Wednesday, November 30, 2011

चीन से लड़ाई मोल लेना चाहता है भारत, ड्रैगन को किया सावधान


 

बीजिंग.चीन के एक प्रमुख अखबार ने मंगलवार को अपने एक लेख में कहा कि अब चीन को भारत को गंभीरता से लेना शुरु कर देना चाहिए क्योंकि चीन-अमेरिका के बीच चल रही तनातनी में भारत अपना फायदा देख रहा है और स्थिति ऐसी बना दी है कि उसे सर्वाधिक फायदा हो।


चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने अपने  इस लेख में भारत और चीन को बीच होने वाली चीन-भारत सीमा बातचीत पर भी जोर दिया। यह वार्ता कुछ दिन पहले ही दलाई लामा को लेकर उपजे विवाद के कारण टाल दी गई थी। ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि यह वार्ता होनी चाहिए ताकि रिश्तों में और कड़वाहट न आए।
नई दिल्ली में बुद्धों की एक कांफ्रेंस में दलाई लामा के हिस्सा लेने पर ऐतराज जताते हुए चीन ने नवंबर के अंत में होने वाली यह वार्ता टाल दी थी। चीन के किसी अखबार की रिपोर्ट में इस वार्ता को टाले जाने का यह पहला उल्लेख है। अभी तक नई दिल्ली में भारत के सुरक्षा सचिव शिव शंकर मेनन और चीन के राजनयिक डाय बिनगाओ के बीच भारत-चीन सीमा विवाद के मुद्दे पर होने वाली इस बातचीत को टाले जाने पर चीनी मीडिया ने खामोशी बरकरार रखी थी।
'भारत और चीन को एक दूसरे का गला नहीं काटना चाहिए' शीर्षक से लिखा गया यह संपादकीय में चीन के बदले सुर नजर आए। इससे पहले के अपने तमाम लेखों में यह अखबार भारत के प्रति कठोर रवैया अपनाए हुए था। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम और भारत के साझा खोज अभियान को रोकने के संबंध में इस अखबार ने कहा था कि चीन को हर मुमकिन तरीके से भारत और वियतनाम के बीच चल रहे सहयोग को रोकना चाहिए। हालांकि मंगलवार को प्रकाशित इस संपादकीय में अखबार ने बेहद नरम रुख अपनाते हुए कहा कि चीन और भारत को एक दूसरे के मामलों पर अति-उत्तेजित होकर प्रतिक्रियाए देना बंद कर देना चाहिए, इससे विवाद बढ़ता है।
संपादकीय में यह भी कहा गया, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर होने वाली वार्टा को टाले जाने को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन एक बात निश्चित है- भारत, जिसका कुल सकल घरेलू उत्पाद चीन से एक तिहाई है, अब तक चीन के प्रति कठोर रूख अपनाए हुए है। भारत के लोग भी चीन के प्रति नरमी को बर्दाश्त नहीं करेंगे लेकिन चीन भी सीमा विवाद पर भारत की मांगों को स्वीकार नहीं करेगा।
यही असमंजस है। दोनों देशों को सीमा विवाद को और बढ़ने से रोकने के  प्रयास करने चाहिए और वार्ता को चालू रखना चाहिए और अचानक वार्ता टूटने के परीणामों की भी चिंता करनी चाहिए।
संपादकीय में यह भी कहा गया है कि आजकल भारत का रवैया चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर बेहद आक्रामक है। ऐसा लग रहा है कि भारत चीन का सामना करने के लिए कुछ ज्यादा ही उत्साहित है लेकिन भारत के साथ ऐसी प्रतिद्वंदिता चीन के समाज का फोकस नहीं है।


लेख में यह भी कहा गया है कि यदि भारत अपनी मौजूदा आर्थिक विकास दर को बनाए रखता है तो वो चीन के लिए और महत्वपूर्ण हो जाएगा लेकिन अमेरिका और चीन के बीच चल रहे विवाद में यदि भारत खुद को भी रणनीतिक रूप से शामिल करता है तो चीन के लिए मुश्किल हो जाएगी।

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