Wednesday, November 16, 2011

हाईप्रोफाइल मुकदमों में आरोपियों की जमानत पर अजब-गजब तर्क




नई दिल्ली. सभी बड़े मुकदमों के आरोपियों की एक ही कोशिश। किसी भी तरह जमानत मिल जाए,बस। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज आरएस सोढ़ी मानते हैं कि मौजूदा सिस्टम में दिवानी मामलों में स्टे और फौजदारी मामलों में जमानत मिलना, केस जीत लेने के बराबर है। क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया इतनी धीमी है कि सुनवाई पूरी होने और फैसला आने में वर्षो लग जाते हैं। 



नोट के बदले वोट मामले में अमर सिंह जब पकड़े गए तो बीमार पड़ गए। जमीन घोटाले में येद्दियुरप्पा गिरफ्तार हुए तो अस्पताल में भर्ती हो गए। जेल से मुक्ति पाने के लिए 2जी मामले में फंसी कनिमोझी बच्चों की दुहाई दे रही हैं। किरदार अलग-अलग। लेकिन जमानत की चुनौती सबके सामने एक जैसी। सीबीआई कनिमोझी को लेकर नरम है, लेकिन दिवालिया हो चुके आईटी कंपनी सत्यम के पूर्व मालिक रामलिंगा राजू को लेकर वह 34 महीने तक कहती रही कि वे सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं।


दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एसएन ढींगरा कहते हैं, अब समय आ गया है सफेदपोश अपराधियों को सम्मानजनक न माना जाए। ये कई मामलों में बद से भी बदतर हैं। 2जी मामले में अपराध की गंभीरता को देखते हुए ही जज ने जमानत से इनकार किया होगा। वैसे भी जमानत किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, जमानत देने का फैसला जज अपने विवेकाधिकार से ही लेते हैं। 


बस,केस का स्तर देखा जाता है। फिर वे चाहें तो चार्जशीट दाखिल होने पर ही जमानत दे दें या आरोप सुनाए जाने पर। कनिमोझी के मामले में तो जज ने गवाहों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जमानत देने से मना किया है। लेकिन पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू रामचंद्रन कहते हैं कि सामान्य नियम जमानत है, न कि जेल। ऐसे मामलों में जहां जांच एजेंसी ने ही कह दिया है कि आरोपी को हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है।तो जमानत से इनकार करना समझ से परे है।


जमानत या जेल पर कोई तय नियम नहीं: कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार जमानत के मामले में कोई स्पष्ट कानून नहीं है। इसका अधिकार पूरी तरह से जज के विवेक पर आधारित है। लेकिन प्रख्यात न्यायविद एम सितलवाड़ ने अपनी किताब ‘माय लाइफ’ में कहा है कि जज का विवेक पूरी तरह कानून पर आधारित होना चाहिए। यह मनमर्जी,अस्पष्ट और कल्पनाशील नहीं होना चाहिए।


जमानत पर अलग-अलग मत-


सुब्रमण्यम स्वामी अध्यक्ष जनता पार्टी और 2जी मामले के शिकायतकर्ता:


मैं तो यही कहूंगा कि जज ने जमानत देने से इनकार कर बिल्कुल सही फैसला किया है। क्योंकि यह अपराध देश के खिलाफ जुर्म है। सीबीआई का रवैया बिल्कुल अपेक्षित है। चूंकि घोटाले में सरकार के लोग जुड़े हैं। ऐसे में जांच एजेंसी पर नरमी बरतने का दबाव है।



राम जेठमलानी,पूर्व कानून मंत्री और कनिमोझी के वकील:


कनिमोझी को जमानत न देना न्याय की अवहेलना है। उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट में इस गलती को दुरुस्त कर दिया जाएगा। ऐसे आरोपी को भले ही जमानत न दें, जिसके फरार होने की आशंका हो या सबूतों या गवाहों को प्रभावित करने का शक हो। कम से कम इस महिला के मामले में तो ऐसा कुछ नहीं है।

जांच एजेंसियों के रवैये पर जज होते रहे हैं नाराज

कनिमोझी समाज के उच्च वर्ग से हैं। ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि उनके साथ महिला होने के नाते भेदभाव हो रहा है। सीबीआई द्वारा जमानत अर्जी का विरोध न करना कोई मायने नहीं रखता। इन पर जनता का पैसे का निजी उपयोग करने का आरोप है। इन्हें कोई रियायत नहीं दी जा सकती।’


-विशेष अदालत के जज ओपी सैनी,कनिमोझी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए


2008 में हुए अपराध के बारे में दिल्ली पुलिस अब तक जांच पूरी नहीं कर पाई है। आरोपी इस आधार पर जमानत मांग रहे हैं, तो क्या उन्हें छोड़ दें। अर्जी में कहा गया है कि पैसा कहां से आया, कहां गया.. पुलिस पता नहीं लगा पाई है। केस की स्टेटस रिपोर्ट 14 नवंबर को सुनवाई के दौरान प्रस्तुत करें।’


-दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एमएल मेहता,कैश फॉर वोट कांड के आरोपियों की जमानत अर्जी पर


रिहाई के लिए अजब-गजब तर्क 

कनिमोझी : बच्चे की परवरिश करना है

3 अक्टूबर 

बचाव पक्ष ने जज से कहा, महिला हैं। बच्चे की परवरिश करना है। जांच को प्रभावित नहीं करेंगी। जमानत दे दीजिए।

3 नवंबर 

बचाव पक्ष का तर्क वही। साथ में जोड़ा कि आरोप सुनाए जा चुके हैं। अब तो जमानत दे दीजिए।


सीबीआई रुख अभियोजन प्रस्तुत होने के बाद उनकी जमानत से एतराज नहीं। उन्हें रिहा किया जा सकता है।

अमर सिंह : किडनी खराब है

6 सितंबर

बीमारी की दलील देकर गिरफ्तारी से बचने की बार-बार कोशिश की। 

24 अक्टूबर : अमर के वकील ने कहा सिंह की दोनों किडनी सिंगापुर में बदली गई हैं। वहीं इनका इलाज संभव है। अमर को जमानत मिल गई। अब वे यूपी में खुलेआम प्रेस कान्फ्रेंस ले रहे हैं।


पुलिस रुख

जमानत की अर्जी खराब स्वास्थ्य के आधार पर दी गई थी। पुलिस ने कोई विरोध नहीं किया। 

येदियुरप्पा : तबीयत ठीक नहीं

28 अक्टूबर- शिकायतकर्ता की दलील थी कि येदियुरप्पा राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हैं। सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। 
8 नवंबर- हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की निचली अदालत ने जांच ही नहीं की।
सरकारी पक्ष का रुख: सिर्फ उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर निर्भर। हाईकोर्ट ने नाकाफी माना।

सलमान खान: ये हीरो हैं

7 अक्टूबर 2002- कार से लोगों को कुचलने के आरोप में तत्काल जमानत। लोगों के विरोध के बाद गैरइरादतन हत्या का केस दर्ज हुआ। गिरफ्तार हुए। 
25 अक्टूबर 2002- बचाव पक्ष ने यह कहते हुए जमानत मांगी कि सलमान सबूतों को प्रभावित नहीं कर सके। वे हीरो हैं, जहां जाएंगे पता चल जाएगा।
पुलिस का रुख: जज के पूछने पर भी सरकारी वकील ने जमानत पर कोई एतराज नहीं जताया। 


..और आम बंदी की यह हालत


असम के रहने वाले माछुंग लालुंग को 1951 में मामूली चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बिना केस चलाए उसे 54 साल जेल में रखा गया। उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ी गई। मानवाधिकार आयोग ने माछुंग का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचाया। जहां से 2005 में उसकी रिहाई के आदेश हुए। उसे तीन लाख रु. मुआवजा भी देने को कहा गया। माछुंग को जिस आरोप में पकड़ा गया था, यदि वह साबित भी हो जाता तो उसे अधिकतम तीन साल की सजा होती।

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