Sunday, August 7, 2011

रक्षा बंधन का आध्यात्मिक रहस्य

 भारत में जितने त्यौहार मनाए जाते हैं उनमें रक्षाबंधन सबसे अधिक पवित्र त्यौहार है, परंतु जिस अर्थ को लेकर त्यौहार शुरू हुआ था, आज उसमें काफी अंतर आ गया है। आज जो रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है उसमें प्राय: बहनें भाई को राखी बांधती हैं। लोग इसका यह अभिप्राय समझते हैं कि इस रस्म के बाद भाई-बहन की रक्षा करने के लिए बाध्य हो जाता है। परंतु हम इस बात पर विचार करेंगे कि क्या रक्षाबंधन का आदि स्वरूप और वास्तविक अभिप्राय यही था।


   
Photo_of_Barahmkumari_05_Aug_2011     क्या रक्षा बंधन शारीरिक रक्षा के लिए है : सोचने और विचार करने की बात है कि शारीरिक रक्षा ही रक्षा बंधन का अभिप्राया होता तो कन्याएं अपने छोटे-छोटे भाईयों को राखी क्यों बांधती? आज हम देखते हैं कि पंद्रह वर्ष की कन्या अपने चार वर्षीय भाई को राखी बांधती हैं। क्या चार वर्षीय बच्चा रक्षा करने में समर्थ है। पांच वर्ष की कन्या अपने दो वर्ष के भाई को राखी बांधती है यद्यपि दोनों को इस रहस्य का पता ही नहीं होता। न तो वे रक्षा करने में समर्थ हैं न ही इस प्रतिज्ञा को समझते हैं। यदि कन्या अपनी रक्षा ही करवाना चाहती हैं तो वह अपने पिता, चाचे, मामे को राखी क्यों नहीं बांधती जबकि वे रक्षा करने में समर्थ हैं।
     पूर्व काल में शैतान लोगों अथवा अत्याचारियों से नागरिकों की रक्षा करना तो राजा का कत्र्तव्य हुआ करता था राजा पूरा न्याय करता था और अपराधियों एवं अत्याचारियों को दंड देता था जिसके परिणाम स्वरूप उन दिनों अपराध बहुत कम होते थे। श्रीमद्भागवत में जिस कंस का वर्णन है उसने तो अपनी बहन देवकी को मारने के लिए तलवार उठा ली थी तो स्पष्ट है कि अगर दृष्टि-वृत्ति ठीक न रहे तो भाई भी कसाई बन जाता है। तब तो मानना पड़ेगा रक्षाबंधन का त्यौहार भाई द्वारा बहन की रक्षा के लिए नहीं था। बल्किे इसके पीछे कोई और रहस्य था।
     रक्षा बंधन का वास्तविक अभिप्राय : 'रक्षाबंधन' त्यौहार के अन्य जो नाम हैं। उनसे रक्षा बंधन का वास्तविक अर्थ स्पष्ट हो जाता है। उदहारण के तौर पर इस पर्व को 'पुण्य प्रदायक पर्व' भी कहते हैं अथवा 'विष तोड़क पर्व' भी कहा जाता है। इससे सिद्ध है इसका संबंध विषय विकारों को छोडऩे तथा पवित्र आत्मा या पुण्य आत्मा बनने से है।
     इस त्यौहार का यह अभिप्राय इस लिए भी हम सही मानते हैं क्योंकि बहनों के अतिरिक्त ब्राह्मण भी अपने यजमानों को राखी बांधते हैं। ब्राह्मण लोग धर्म कार्यों में ही हाथ डालते हैं और पवित्र कार्य करना ही उनके लिए नियम है। वे उस दिन राखी ही नहीं बांधते बल्कि मस्तक पर तिलक भी देते हैं। बहनें भी भाईयों के मस्तक पर चंदन या केसर के तिलक देती हैं। यह तिलक आत्मा को ज्ञान रंग में रंगने अथवा आत्मिक स्मृति में रहने का प्रतीक है। तो स्पष्ट है रक्षा बंधन पवित्रता रूपी धर्म में स्थित होने की प्रतिज्ञा करने एवं काम रूपी विष को तोडऩे का प्रतीक है।
     यों तो तार एक मामूली-सी चीज है, परंतु जब उस तार में बिजली होती है। तब वह तार बहुत काम करती है। एक फ्यूज की तार अपनी जगह से हटा दी जाए तो चलते हुए कारखानों में काम रुक जाता है। हजारों लोग बेकार खड़े हो जाते हैं और सड़कों पर अंधेरा हो जाता है, जिसके कारण अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं।
     अपने स्थान पर एक छोटी सी तार कितना बड़ा काम करती है। इस प्रकार राखी भी कुछ धागों की बनी होती है, परंतु उन धागों में जो भाव भरा हुआ होता है। वह भाव जीवन को बहुत ऊंचा बनाने वाला होता है। विचार से ही संसार में बड़े-बड़े परिवर्तन होते हैं। अत: राखी जिस विचार की प्रतीक है। राखी में जो भाव छिपा हुआ है वही मुख्य चीज है। उसे धारण करने के लिए प्रेरणा देना ही राखी की रस्म का मुख्य उद्देश्य है। उससे ही राखी की महिमा है। यदि उसे छोड़ दें तब तो राखी बस रुपये दो रुपये की चीज है।
     लोग जब कहते हैं। गांठ बांध लो तो उसका अभिप्राय यह होता है 'बुद्धि में रख लो' बुद्धि में इस बात को पक्की तरह धारण कर लो, परंतु स्मृति के लिए लोग अपने रूमाल या माताएं अपनी ओढऩी को गांठ बांध लेती हैं। ठीक इसी प्रकार मौली को कलाई पर बांधने का उद्देश्य है। पवित्रता रूपी व्रत को बुद्धि में धारण करना।
     रक्षा बंधन संदेश : आज मनुष्य काम और क्रोध रूपी शत्रुओं से बुरी तरह पीडि़त और आहत है। विकारों की अग्रि से सारी दुनिया झुलस रही है। अत: सृष्टि को इन विकारों रूपी शत्रुओं से बचाना है और यहां सुख-शांति स्थापित करना है। यह तब ही हो सकता है जब पहले मनुष्यात्माएं स्वयं को मन-वचन-कर्म और संबंध की पवित्रता से मधुर बंधन में बांधती हैं।
     जब हम स्वेच्छा से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को त्यागकर, संपूर्ण पवित्रता के बंधन को स्वीकार करते हैं, तब भगवान सभी नकारात्मक प्रभावों से हमारी सुरक्षा करते हैं और हमें सत्य और स्थायी सुख, शांति और दैवी प्रेम के अनुभव की प्राप्ति कराने का वचन देते हैं। परमपिता के बच्चे होने के नाते जब हम सर्व मनुष्यात्माओं से आध्यात्मिक भाईचारे के संबंध में पहचान कर लेते हैं, तो हमारी दृष्टि अपवित्रता, भेदभाव और उग्र स्वभाव से मुक्त हो जाती है। हम सर्व के प्रति पवित्र, सम्मानयुक्त, करूणामयी और कल्याणमूर्त वृत्ति विकसित कर सकते हैं।
     तो आइये इस पावन पर्व पर हम अपनी प्रतिज्ञा को दोहराएं कि हम जीवन में पवित्रता धारण करेंगे और विशेषत: पर्व के प्रति सहनशीलता, करूणा, प्रेम, सम्मान और सहयोग की भावना फैलाकर विश्व बंधुत्व की कड़ी को मजबूत करेंगे।
     मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि विश्व से नकारात्मकता के उन्मूलन के लिए प्रतिदिन प्रात: 5 मिनट का मौन धारण कर विश्व कल्याण के कार्य में सहयोग अवश्य प्रदान करें।

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