ब्रह्मा जी ने भी किया था पुष्कर स्नान
भगवान विष्णु की नाभि से कमल और कमल पुष्प से ब्रह्माजी का प्राकट्य हुआ। ब्रह्माजी सृष्टि रची और सृष्टि रचयिता-प्रजापिता कहलाए।
स्कन्ध पुराण एवं मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की रचना के साथ ही ब्रrाजी को उसके कल्याण के लिए तीर्थ स्थापना भी करनी थी। इसका स्थल चुनने के लिए ब्रह्माजी ने मृत्युलोक में कमल पुष्प छोड़ा। वह सात लोक-चौदह भुवन घूमता हुआ पुष्कर पहुंचा। दो जगह गिरा-उछला, फिर तीसरी जगह जाकर स्थिर हुआ। पहला स्थान रुद्र (कनिष्ठ या बूढ़ा) पुष्कर, दूसरा स्थान विष्णु (मध्य) पुष्कर और तीसरा स्थान ब्रह्मा (ज्येष्ठ) पुष्कर कहलाया। ब्रह्मा पुष्कर में कमल गिरा, वहां धरती से जल की धारा फूट पड़ी।
वहां कोई मूर्ति स्थापित करने की बजाय जल को ही महत्व और आराध्य का स्थान दिया गया। ब्रह्माजी ने कमल पुष्प स्थिर होने के स्थान अर्थात् ब्रह्मा पुष्कर को सर्वथा पवित्र स्थान बतलाया और वहीं यज्ञ किया। समस्त देवी-देवताओं की उपस्थिति में ब्रह्मपुत्र वशिष्ठ के पौत्र एवं महर्षि शक्ति के पुत्र महर्षि पाराशर ने इस यज्ञ तथा तीर्थ पुरोहित का जिम्मा संभाला। कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक यह यज्ञ हुआ और एकम् को स्वयं ब्रह्माजी ने पोकरजी में स्नान किया। इस कारण पुष्कर तीर्थगुरु कहलाया। महात्म्य और मान्यता है कि उक्त पांच दिनों की अवधि में 33 करोड़ देवी-देवता तीर्थराज पुष्कर में प्रवास करते हैं।
ऋषि-महर्षियों, त्यागी-तपस्वियों की उपस्थिति यहां रहती है। स्वयं निराकार परमात्मा मानव के रूप में आकर यहां स्नान करते हैं। समस्त तीर्र्थो का गुरु होने के कारण यहां का अत्यधिक महत्व है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पोकरजी में किया गया स्नान मोक्ष प्रदान कर स्वर्ग में स्थान दिलाता है। देश-दुनिया के तीर्र्थो के दर्शन-पूजन का लाभ भी तभी मिलता है, जब अंत में पोकरजी के दर्शन किए जाएं और विधि-विधान से स्नान किया जाए। पोकरजी को टाल देने पर अन्य तीर्र्थो के भ्रमण का भी पुण्य या फल नहीं मिलता।
पुष्कर महात्म्य
जन्म प्रवृत्ति यत पापं श्रियावा पुरुषेण च
पुष्कर स्नान मातेण सर्व पापं विनष्यते।
शमीपत्र प्रमाणीनाम् पिंड दद्याति पुष्करे
उद्धरे सप्त गोभाणां कुलमेको उद्धरं शतम्।
पुनन्तु सर्व तीर्थानां स्नानदानादि संशया:
पुष्करा लोकना देवा शुद्धो पापा प्रमुच्यते।
(पद्म पुराण)
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