Sunday, November 28, 2010

एनडीए की नई कहानी, नए चेहरे



नई दिल्ली. बारह साल पहले अटलबिहारी वाजपेयी ने गैर-कांग्रेसवाद की राजनीति के कुछ मजे हुए दिग्गजों को साथ लेकर एनडीए के रूप में एक नया प्रयोग किया था। इससे पहले जनता पार्टी समेत विपक्षी दलों को एक छतरी के नीचे लाने के तमाम प्रयोगों ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था। मगर वाजपेयी के नेतृत्व और जॉर्ज फर्नाडिस की मदद से एनडीए ने केंद्र में पहले तेरह महीने और फिर पांच साल तक राज किया। केंद्र की हार के बाद कुछ साथी दूर हुए, एनडीए का कुनबा बिखरा मगर टूटा नहीं।

आज बिहार की तरह एनडीए की भी नई कहानी लिखी जा रही है। मगर इस नई इबारत को दीवार पर उकेरने वाले केंद्र नहीं बल्कि प्रदेशों की राजधानियों में बैठे हैं और वहीं से देश की राजनीति को मोड़ने का काम कर रहे हैं। अब वाजपेयी, फर्नांडिस का दौर खत्म हो चुका है। लालकृष्ण आडवाणी सक्रिय तो हैं मगर खुद को एक मार्गदर्शक की भूमिका में ढालने लगे हैं। प्रकाश सिंह बादल किसी भी दिन पंजाब की गद्दी अपने बेटे को सौंपने को तैयार बैठे हैं। बाल ठाकरे का असर जनता में कम, सामना के संपादकीय में ज्यादा रह गया है। ऐसे में एनडीए को नई दिशा देने का दारोमदार नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी, रमन सिंह, और शिवराज सिंह चौहान जैसे मुख्यमंत्रियों के कंधों पर आन पड़ा है। और क्यों न हो? इन मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने प्रदेशों में सुशासन, विकास और जनकल्याण को प्रमुखता देकर सभी आलोचकों को खामोश कर दिया है। बिहार के चुनाव नतीजों ने नीतीश कुमार को रातोरात एनडीए का सबसे सफल चेहरा बना डाला।

जाने-माने राजनीतिक समालोचक महेश रंगराजन का कहना है कि नीतीश कुमार की ऐतिहासिक जीत नरेंद्र मोदी की दो लगातार जीतों से कहीं बड़ी उपलब्धि है क्योंकि बिहार में शून्य से शुरुआत करनी पड़ी। रंगराजन की मानें तो मोदी बेशक भाजपा के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और पार्टी की कमान एक दिन उनके हाथों में जरूर आएगी। मगर रंगराजन के मुताबिक गठबंधन के नेता के रूप में अब तक नीतीश कुमार ने जो पहचान बनाई है वह नरेंद्र मोदी के खाते में अब तक नहीं आई। हालांकि यह दिलचस्प बात है कि मोदी ने भी इस खामी को भांपते हुए मुसलमानों को पचांयत चुनाव में टिकट बांटे। इनमें कई जीत भी गए। संकेत साफ है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भी वह मुसलमानों को मौका देकर यह छवि ध्वस्त करना चाहेंगे कि उन्हें अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल नहीं है।

वैसे, एनडीए के इस नए अवतार के कई अन्य चेहरे भी है जो लो-प्रोफाइल रहकर देश की राजनीति में अपनी खास जगह बनाने में जुटे हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह प्रमुख हैं। कभी गरीबों को सस्ते दर में चावल बांटकर तो कभी गैर-पारंपरिक ऊर्जा पर जोर देकर वह इस नौनिहाल प्रदेश को विकास की दौड़ में चौंकाने वाला स्थान दिलाने में कामयाब हुए हैं। जबकि पड़ोसी प्रदेश मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने बिना शोर-शराबा किए प्रदेश में विकास का नया अध्याय शुरू किया है।

प्रदेशों के क्षत्रपों की यह नई ताकत केंद्र की राजनीति करने वालों के अच्छी खबर नहीं है। ये मुख्यमंत्री मजबूत राज्यों की जनता के चहेते हैं और इनके पास वोट की ताकत है जो लोकतंत्र में सफलता का सबसे बड़ा पैमाना है। शायद यही वजह है कि भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन फिलहाल इस बहस से बचते नजर आते हैं। उनका कहना था कि एनडीए के नेता लालकृष्ण आडवाणी हैं और वहीं रहेंगे। नीतीश कुमार पर उनकी टिप्पणी थी कि नीतीश कुमार केंद्र में एनडीए की सरकार के जमाने से ही गठबंधन के नेता माने जाते हैं।

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