Wednesday, December 22, 2010

2010 : हर कदम पर जूझा शिअद


साल 2010 पंजाब की राजनीति में काफी फेरबदल कर गया। बादल परिवार दोफाड़ तो हुआ ही, साथ ही सत्ता की जंग में अपनों से ही लोहा लेने को मजबूर है। हां, भ्रष्टाचार के केस में बादल परिवार ने कुछ राहत महसूस की होगी, लेकिन किसानों और कर्मचारियों के आंदोलनों ने सरकार को चैन की सांस नसीब नहीं होने दी। पंजाब की राजनीति में इस साल क्या कुछ ऐसा हुआ, जिसे शायद लोग आसानी से नहीं भूल पाएंगे, पेश है प्रमुख संवाददाता सुखबीर सिंह बाजवा की यह रिपोर्ट
राम-लक्ष्मण की जोड़ी को लगी नजर

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बड़े भाई गुरदास बादल की राम-लक्ष्मण की जोड़ी को इस साल किसी की बुरी नजर लग गई। इस वर्ष जहां पूर्व वित्तमंत्री एवं मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल को शिरोमणि अकाली दल से निष्कासित किए जाने से बादल परिवार दोफाड़ हुआ, वहीं पार्टी के भी कुछ नेता शिअद छोड़कर मनप्रीत से जा मिले। इस वर्ष उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल का मुख्यमंत्री बनने का सपना भी मनप्रीत विवाद के कारण पूरा नहीं हो सका। राज्य का समुचित विकास कराना भी शिरोमणि अकाली दल के लिए चुनौती बना रहा। उधर, कैप्टन अमरिंदर का रैलियों के जरिए सरकार के खिलाफ अभियान जारी है।

भ्रष्टाचार के केस से मिली मुक्ति

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और उनके परिवार को यह वर्ष एक राहत भी दे गया। इन पर मोहाली की जिला अदालत में चल रहे भ्रष्टाचार के मामले में फैसला इनके पक्ष में हुआ और बादल परिवार को वर्षो से चल रहे इस केस से मुक्ति मिल गई। इस केस में राहत मिलने के बाद चाहे बादल परिवार ने पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर दायर कराए गए मानहानि के केस को वापस लेने की बात कही, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के रुख में बादल परिवार के प्रति कोई नर्मी नजर नहीं आई।

करना पड़ा विरोध का सामना

अकाली-भाजपा सरकार को इस वर्ष जहां किसानों और कर्मचारियों के विरोध का सामना करना पड़ा, वहीं पूर्व वित्तमंत्री मनप्रीत बादल को निष्कासित किए जाने के बाद उनकी जागो पंजाब यात्रा से भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। मनप्रीत बादल की 14 नवंबर को अमृतसर के हरिमंदिर सा¨हब में हुई रैली में हजारों लोगों ने पहुंचकर उन्हें समर्थन दिया, जिस बारे में बादल परिवार ने कभी सोचा भी नहीं होगा। मनप्रीत की जागो पंजाब यात्रा के बाद सुखबीर बादल ने भी रोड शो के जरिए समर्थन पानी की कोशिश की।

बस किराए में वृद्धि

पंजाब सरकार ने अपने पौने चार साल के कार्यकाल के दौरान राज्य में विकास के दावे तो बहुत किए, लेकिन कुछ खास नतीजे लोगों को नहीं नजर आए। हां, बसों के किराए मंे बढ़ोतरी जरूर कर दी। पंजाब की सबसे बड़ी बिजली की समस्या को भी यह सरकार हल नहीं कर पाई। विकास के नाम पर सड़कों के निर्माण, बठिंडा रिफाइनरी को अंतिम रूप देने, मेगा प्रोजेक्टों को मंजूरी देने के अलावा कुछ और काम जरूर किए गए, लेकिन बिजली की समस्या के बारे में यह कहकर पल्ला झाड़ लिया गया कि यह काफी पुरानी समस्या है। बिजली बोर्ड को कॉपरेरेशन में तबदील कर दिया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

नहीं कम हुई बेरोजगारी

अकाली-भाजपा सरकार ने दावा किया था वह राज्य से बेरोजगारी दूर कर देगी। गठबंधन सरकार बनने के बाद एजूकेशन और हेल्थ विभाग में कुछ भर्तियां करने के अलावा बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई खास उपाय नहीं किए गए। राज्य मंे अब भी लाखों बेरोजगार हैं, जिन्हें नौकरी या काम दिलाने के लिए राज्य सरकार ने अभी तक किसी योजना की घोषणा नहीं की है।

कैप्टन विरोधियों को लगा झटका

पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्ठल, पूर्व सांसद जगमीत बराड़, पूर्व पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष मोहिंदर सिंह केपी, प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलों पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल थे, लेकिन इन सबको पीछे छोड़ते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए और गत माह उनकी पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की गई। वर्ष की शुरुआत मंे पंजाब कांग्रेस की कमान मोहिंदर सिंह केपी को सौंपी गई थी, लेकिन वे कांग्रेस के नेताओं को एकजुट करने में अहम भूमिका नहीं निभा सके। इसके बाद कुछ माह तक पंजाब कांग्रेस प्रधान का चुनाव टलता रहा। इस दौरान राजिंदर कौर भट्ठल, मोहिंदर सिंह केपी आदि की जनतक रैलियों में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाग नहीं लिया। इस बारे में उनके विरोधी नेताओं ने हाईकमान तक उनकी शिकायत भी की और उनका डटकर विरोध किया। बावजूद इसके कैप्टन पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बनने मंे कामयाब हुए। ताजपोशी समारोह में कांग्रेस के सभी गुटों के नेताओं ने एकजुटता दिखाई, जबकि जगमीत बराड़ और प्रताप सिंह बाजवा समारोह में नहीं पहुंच सके। ताजपोशी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य में रैलियांे का दौर शुरू किया और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू किया। कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस के सभी गुटों के नेताओं ने एक-दूसरे के सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया है, जबकि इससे पहले कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई थी।

भाजपा में बढ़ती गई गुटबाजी

इस वर्ष पंजाब भाजपा में गुटबाजी बढ़ती गई। स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मीकांता चावला ने अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं के प्रति अड़ियल रवैया अपनाए रखा। चावला और पूर्व मुख्य संसदीय सचिव जगदीश साहनी में चली आरोपों की जंग राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी रही। साहनी ने लक्ष्मीकांता चावला पर भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाया, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा कड़ा रुख अपनाए जाने से जहां साहनी को मुख्य संसदीय सचिव के पद से हाथ धोना पड़ा, वहीं गडकरी की नजरों में भी उनकी प्रतिष्ठा कम हुई। फिर भी साहनी के तेवर ज्यों के त्यों हैं। उनका आज भी कहना है कि उन्होंने जो भी आरोप लगाए थे, वे बिलकुल सही थे। इसी तरह अश्विनी कुमार के अध्यक्ष पद को लेकर भी भाजपा में आपसी विवाद रहा। इसमें कालिया गुट की जीत हुई और अन्य गुटों को करारा झटका लगा।

कई बैठकों से नदारद रहीं चावला

भाजपा की कई बैठकों में स्वास्थ्य मंत्री लक्ष्मीकांता चावला की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी रही। पटियाला में हुई प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक में भी वे नदारद रहीं। अन्य नेताओं का कहना था कि उन्हें इस बैठक में जरूर आना चाहिए था, जबकि चावला ने तर्क दिया उन्हें एक जरूरी कार्यक्रम में जाना था, इसलिए वे नहीं आ सकीं।

मनोरंजन कालिया का संकट टला

स्थानीय निकाय मंत्री मनोरंजन कालिया गत दिनों एक हेलीकॉप्टर हादसे से बाल-बाल बच गए। जिस हेलीकॉप्टर में उन्हें दौरे पर जाना था, वह उन्हें ले जाने के कुछ समय पहले ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया।


असली परीक्षा 2011 में

कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के लिए वर्ष 2011 काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा, क्यांेकि यह अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार का अंतिम साल है और इसके बाद 2012 में आगामी विधानसभा चुनाव होंगे। इसके चलते इस वर्ष कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा विधानसभा चुनाव की तैयारियों में पूरा जोर लगा देंगे। तीनों राजनीतिक दल खुद को जनता का हितैशी बताने की कोशिश में जुटे हुए हैं। माघी मेले पर तीनों दलों के नेता अपनी उपलब्धियां और अन्य दलों की कमियां गिनाएंगे।

वर्चस्व की जंग

वर्ष 2011 मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह में वर्चस्व की लड़ाई का साल रहेगा। जहां प्रकाश सिंह बादल दोबारा सत्ता में आने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे, वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए दौड़भाग करते नजर आएंगे

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