Tuesday, February 15, 2011

कश्मीर परिवारवाद की सियासत में उलझती रियासत

|




राज्य में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है जिन्हें कुर्सी विरासत में मिलती रही है। ज्यादातर नेता इसी जुगत में रहे हैं कि किसी तरह पॉवर उनके परिवार में ही रहे। चाहे बेटे के पास, बेटी के पास या किसी और करीबी रिश्तेदार के पास। राज्य के पहले प्रधानमंत्री के बाद परिवारवाद शुरू हुआ। बाद में अनुसरण करने वालों की अच्छी खासी जमात खड़ी हो गई। अब भी इनमें बढ़ौतरी बदस्तूर जारी है। हालांकि ऐसी सियासत करने वाले कई नेताओं को जनता ने एकदम से नकारा भी है। परिवारवाद पर हरजिंदर सिंह की रिपोर्ट:


राज्य की राजनीति में परिवावाद का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। यह ‘वाद’ अब निचले स्तर तक भी कायम हो चुका है। क्षेत्रीय पार्टियां तो इसमें वैसे ही आकंठ डूबी हुई हैं लेकिन राष्ट्रीय पार्टियां भी अलग नहीं रह सकी। हर जगह परिवारवाद पसरा हुआ है। राज्य के प्रमुख दलों में से एक भी ऐसा राजनीतिक दल नहीं है जिसमें परिवारवाद न हो।

राज्य के युवा मुख्यमंत्री को ही लिया जाए तो अपने दादा की विरासत संभाले हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन है। यदि उमर फारूक अब्दुल्ला के बेटे न होते तो शायद ही मुख्यमंत्री बनते। शेर-ए-कश्मीर कहे जाने वाले महोम्मद शेख अब्दुल्ला ने नेकां में परिवारवाद चलाते हुए फारूक अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री का पद संभाला।

तो फारूक अब्दुल्ला ने अपने बेटे को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। शेख अब्दुल्ला के दूसरे बेटे डा. मुस्तफा कमाल ने भी अपने भाई की तरह डाक्टरी के पेशे को छोड़कर परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे चलाने में भाई का साथ दिया। चार बार विधायक बने डा. कमाल फारूक अब्दुल्ला मंत्रीमंडल में मंत्री भी रहे।

डा. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ बगावत कर मुख्यमंत्री बनने वाले जीएम शाह शेख अब्दुल्ला के दामाद और डा. फारूक अब्दुल्ला के जीजा थे। शाह के बेटे मुजफ्फर शाह भी अवामी नेशनल कांफ्रेंस पार्टी को किसी तरह चला रहे हैं।

कंगन विधानसभा क्षेत्र में 1952 से 1967 तक नेकां के विधायक रहे मियां निजामुद्दीन के बाद उनके बेटे मियां बशीर अहमद ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। मियां बशीर 1967 से 1987 तक कांग्रेस के विधायक रहे। अब मौजूदा वन मंत्री मियां अल्ताफ 1989 से लेकर अब तक राजनीतिक विरासत को संभाले हुए हैं। ग्रामीण विकास मंत्री अली मोहम्मद सागर अपने बेटे सलमान सागर को राजनीति मंे लाए। श्रीनगर नगर निगम में कारपोरेटर बनने के बाद सलमान श्रीनगर के मेयर रहे।

अमीरा कदल के विधायक नासीर असलम वानी (सोगामी) भी अपने पिता गुलाम नबी वानी की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। नासिर के पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के करीबियों से मंे एक माने जाते थे। वे जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के सदस्य थे और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला सरकार में मंत्री भी रहे।

बटमालू से विधायक मोहम्मद इरफान शाह अपने पिता गुलाम मोहयुद्ीन शाह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। गुलाम मोहयुद्दन पांच बार विधायक रहे। शाह मंत्री भी रह चुके हैं। स्वर्गीय प्यारे लाल हांडू के दामाद रमन मट्टू ने ससुर की राजनीति को आगे बढ़ाया।

रमन पीडीपी कांग्रेस सरकार मंे राज्य मंत्री रहे। गुज्जर नेता हाजी बुलंद खान के निधन के बाद उनके बेटे एजाज खान ने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस पीडीपी सरकार में राज्य मंत्री बने। उसके बाद कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ा और मौजूदा सरकार में भी मंत्री हैं।

डोडा जिले के नेशनल कांफ्रेंस के नेता अत्ता उल्लाह सोहरवर्दी के बेटे खालिद नजीब सोहरावर्दी भी परिवार की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं।

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) भी परिवारवाद की जद से अछूती नहीं है। पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी इसका खासा उदहारण अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती को प्रोजेक्ट कर दिखा दिया। मुफ्ती मोहम्मद के बाद पीडीपी मंे महबूबा नंबर दो का स्थान रखती हैं।

छज्जू राम भगत की बहू सुमन भगत भी राजनीति में सफल रही है। आएरएसपुरा से विधायक रहते हुए पीडीपी-कांग्रेस सरकार में मंत्री रही। सांसद मदन शर्मा ने अपने भाई शाम लाल को राजनीति में उतारा। शाम लाल की ठेकेदारी छुड़वाकर अपने स्थान पर अखनूर से विधायक बनवाया। विधायक बनने के बाद शाम स्वास्थ्य मंत्री बन गए। वहीं सांसद लाल सिंह ने भी अपने स्थान पर पत्नी कांता अंदोत्रा को विधानसभा का चुनाव लड़वा कर विधायक बनवाया। लेकिन दूसरी बार विधायक बनने में सफल नहीं रही।

लाल सिंह ने कठुआ में अपने भाई रजिंद्र सिंह बब्बी को वार्ड नंबर 2 व अपनी भाभी को वार्ड 17 से नगर परिषद के चुनावों में उतारा और दोनो सफल भी रहे। पैंथर्स सुप्रीमो भीम सिंह ने अपनी पार्टी बनाई और उसके बाद भतीजे हर्षदेव सिंह तथा भांजे बलवंत ¨सह मनकोटिया को राजनीति में उतारा। हर्ष ने रामनगर से जीत दर्ज करवाकर शिक्षामंत्री के पद पर रहे। इस समय भी वह रामनगर के ही विधायक हैं। मनकोटिया ने ऊधमपुर से दो बार चुनाव लड़ा और दोनों बार सफलता हासिल की।

वहीं प्रभावशाली नेता मुंशी रूप सिंह के बेटे अरमिंदर सिंह मिक्की भी विधान परिषद वाइस चेयरमैन हैं।

किश्तवाड़ से विधायक सज्जाद अहमद किचलू अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाले हुए है। पिता की मौत के बाद वर्ष 2002 मंे चुनाव लड़ कर पहली बार विधायक बने सज्जाद ने 2008 मंे दूसरी बार जीत हासिल की। पीडीपी के विधायक जुल्फिकार पांच बार विधायक रहे मोहम्मद हुसैन के बेटे हैं। विधानसभा के डिप्टी स्पीकर सरताज मदनी मुफ्ती मोहम्मद सईद के करीबी रिश्तेदार हैं।

कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम महोम्मद सादिक ने भी अपने बेटे रफीक सादिक को राजनीति में उतारने के खव्वाब देखे लेकिन सफल नहीं हो पाए। वहीं, राज्य के प्रधानमंत्री रह चुके बख्शी गुलाम मोहम्मद ने अपने भाई रशीद बख्शी को राजनीति में लाने की कोशिश की। बिगड़ेल स्वभाव के भाई को उसके कारनामों के लिए एक बार लेफ्टिनेंट जनरल विक्रम सिंह ने रोककर थप्पड़ मारे थे।

राज्य के पूर्व मंत्री व बेहद प्रभावशाली नेता त्रिलोचन दत्त ने अपने बेटे विनोद दत्त को राजनीति में चलाने की कोशिश की लेकिन वह भी कामयाब नहीं हो पाए। उसके बाद उनके पोते विकास दत्त भी राजनीति में उतरे लेकिन सफल नहीं हुए।

पंडित मंगत राम शर्मा ने परिवारवाद चलाने का अथक प्रयास किया और अभी भी प्रयासरत है लेकिन वह भी परिवारवाद कायम करने में सफल नहीं हो पाए हैं। मंगतराम ने बेटे सुभाष शर्मा व राकेश शर्मा सहित अपने पोते नितिन शर्मा को भी राजनीति में चलाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए।

वहीं 37 वर्षो तक वित्त मंत्री रह चुके हीरानगर के गिरधारी लाल डोगरा ने अपने भाई राम दास डोगरा को राजनीति में उतारने का प्रयास किया लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाए।

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा विधायक दल के नेता प्रो. चमन लाल गुप्ता भी अपने बेटे अनिल गुप्ता को राजनीति में लाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं।

लोकसभा चुनावों में अनिल ने कठुआ-ऊधमपुर चुनाव क्षेत्र से भाजपा का टिकट हासिल करने का असफल प्रयास भी किया। अनिल इस समय भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए जम्मू पश्चिम विधानसभा क्षेत्र पर अपना ध्यान लगाए हुए हैं। प्रो. गुप्ता इस समय इसी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

जो दबे नहीं और चुनौती को स्वीकारा

वर्ष 2002 में आंतकियों द्वारा पिता अब्दुल्ल अजीज मीर की हत्या करने के बाद जहूर अहमद मीर ने चुनौती के तौर पर राजनीति मंे कदम रखा। 2003 में ही पांपोर से उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल कर आतंकियों को कड़ा जबाब दिया। जहूर मौजूदा विधानसभा में भी विधायक हैं।

विधानसभा के स्पीकर रहे वली मोहम्मद इत्तू की आतंकियों द्वारा जम्मू में हत्या करने के बाद डा. फारूक अब्दुल्ला ने सकीना की एमबीबीएस की पढ़ाई को बीच में ही छुड़वा कर विधानसभा चुनाव लड़वाया और अपने मंत्री मंडल में राज्य मंत्री बनाया। उसके बाद से सकीना ने राजनीति में हार नहीं मानी।

पीडीपी के विधायक जावेद मुस्तफा मीर के पिता गुलाम मुस्तफा मीर की भी आंतकियों ने हत्या कर दी थी। उसके बाद जावेद ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर आंतकवाद को जबाब दिया। पीडीपी-कांग्रेस सरकार के राज्य मंत्री गुलाम नबी लोन की आतंकियों द्वारा दिन दिहाड़े हत्या के बाद उनके बेटे शोयब लोन ने निर्दलीय के तौर पर संग्रामा से उपचुनाव लड़ा और जीता।

शोयब हमेशा ही अपने पिता की हत्या को एक साजिश बताते हुए सीबीआई से जांच करवाने की मांग करते रहे हैं। शोयब ने विधानसभा में मंत्री पर रिश्वत लेने के आरोप लगा कर राजनीतिक हंगामा खड़ा कर दिया था। दूसरी बार चुनाव जीतने में शोयब लोन सफल नहीं हुए। अब यूथ कांग्रेस के प्रदेश अघ्यक्ष बनाए जाने के बाद कांग्रेस को मजबूत करने में लगे हुए हैं

Uploads by drrakeshpunj

Popular Posts

Search This Blog

Popular Posts

followers

style="border:0px;" alt="web tracker"/>