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जुल्फीकार अली दरहाल हलके से पीडीपी के विधायक हैं। पहले नेकां में भी रहे। 2002 में बातौर निर्दलीय चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं हुई। उसके बाद पीडीपी में शामिल हुए और 2008 में पहली बार विधायक बने। उन्हें मलाल है कि राजौरी जिले के साथ सौतेला व्यवहार होता है। इस युवा नेता से विभिनन मसलों पर बातचीत |
राज्य में हालात बदलते रहते हैं, एक राजनीतिज्ञ होने के नाते इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
देखिए पहले जरूरी है कि जब तक समस्या की जड़ तक हम न जाएंगे, उसे डायगनोज नहीं कर सकते, सही ढंग से हल नही कर सकते। 1947 से ही कश्मीर की समस्या रही है। राज्य में हर तरह का एलीमेंट रहा है। कुछ लोग प्रो अलगाववादी विचारधारा के रहे हैं और कुछ भारतीय संविधान के अदंर अपनी बात रखना चाहते हैं या रियायत लेना चाहते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि 370 को कमजोर दिया गया, वह गलत है। लोगों का विश्वास सिस्टम पर होना चाहिए था, वह दिन ब दिन कम होता गया। उसे हम ट्रस्ट डेफेसिट कह सकते हैं। जिस नजरिए से हम भारत की दूसरी रियासतों को देखते हैं। उस नजरिए में जेएंडके को नहीं देख सकते।
दूसरा इस रियासत का विलय अलग परिस्थितियों और कंडीशनल हुआ या कंडीशन के साथ हुआ। भारत इसे यूएन में ले गया और इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। यहां पर लोगों को शुरू से जो धारा 370 से सेफ राईड दी गई थी उसे धीरे धीरे कमजोर किया गया। मेरा मानना है कि कश्मीर समस्या है और उसे हल करने की जरूरत है।
कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर कोई समस्या नहीं है या अंतराष्ट्रीय मसला नहीं है। अगर अंतर्राष्ट्रीय मसला नहीं था तो फिर वाजपेयी ने मुशर्रफ से बातचीत क्यों शुरू की। अगर समस्या नहीं है तो फिर लोग क्यों मर रहे हैं। पिछले वर्ष तीन माह में 117 लोग मारे गए। कभी हालात अच्छे हो गए और कभी बहुत ज्यादा बिगड़ गए। इसलिए मेरा मानना है कि कश्मीर एक समस्या है और इसे जेएंडके के लोगों की अकांक्षाओं के अनुरूप हल किए जाने की जरूरत है।
आपके हिसाब से इसका क्या हल हो सकता है?
मेरा मानना है कि पाकिस्तान को भी बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए। पाकिस्तान से बातचीत किए बिना घुसपैठ समाप्त नहीं हो सकती। हमारे राज्य की भौगोलिग स्थिति अलग है। जिससे घुसपैठ को नहीं रोका जा सकता। घुसपैठ रोकने के लिए लिए आपको पाकिस्तान से बातचीत करनी होगी। पाकिस्तान भी उसी आतंकवाद का शिकार है जिसके हम शिकार थे। हमने 20 साल पहले यह आतंकवाद देखा और मुसीबतें झेली लेकिन उन्होंने अभी देखना शुरू किया है। इसलिए इस मसले की गंभीरता को देखते हुए इसे हल किया जाना चाहिए।
लेकिन राज्य में हालात क्यों खराब हो जाते हैं?
जब 2008 में चुनाव हुए तो लोगों ने 61 प्रतिशत मतदान किया। उससे पहले भूमि विवाद हुआ और किसी को उम्मीद नहीं थी कि कोई आदमी मतदान के लिए निकलेगा। लगभग 39 लाख लोगों ने वोट देकर अपने उम्मीदवारों को चुन कर भेजा। ऐसा क्या हो गया एक वर्ष में कि लोगों ने यू टर्न ले लिया। वही लोग वही रीजन, ऐसा क्या हो गया कि कोई जनता के नुमाईंदों से बात करने के लिए तैयार नहीं है। हमारे साथी कश्मीर में अपने विधानसभा क्षेत्र में नहीं जा सकते थे। वे चाहे पीडीपी, एनसी या कांग्रेस के क्यों न हों। किसी भी राजनीतिज्ञ को नहीं देखना चाहते थे। जो विश्वास लोगों को लोकतंत्र में आया था वह फिर इरोड हो गया।
आज 117 लोगों के मरने के बाद सामान्य हालात की स्थिति लगती है। आप उसे मान सकते हैं या भारत सरकार मान सकती है कि हालात सामान्य हैं। लेकिन राजनीतिज्ञ होने के नाते मैं कहूंगा कि यह हालात सामान्य नहीं हैं। यह फिर भड़क सकते हैं। आप किसी आदमी को ताकत से दबा नहीं सकते जब तक कि आप उसका दिल और दिमाग को नहीं जीतते।
भारत सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है वार्ताकारों को नियुक्त करके जो रिमोट एरिया में जाकर लोगों की बात सुन रहे हैं। अलगाववाद एक विचारधारा है वह गलत भी हो सकती है सही भी। उनकी बात सुने बगैर हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। रिजल्ट ओरियंटिड बात होनी चाहिए। इसके लिए हमें बात सुननी पड़ेगी, उन्हें समझना होगा। आप किसी को दबा कर लोगों के दिल दिमाग को नहीं जीत सकते। इससे हालात और खराब होंगे।
ऐसी स्थिति आए तो एक राजनीतिज्ञ की कैसी भूमिका होनी चाहिए?
एक राजनीतिक होने के नाते हम सरकार और जनता के बीच पुल का काम करते हैं। जहां सरकार लोगों तक नहीं पहुंचती वहां हम पहुंचतें हैं। इसके लिए सरकार को हमे साथ लेना होगा सभी मसलों को हल करने के लिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए अलोकतांत्रिक तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिए।
लोगों को लगता है कि मौजूदा सरकार लोगों के नुमाईदों की पावर को अंडरमाईन कर रही है। सरकार भेदभाव भरा रवैया अपनाए हुए है। जब लोगों ने अपने नुमाईदों को इस आशा के साथ चुना कि उनके मसले हल हो जाएंगे। इसलिए मसलों के हल के लिए मुझे सरकार से ही बात करनी है। लेकिन बात को अनसुना किए जाने से लोगों का विश्वास सरकार पर कम हो रहा है। जो व्यक्ति मौजूदा व्यवस्था को चला रहा है जब वह एक विधायक की अथारिटी को समाप्त करेगा तो साफ है कि वह सरकार की अथारिटी को ही समाप्त कर रहा है। उसे कोशिश करनी होगी कि सभी मसलों को मिल कर सुलझाया जाए। लेकिन लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना सरकार का फर्ज है।
केन्द्र सरकार की ओर से शुरू की गई योजनाओं का पैसा मौजूदा वित्त वर्ष के 9 माह बीत जाने के बाद भी खर्च नहीं हुआ है। ग्रामीण सड़क योजना का 7वें फेज का पैसा नहीं खर्च हुआ। मनरेगा में राजौरी जिले के लिए 35 करोड़ रूपए आया था। लेकिन सरकार अभी तक लोगों को रोजगार नहीं दे पाई है। एक प्रतिशत भी काम लोगों को रोजगार नहीं मिला। सरकार को सभी को साथ लेकर चलना होगा।
तीनों खित्तों की अलग अकांक्षाएं हैं भेदभाव को कैसे दूर किया जा सकता है?
इस रियासत में लोगों को शुरू से शिकायत रही है कि फलां रीजन को ज्यादा मिला और एक रीजन कहता है कि दोनों को ज्यादा मिला। जम्मू को शिकायत है श्रीनगर वाले खा गए और लद्दाख को शिकायत है कि दोनों रीजन खा गए। अगर गौर करें तो आज तक समानता नाम की कोई चीज इस रियासत में थी ही नहीं।
पिछली सरकार ने इस विषय में जरूर कुछ किया है इस विषय में। अगर सब रीजन में भी चले जाएं तो वहां भी एक गुस्सा है कि यहां कुछ भी नहीं है। सब रीजनल भेदभाव पर पर अगर नजर डाली जाए तो जो पैसा एक फलाईओवर पर खर्च होता है उतना 10 साल का प्लान राजौरी जिले का नहीं है।
हम यह नहीं कहते कि बड़े शहरों में जो चीजें बनी वह गलत हुआ। लेकिन रिमोट एरिया में लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रहीं। महिलाओं को 5 से 10 किलोमीटर पैदल पानी लेने के लिए जाना पड़ता है। आजादी के 63 साल बीतने के बाद भी मेरे इलाके की 60 प्रतिशत आबादी बिजली के बगैर है और बिजली देखी तक नहीं।
आप मौजूदा सरकार से पूछिए कि कश्मीर के दो विधानसभा क्षेत्रों में वर्ष 2010-11 में 15 हाईस्कूल और 8 हायरसैकेंडरी स्कूल खोले। सीनियर कैबिनेट सदस्य इन विधानसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी करते हैं। जबकि हमारे क्षेत्र में बच्चे सुबह 6 बजे स्कूल जाते हैं और दस बजे स्कूल पहुंचते हैं। स्कूल खत्म होने के बाद वे वापिस घर रात 8 बजे पहुंचते हैं।
डि-लिमिटेशन की मांग उठती रही है भेदभाव को समाप्त करने के लिए..
देखिए भेदभाव सिर्फ जम्मू या लद्दाख से नहीं है बल्कि सब जगह पर है। कश्मीर का उपेक्षित एरिया भी निकगलैक्ट है। कश्मीर के अनंतनाग का रिमोट एरिया कुलगाम, पुलवामा जिले है। डि-लिमिटेशन हो जाए और संवैधानिक तरह से हो जाए तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।
इस राज्य के गुज्जर, लद्दाखी, गद्दियों को 1991 में एसटी स्टेटस दिया गया लेकिन पिछले 20 वर्षो से उन्हें राजनीतिक आरक्षण नहीं दिया गया। अगर यह सरकार ऐसी अप्रोच रखेगी, सेफगार्ड नहीं देगी तो हम कैसे कह सकते हैं लोगों को सशक्त किया जाएगा। अगर विधानसभा में ऐसा कोई विधेयक आता है तो हम उसका समर्थन करेंगे।
राजौरी बार्डर बेल्ट, गुज्जर पहाड़ी का मसला.
गुज्जरों को 1991 को एसटी स्टेटस दिया गया लेकिन पिछले 20 वर्षो में गरीब गुज्जरों को सही फायदा नहीं मिला। जिस परपज के लिए यह बना था आज भी इमानदार गरीब गुज्जर को उसका फायदा नहीं मिल रहा। इलीट कलास इसका फायदा ले रही है। मेरा मानाना है कि हमें कोई पंडोरा बाक्स नहीं खोलना चाहिए। हमें सक्रीन करना चाहिए भारत सरकार को जांचना चाहिए कि कौन व्यक्ति उपयुक्त है जिसे यह फायदा मिलना चाहिए।
क्रीमी लेयर को इस एसटी स्टेटस से हटा देना चाहिए और जरूरतमंद पहाड़ी, गुज्जर, ब्राह्मण राजपूत को कोई भी हो उसे आर्थिक स्थिति के हालात पर उसे एसई स्टेटस मिलना चाहिए। जो जरूरतमंद और रिमोट क्षेत्र में अपने कच्चे घर में रहता है, उसे यह दर्जा मिलना चाहिए। (पहाड़ी को आरक्षण का मुद्दा) मैं उनका विरोध नहीं करता लेकिन अगर आर्थिक आधार पर उन्हें भी आरक्षण दिया जाए तो कोई बुराई नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र का कोई भी रहने वाला अपने को पहाड़ी कह सकता है। हिमाचल, उत्तराखंड इत्यादि क्षेत्रों के लोग अपने आप को पहाड़ी कहते हैं।
आपके हिसाब से पीडीपी का जम्मू रीजन में क्या रोल होगा?
पहली बार हमारी सरकार ने जम्मू के लोगों को सशक्त किया। मुफ्ती मोहम्मद सईद सरकार के समय सोशल वैलफेयर डायरैक्टरेट, फाइनेंशल कमिशनर बना, हार्टीकल्चर समेत कई काम किए गए। मुगल रोड, गुलाम शाह यूनिवर्सिटी, माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी, 20 नए कालेज बनाए गए, बलाक, जिले बने, हमारी सरकार ने जम्मू को कुछ दिया। दूसरा पीडीपी ने राजनीतिक आधार से सशक्त किया।
जब तक पीडीपी मैदान में नहीं थी जम्मू के साथ अनदेखी की जाती थी। एनसी के 50 वर्ष के कार्यकाल में जम्मू के साथ अनदेखी की गई। पीडीपी के बनने से ही जम्मू के लोगों को मंत्री बनाया गया है। हमने वायबल रीजनल आल्टरनेट दिया। हमने एक मेंबर के साथ शुरू करके 21 तक पहुंचे जबकि नेकां 61 से 28 तक पहुंची। उन्होंने 6 लाख वोट हासिल किए हमने 9 लाख वोट हासिल किए। हमारा ग्राफ उनसे कहीं बढ़ा है।
पचायती एक्ट में संशोधन होना चाहिए?
अगर पंचायत चुनाव करवाने हैं तो 73 और 74वां संशोधन होने चाहिए नहीं तो वह बिना दांतों का निकाय होगा। ऐसे निकाय बनाने का कोई मतलब नहीं होगा जिसके पास पावर न हो। सिर्फ पलानिंग कमीशन से पैसा लेने और दिखाने के लिए चुनाव करवा रहे हैं तब ठीक है। अगर सत्ता को जमीनी स्तर पर देकर उसे मजबूत करना चाहते हैं तो संशोधन होना चाहिए
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