Sunday, May 13, 2012

क्या संसद के साथ-साथ सांसदो के भी मायने बदलते जा रहे है?



 
नई दिल्ली भारतीय संसद पिछले साठ साल में कई मायनों में बदल गई है। बदले परिवेश का असर संसद पर पड़ा है। सांसद मानते हैं कि समय के साथ मुद्दे बदले हैं, मिजाज बदला है। यह कड़वा सच भी है कि गंभीर बहस के बजाए संसद में हो-हल्ला बढ़ा है। अहम विषयों पर होने वाली चर्चा में उपस्थित माननीयों की संख्या कम रहने लगी है। हालांकि एक सकारात्मक पहलू भी है। आज संसद हर वर्ग और समुदाय की नुमाइंदगी के लिहाज से पहले से ज्यादा समृद्ध है। किसान नेताओं की तादाद संसद में पहले से ज्यादा है। ज्यादा संख्या में महिलाएं संसदीय भूमिका में मुखर हुई हैं।


दलगत लिहाज से संसद में प्रतिनिधित्व पहले की तुलना में काफी बदल गया है। क्षेत्रीय नेता संसद में भी प्रभावी भूमिका निभाने लगे हैं। ऐसे में लोकतंत्र के विविध रंगों के बीच साठ साल पूरे होने के मौके पर जब संसद के दोनों सदन रविवार को मिलेंगे तो कई तरह की चर्चा देखने को मिलेगी। माना जा रहा है कि समृद्ध विरासत की यादों को दिल में संजोने के साथ संसदीय परंपरा की खामियों पर सांसदों की चिंता भी इस मौके पर सामने आएगी।


साठ साल पूरे होने के मौके पर संसद में बहुत भव्य आयोजन तो नहीं हो रहा है। लेकिन काफी हद तक इसे यादगार बनाने की कोशिश जरूर होगी। दोनों सदनों में दिन भर की चर्चा के बाद शाम को सेंट्रल हॉल में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे। संसद में सभी राजनीतिक दलों की ओर से सांसदों की उपस्थिति के लिए संदेश दिया गया है।


निगाहें होंगी इनपर 

पुराने धुरंधरों में सत्तापक्ष की ओर से नेता सदन प्रणब मुखर्जी पर निगाह होगी तो मुख्य विपक्ष भाजपा की बेंच पर बैठे एनडीए के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर भी सबकी नजरें टिकी होंगी। लोकसभा में ये दोनों नेता लगभग समकालीन हैं। आठ साल से देश में प्रधानमंत्री पद पर आसीन मनमोहन सिंह संसदीय इतिहास में पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने राज्यसभा में रहते हुए लोकतांत्रिक मुखिया की कमान इतने लंबे समय तक संभाली है।


सत्तापक्ष में सत्ता की केंद्र सोनिया गांधी तो प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज का विपक्ष में रहना, लोकसभा अध्यक्ष के रूप में मीरा कुमार की उपस्थिति महिला सशक्तिकरण का एहसास सदन के भीतर बखूबी करा रही हैं।
लोकसभा और राज्यसभा के आंकड़े बताते हैं कि पहली लोकसभा से लेकर पंद्रहवीं लोकसभा के सफर में पढ़े-लिखे सांसदों की संख्या बढ़ी है तो आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसदों की संख्या भी लगातार बढ़ी है।


पहली लोकसभा के सांसद 
राज्यसभा में मणिपुर से कांग्रेस के 92 वर्षीय मौजूदा सांसद रिशांग कीशिंग पहली लोकसभा के सदस्य रहे हैं। उनका साठ साल पूरे होने के मौके पर संसद में रहना नए सदस्यों के लिए किसी रोमांच से कम नहीं है। राज्यसभा में करीब 14 सांसद ऐसे हैं जिनकी उम्र 80 से 95 साल के बीच है।



हम सभी की इच्छा है कि संसद की परंपरा समृद्ध हो। ज्यादा समय चर्चा विचार विमर्श और जनहित के काम में लगे।
पवन कुमार बंसल संसदीय कार्यमंत्री



हम संसद से बहुत कुछ सीखना चाहते हैं। इस संसद पर सबकी निगाह होती है। हमें आदर्श पेश करने की कोशिश करना चाहिए।
प्रदीप आदित्य जैन सांसद व मंत्री

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