कर देना और एक रिक्वेस्ट भी कर देना कि हमें राज्य पशु की बजाय हिंदी में राज्य जीव से पुकारा जाए तो हमें और भी अच्छा लगेगा . क्योंकि अंग्रेजी में मैंन इज ए सोशल एनिमल कहा जाता है तो फिर आप आदमी को हिंदी में सामाजिक पशु क्यों नहीं पुकारते .यह भेदभाव अच्छा नहीं लगता , बल्कि अखरता है . प्रश्न –आपको राज्य पशु यानि स्टेट एनिमल का दर्जा दिये जाने से क्या फर्क आएगा ? ऊंट – बहुत फर्क आएगा .जीवन का जीना इज्जत के लिए ही तो है .पानी मिले सो उबरे मोती , मानस चून .अब हम दूसरे जीवों से बेहतर पायदान पर आ विराजे हैं .फिर अगर कोई सम्मान देने से फर्क ही नहीं पड़ता है , तो आप लोग क्यों भारत रत्न ,पदम् विभूषण या पदम् श्री पाकर फूल जाते हो ? प्रश्न –अभी हाल में वाजपेयी जी को भारत रत्न देने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? ऊंट –चलो देर आये दुरुस्त आये .परन्तु अब जबकि वाजपेयी जी सुख दुःख , गम- ख़ुशी की अनुभूति सीमा से पार हो चुके हैं , तो उनके लिए भारत रत्न भी छोटा पड़ जाता है .उनको भारत रत्न बहुत पहले दे दिया जाना चाहिये था .आप की मनुष्य जाति में मेरा -तेरा और राजनैतिक गोटियों का कुछ ज्यादा ही महत्व है .फिर भी ऐसे महापुरुष को तो भारत रत्न नहीं ,बल्कि भारत महारत्न या विश्व रत्न या ब्रह्माण्ड रत्न जैसी उपाधियाँ दी जाएँ तो और अच्छा लगेगा . प्रश्न –पर इस प्रकार के सम्मान पदक तो प्रचलन में ही नहीं हैं ? ऊंट--( हँसते हुए ) क्या बच्चों वाली बातें करते हो ? चलन प्रचलन में लाना तो आप लोगों के ही हाथ में है . अब मैं चलता हूँ , मुझे देर हो रही है . प्रश्न –ऊंट जी , बस चलते चलते एक प्रश्न . आप इस अवसर कोई सन्देश देना चाहेंगे ? ऊंट –हाँ , बस , इतना ही कि हमारे नाम पर कोई चारा घोटाला न कर दिया जाये . ऊंट को दूर तक जाते देख मुझे लगने लगा है कि उसे राज्य पशु की बजाय राज्य जीव का दर्जा क्यों मिलना चाहिये .

चीन में लोग पी रहें है बेबी सूप

 हमारे धार्मिक ग्रंथो में नरभक्षी राक्षसो का जिकर आता है आज वो चीन में हो रहा है खाना पीना किसको पसंद नहीं होता, कौन नहीं चाहता की वह स्वस्थ्य रहे , पर ऎसे रहने में कहा की बहादुरी है जिससे नवजात शिशु की मृत्यु हो जाए । जी हाँ यहाँ बात हो रही चीन देश की एक ओर जहा दिन पर दिन चीन अस्समान को छू रहा है वहीँ दूसरी ओर चीन ने एक घिनोने सच को जन्म दिया है । आपकी जानकारी के लिए बता दे  चीन बेबी सूप नाम से प्रसिद्ध एक सूप पिया जाता है जिसे नवजात शिशु को काटकर बनाया जाता, इस बारे में चीन का यह मानना है की इससे गजब की ऊर्जा मिलती है, साथ ही यौन शक्ति में भी इजाफा होता है। यह प्रतिçRया बरसों से चली आ रही है खासकर   यहाँ लोगो की डिमांड मेल बेबी के लिए होती है। इसका सबसे विशेष भाग तो यह है की यह सूप उन बच्चों का बनता है जो जन्म के करीब होते है या जो मृत नवजात बच्चों का बनता है जिनकी कीमत करीब बीस हजार रूपए है। आपको बता दें ताइवान में इसलि कीमत 4300 रूपए तक लगाई जाती है। गौर करने की बात तो यह है की चीन में मृत शिशु और  भू्रण सुंदरता के नए सप्लीमेंट माने जा रहें हैं। गुआंगडोंग प्रांत के अस्पतालों में इसका अवैध धंधा जोरो पर है 

प्रौढ महिलाएं भी ले सकेंगी अब सेक्स में आनंद

न्यूयार्क। मेनोपॉज के बाद अमूमन महिलाओं के लिए यौनक्रिया तकलीफदेह हो जाती है। प्रौढ हो चुकी ऎसी महिलाओं के लिए यौनांग पर लगाने वाला एक ऎसा जेल विकसित किया गया है, जिसके इस्तेमाल से वे यौनक्रिया में पहले जैसी संतुष्टि हासिल कर सकती हैं। 14 दिनों तक किए गए एक शोध में 40 से 75 वर्ष की महिलाओं को शामिल किया गया। शोध में पाया गया कि सीधे यौनांग के जरिए इस्तेमाल में लाया गया सॉफ्टजेल जैसा "टीएक्स-004एचआर" नाम के यौगिक की वजह से 63 फीसदी महिलाओं में यौनक्रिया को लेकर संतुष्टि में वृद्धि हुई, जबकि बिना औषधि वाले जेल का इस्तेमाल करने वाली 48 फीसदी महिलाओं में इस तरह का कोई परिवर्तन नहीं देखा गया। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, ऎसी महिलाएं जिन्हें मासिक धर्म आना बंद हो चुका हो तथा जिन्हें सेक्स के दौरान दर्द होता हो या यौनांग से जु़डी समस्या हो उनके लिए शरीर में सेक्स हार्मोन "एस्ट्रोजेन" बढ़ाना वाला यह उपचार जीवन में संतुष्टि प्रदान करने वाला साबित हो सकता है। 

अमेरिका के क्लीवलैंड में स्थित यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स (यूएच) के केस मेडिकल सेंटर में कार्यरत शेरिल किंग्सबर्ग ने कहा, "मेनोपॉज के बाद अमूमन महिलाओं को जलन की समस्या होती है, लेकिन एस्ट्रोजेन की कमी के कारण दर्द और सेक्स के दौरान असहज महसूस करना जैसी अन्य समस्याएं भी होती हैं।" किंग्सबर्ग ने कहा, "बात जब महिलाओं के लिए सेक्स की हो तो उनके पास विकल्प का होना बेहद अहम है तथा टीएक्स-004एचआर वैगीकैप को यदि एफडीए मान्यता दे देता है तो यह महिलाओं में मेनोपॉज के बाद होने वाली समस्याओं के लिए नया उपचार साबित हो सकता है।" टेक्सास के आस्टीन में हाल ही में हुए इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ वूमंस सेक्सुअल हेल्थ (आईएसएसडब्ल्यूएसएच) की वार्षिक बैठक में यह अध्ययन प्रस्तुत किया गया

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