Monday, February 25, 2013

शिक्षा में कम भागीदारी कन्या भ्रूण हत्या का कारण


-ओ.पी. पाल-

पिछले दस साल में अपने पडोसी देशों के मुकाबले लिंग अनुपात में पहले स्थान पर चल रहे भारत में कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए बालिकाओं की शिक्षा में भागीदारी को बढ़ाना जरूरी है। इस तरह की सिफारिश कन्या भू्रण हत्या पर तत्काल रोक लगाने की प्रार्थना करने वाली राज्यसभा की याचिका समिति ने केंद्र सरकार से की है।

राज्यसभा में भगत सिंह कोशियारी की अध्यक्षता वाली याचिका समिति ने बुधवार को सदन में एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया,जिसमें कन्या भ्रूण हत्या को एक सामाजिक बुराई करार देते हुए कहा गया है कि भारत में एक हजार पुरुषों पर भारत की जनगणना-2011 के अनुसार महिलाओं की संख्या का औसत 940 है, जो सार्क नौ देशों की की तुलना में इस बुराई में पहले स्थान पर है। सार्क देशों में म्यांमार ही एक ऐसा राष्ट्र  है, जहां महिलाओं की औसत संख्या पुरुषों से ज्यादा है। समिति ने सरकार से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए तैयार विधायी रूपरेखा को कठोर करने पर बल दिया और विचार विमर्श के बाद इस क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर सरकारी संगठनों द्वारा भ्रूण हत्या का पता लगाने के लिए दिए गये सुझावों को ध्यान में रखते हुए सरकार से सिफारिश की है कि एक ऐसा तंत्र लिंग चयनात्मक गर्भपात कराने के विरूद्ध हो को कठोर किया जाए। समिति ने सरकार को यह भी सुनिश्चित करने के तौर तरीके तैयार करने की सिफारिश की है कि चयनात्मक गर्भपात कराने के लिए चिकित्सीय समापन अधिनियम की प्रवंचना न की जाए, बल्कि सरकार को एमटीपी अधिनियम में कारगर नियंत्रण शामिल करने चाहिए। इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए समिति ने समाज में महिलाओं के प्रति सामाजिक सोच के कारण बालिकाओं की शिक्षा में भागीदारी की कमी है उसे दूर करने की जरूरत है। समिति ने केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों में एक परिवार से एक मात्र बालिका संतान को ही विशेष महत्व देने वाले प्रतिबंध को समाप्त करने पर बल दिया है। समिति ने महसूस किया है कि शिक्षा में बालिकाओं की कम भागीदारी ही कन्या भू्रण हत्या का मुख्य कारण है इसलिए इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। समिति ने विवाह में दहेज के लेन-देन को भी एक प्रमुख घटक करार दिया और कहा कि समाज में दहेज उन्मूलन के लिए भी सरकार को दहेज प्रतिषेध कानून को कठोर बनाने की जरूरत है।

लिंग अनुपात में कमी पर चिंता
भारत की जनगणना-2011 में जो आंकड़े सामने आए हैं उस पर याचिका समिति ने गहरी चिंता जताई, जिसमें देश के हरियाणा के झज्जर, महेन्द्रगढ़ और रेवाड़ी के अलावा जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र व उत्तराखंड जैसे राज्यों में कम बाल लिंग अनुपात देखने को मिला है। याचिका समिति ने इस अध्ययन के अनुसार सरकार से सिफारिश की है कि यह सुनिश्चित करके कार्ययोजना बनाई जाए जिससे वर्ष 2011 की जनगणना के रूप में सामने आई सामाजिक बुराईयों की चुनौती से निपटा जा सके।

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