नई दिल्ली. आज भी कई ऐसे लोग हैं जो काला जादू, तंत्रमंत्र जैसे
अंधविश्वासों में आसानी से फंस जाते हैं और तांत्रिकों के हाथों का खिलौना
बने रहते हैं।
विज्ञान का गलत तरीके से प्रयोग करने वाले इन तांत्रिकों की पोल इन दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी के महर्षि वाल्मीकि कॉलेज ऑफ एजुकेशन के छात्र साइंटिफिक अंदाज में खोल रहे हैं।
छात्रों का मानना है कि विकास के इस युग में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो तांत्रिकों के जाल में फंस कर पहले तो हजारों-लाखों रुपए गंवा देते हैं और फिर डर के साए में जीने लगते हैं।
लोगों को इन तमाम तरह के भ्रम से बाहर निकालने के लिए डीयू के वार्षिक आयोजन अंतरध्वनि 2013 के इनोवेशन प्लाजा में छात्रों ने कई प्रोजेक्ट पेश किए हैं। इसके माध्यम से वे तांत्रिकों की पोल खोलने में जुटे हैं।
स्लाइड के साथ जानिए, कैसे तांत्रिक करते हैं अपना कारनामा
ऐसे करते हैं तांत्रिक अपना कारनामा :
प्रोजेक्ट ग्रुप की छात्रा सौम्या बताती हैं कि नीबू से खून निकालना, चढ़ावे के नारियल में अचानक से आग धधकने लगना, जलते कोयले के अंगारों को हाथों में उठाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना, अपने हाथ से हाथ काट लेना और लहूलुहान करने जैसी हरकतें कर तांत्रिक मासूमों के सामने चकाचौंध पैदा कर देते हैं और लोग इस छलावे में आ जाते हैं।
जबकि असलियत यह है कि इन सब गतिविधियों के पीछे विज्ञान की एक दुनिया
चलती है। कुछ केमिकल रिएक्शन और हाथ की सफाई की मदद से तांत्रिक लोगों को
अपने शिकंजे में आसानी से लेते हैं। हमारी कोशिश लोगों को इसकी सही जानकारी
देने की है ताकि वे डर के साए से निकल सकें।
तंत्रों के पीछे क्या है विज्ञान :
नीबू में पहले ही मिथेन रेड व ऑरेंज का इंजेक्शन दिया जाता है और जैसे ही नीबू का एसिड इस केमिकल के संपर्क में आता है यह लाल रंग का हो जाता है। काटने पर यह खून जैसा दिखता है।
एक बाउल में एनएओएच (लिक्विड) पहले से रखा होता है जिसे तांत्रिक जादुई जल कहते हैं। इसके साथ ही टर्मरिक क्लॉथ रखा होता है।
तांत्रिक यह दावा करते हैं कि यदि जीवन में किसी आत्मा का प्रकोप होगा तो इस जल को छूने और इस कपड़े पर हाथ रखने पर खून के धब्बे हो जाएंगे। जबकि एनएओएच का टर्मरिक के साथ संपर्क होने पर वह लाल रंग का हो जाता है।
इसी तरह तंत्र में प्रयोग होने वाले नारियल में पहले ही सोडियम मेटल डाले जाते हैं और जैसे ही इस पर पानी का छिड़काव होता है यह रिएक्शन कर आग बन जाता है।
विज्ञान का गलत तरीके से प्रयोग करने वाले इन तांत्रिकों की पोल इन दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी के महर्षि वाल्मीकि कॉलेज ऑफ एजुकेशन के छात्र साइंटिफिक अंदाज में खोल रहे हैं।
छात्रों का मानना है कि विकास के इस युग में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो तांत्रिकों के जाल में फंस कर पहले तो हजारों-लाखों रुपए गंवा देते हैं और फिर डर के साए में जीने लगते हैं।
लोगों को इन तमाम तरह के भ्रम से बाहर निकालने के लिए डीयू के वार्षिक आयोजन अंतरध्वनि 2013 के इनोवेशन प्लाजा में छात्रों ने कई प्रोजेक्ट पेश किए हैं। इसके माध्यम से वे तांत्रिकों की पोल खोलने में जुटे हैं।
स्लाइड के साथ जानिए, कैसे तांत्रिक करते हैं अपना कारनामा
ऐसे करते हैं तांत्रिक अपना कारनामा :
प्रोजेक्ट ग्रुप की छात्रा सौम्या बताती हैं कि नीबू से खून निकालना, चढ़ावे के नारियल में अचानक से आग धधकने लगना, जलते कोयले के अंगारों को हाथों में उठाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना, अपने हाथ से हाथ काट लेना और लहूलुहान करने जैसी हरकतें कर तांत्रिक मासूमों के सामने चकाचौंध पैदा कर देते हैं और लोग इस छलावे में आ जाते हैं।
तंत्रों के पीछे क्या है विज्ञान :
नीबू में पहले ही मिथेन रेड व ऑरेंज का इंजेक्शन दिया जाता है और जैसे ही नीबू का एसिड इस केमिकल के संपर्क में आता है यह लाल रंग का हो जाता है। काटने पर यह खून जैसा दिखता है।
एक बाउल में एनएओएच (लिक्विड) पहले से रखा होता है जिसे तांत्रिक जादुई जल कहते हैं। इसके साथ ही टर्मरिक क्लॉथ रखा होता है।
तांत्रिक यह दावा करते हैं कि यदि जीवन में किसी आत्मा का प्रकोप होगा तो इस जल को छूने और इस कपड़े पर हाथ रखने पर खून के धब्बे हो जाएंगे। जबकि एनएओएच का टर्मरिक के साथ संपर्क होने पर वह लाल रंग का हो जाता है।
इसी तरह तंत्र में प्रयोग होने वाले नारियल में पहले ही सोडियम मेटल डाले जाते हैं और जैसे ही इस पर पानी का छिड़काव होता है यह रिएक्शन कर आग बन जाता है।