8 अप्रैल 1929 को इस दल के भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने पब्लिक सेफ्टी बिल व ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल के विरोध में सेंट्रल असेंबली में धमाका किया।
जब उन्हें पकड़ने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने बच निकलने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होंने कहा हमारा उद्देश्य किसी को हताहत करना नहीं, लेकिन बहरी हुकूमत तक हमारी आवाज पहुंचाने के लिए यह धमाका जरूरी था।
केस की सुनवाई के बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। नवंबर १९३क् को लाहौर सेंट्रल जेल से भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त को जो पत्र लिखा, वह आजादी के दीवानों के जज्बे की मिसाल है।
भगत सिंह ने कहा : मैं तो मृत्यु का अंगीकार कर रहा हूं, लेकिन साथी तुम्हें जीवित रहकर अपने दायित्वों का निर्वाह करना है। हम दुनिया को बता देना चाहते हैं कि क्रांतिकारी अपने आदर्शो के लिए मर भी सकते हैं और जी भी सकते हैं। ऐसे ही जज्बे की वजह से देश को आजादी मिल पाई थी।