Monday, February 25, 2013

धर्म के ‘ठेकेदार’ और कितनी करेंगे मनमानी?




वीरेंद्र सेंगर

लोकसभा का चुनाव भले ही अभी दूर हो, लेकिन इसको लेकर वोट बैंक की राजनीति के बेढब खेल अभी से शुरू हो गए हैं। इसी का फायदा उठाते हुए धर्म की राजनीति के ठेकेदार भी नए सिरे से सक्रिय होते नजर आ रहे हैं। देश के कई हिस्सों में लगातार कुछ न कुछ ऐसा किया जा रहा है, जिससे कि सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बन जाए। क्योंकि यह तस्वीर बनते ही लोगों के बुनियादी सवाल हाशिए में धकेल दिए जाते हैं। फिर उन्हें सांप्रदायिकता की घुट्टी के जरिए अपने-अपने पाले में खींचना और आसान रहता है। पहले भी कई मौकों पर इस तरह की गंदी सियासत का खेल, खेला जा चुका है। एक बार फिर उन्मादी ताकतों को भरपूर ‘आॅक्सीजन’ देने की कोशिश नजर आ रही है।

कश्मीर में तीन युवा लड़कियों द्वारा शुरू किया गया म्यूजिक बैंड ‘परगाश’ बंद हो गया है। क्योंकि, श्रीनगर के मुख्य मुफ्ती ने फतवा दे दिया था कि किसी बैंड में लड़कियों की हिस्सेदारी गैर-इस्लामिक है। इसके बाद तो इन लड़कियों को सोशल मीडिया के जरिए रोज धमकियां मिलने लगी थीं। इससे डर कर लड़कियों के घर वालों ने दबाव डाला, तो ‘परगाश’ का सपना ही दम तोड़ गया। धर्म के नाम पर कट्टरवादी तत्व हमेशा अभिव्यक्ति पर शिकंजा कसने को तैयार रहते हैं। खासतौर पर महिलाओं को लेकर धर्म के ठेकेदारों का नजरिया बीमार और संकीर्ण ही रहता है। ऐसा, इस बैंड के मामले में भी दिखाई पड़ा।

हालांकि, जम्मू-कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इतना साहस जरूर दिखाया कि उन्होंने खुलकर कट्टरपंथियों का विरोध किया। उन्होंने तो यहां तक कोशिश की थी कि ‘परगाश’ बैंड बंद न हो पाए। लेकिन, फतवे की दहशत के चलते मुख्यमंत्री की सद्इच्छा ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पाई। ‘परगाश’ प्रकरण को लेकर कश्मीर सहित पूरे देश में यह बहस शुरू हुई है कि आखिर धर्म की दुहाई देकर कट्टरवादी ताकतें क्यों इतना तंग नजरिया अपनाती जा रही हैं? बात चाहे मुस्लिम कट्टरपंथियों की हो या हिंदू कट्टरपंथियों की। इनकी सोच में कोई मौलिक फर्क नहीं दिखाई पड़ता। कहीं न कहीं दोनों धड़े एक-दूसरे के सहयोगी भी नजर आते हैं।

राष्ट्रीय राजधानी के हौजखास इलाके में एक कला प्रदर्शनी लगी है। इसमें देश की कई नामी महिला चित्रकारों की पेटिंग्स की प्रदर्शनी चल रही है। इसका विषय है ‘द नेकेड एंड द न्यूड’। इसमें कलाकारों ने बड़े कलात्मक अंदाज में महिलाओं की तमाम मनोभावनाओं को चित्रों और रेखांकन के जरिए उभारा है। विश्व हिंदू परिषद की दुर्गावाहिनी जैसे संगठनों की कुछ स्वयंभू महिलाओं ने इस आयोजन की सूरत बिगाड़ने के लिए भारी हंगामा किया था। इन महिलाओं का विरोध था कि इस प्रदर्शनी में महिलाओं को नंग-धडंÞग क्यों दिखाया गया है, जो कि भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। अब इन्हें कौन समझाए कि ये लोग पहले कला का आदर करना तो सीखें। बस, इन्हें तो यही आता है कि धर्म के नाम पर तोड़-फोड़ करो, हंगामा करो और हिंदुत्ववीर या वीरांगना बन जाओ।

हैदराबाद में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के चर्चित विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी ने पिछले महीने आंध्र प्रदेश में कई जगहों पर सांप्रदायिक उन्माद वाला भाषण दे डाला था। एक जगह तो उन्होंने यहां तक कह डाला था कि हिंदू भले 100 करोड़ हों, यदि कुछ देर के लिए पुलिस फोर्स हटा लिया जाए, तो 25 करोड़ मुसलमान इनका काम तमाम कर सकते हैं। इस भाषण को लेकर बड़ा बवाल हुआ था। तमाम दबाव के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व वाली आंध्र सरकार ने ओवैसी को सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के आरोप में गिरफ्तार नहीं किया था। जब मीडिया और तमाम सामाजिक संगठनों ने भारी दबाव बनाया, तो ओवैसी की गिरफ्तारी हो पाई थी। वह भी आंध्र हाईकोर्ट के निर्देश के बाद।

ओवैसी अपने जहरीले भाषण की ‘सजा’ भुगत रहे हैं। अदालत के आदेश के चलते वे 19 फरवरी तक न्यायायिक  हिरासत में रखे गए हैं। इस मामले में एक अच्छी बात यह हुई कि अकबरुद्दीन के बयान को लेकर कई प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने भी खुली नाराजगी जाहिर की थी। कहा था कि ऐसे लोग कौम के बड़े दुश्मन हैं। यही लोग अपनी वोट बैंक की राजनीति के चलते आम मुसलमानों की छवि को खराब करते हैं। उल्लेखनीय है कि ओवैसी, मुस्लिम वोट बैंक के जरिए ही अपना सियासी सफर बढ़ाने के फेर में रहे हैं।

विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं डॉ. प्रवीण तोगड़िया। वे दशकों से अपने उग्र भाषणों के लिए जाने जाते हैं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान उनकी छवि एक आक्रामक नेता की बनी थी। वे देश के विभिन्न हिस्सों में घूम-घूमकर हिंदुत्व के नाम पर दूसरे समुदाय की रीति-नीति को कोसते रहते हैं। कई बार वे ऐसा बोल जाते हैं जिससे कि सांप्रदायिक जज्बात भड़क जाएं। पिछले दिनों ही उन्होंने महाराष्ट्र के नांदेड़ में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अकबरुद्दीन ओवैसी के विवादित भाषण के संदर्भ में जमकर भड़काऊ भाषण कर डाला। इसमें उन्होंने जमकर सांप्रदायिक जहर उगला। अब उनका यह वीडियो भाषण ‘यू-ट्यूब’ पर भी देखा जा रहा है। इस भाषण में इतनी आपत्तिजनक बातें कही गई हैं कि उनका यहां हू-बहू उल्लेख करना भी उचित नहीं होगा।

‘यू-ट्यूब’ में इस भाषण के प्रचारित होने के बाद हैदराबाद सहित कई जगह मुस्लिम संगठनों ने तोगड़िया के   खिलाफ सांप्रदायिकता फैलाने का मामला दर्ज कराया है। इसके बाद भी तोगड़िया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की पहल न महाराष्ट्र सरकार ने की है और न ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने। तोगड़िया ने यहां तक कहा था कि ओवैसी जैसे लोग यह क्यों भूल रहे हैं कि जहां-जहां पुलिस नदारत रही है, वहां-वहां मुसलमानों की क्या गति बनी है? असम के निल्ली फसादों में 3000 लोग मरे थे। इनमें एक भी हिंदू नहीं था। भागलपुर, मेरठ, मुरादाबाद और गुजरात में पुलिस के नदारत रहने के बाद दंगों में क्या हुआ था, इस कौम के ठेकेदारों को याद क्यों नहीं है? भाषण के बोल सुनकर सहज ही अंदाज हो जाता है कि तोगड़िया का भाषण ओवैसी के भाषण से भी ज्यादा जहरीला है। सवाल है कि एक ही तरह के कारनामे में दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जा रहे हैं? ओवैसी तो जेल में पड़े हैं। (उन्हें वहीं होना भी चाहिए) लेकिन, वही काम करने वाले तोगड़िया को यह छूट क्यों दी गई है कि वे कुंभ मेले में हिंदुत्व की दीक्षा देते घूमे?

दक्षिण भारत के सुपरस्टार हैं, कमल हासन। उनकी नई फिल्म ‘विश्वरूपम’ को लेकर बड़ा सियासी ड्रामा हो चुका है। महज, कुछ फतवे बाज स्वयंभू किस्म के मुस्लिम नेताओं के विरोध के चलते तमिलनाडु सरकार ने इस फिल्म को रोक दिया था। आंध्र और कर्नाटक में भी रुकावट आई थी। इसको लेकर कमल हासन ने देश छोड़ने की बात भी कह दी थी। वोट बैंक की राजनीति के चलते अक्सर आधारहीन विरोध को भी हमारी सरकारें नतमस्तक होकर स्वीकार कर लेती हैं।

दरअसल, इससे ही कई किस्म के बड़े खतरे पैदा हो रहे हैं। पिछले दिनों कर्नाटक के मंगलूर में एक रेस्त्रां में ‘दुर्गावाहिनी’ की एक छापामार टीम ने धावा बोल दिया था। उन्होंने रेस्त्रां के अंदर सिगरेट पीती कई लड़कियों को सड़क पर लाकर पीटा था। यह सब हिंदू संस्कृति के नाम पर किया गया। इसके बाद भी भाजपा नेतृत्व वाली कर्नाटक की सरकार ने ‘दुर्गावाहिनी’ के मुस्टंडों के खिलाफ कुछ नहीं किया। क्योंकि, सवाल वही वोट बैंक की राजनीति का है। आखिर कब तक हमारे राजनेता धर्म के इन बेलगाम ठेकेदारों को यह बीमार खेल, खेलने की इजाजत देते रहेंगे? इस सवाल का कोई जवाब है, किसी के पास?

वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं।
virendrasengarnoida@gmail.com

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